एक समय हर छात्र की चाहत होती थी मुजफ्फरपुर के एलएस कालेज में नामांकन
122 वर्ष पुराने इस कालेज में एक जमाने में पढऩा गर्व की बात मानी जाती थी। यहां से पढ़कर निकले विद्यार्थी आइएएस और आइपीएस हैं। औराई प्रखंड के आनंदपुर गांव के निवासी व तमिलनाडु कैडर के आइएएस मोहन प्यारे ने यहां से 1976 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
By Ajit KumarEdited By: Updated: Sat, 03 Jul 2021 09:11 AM (IST)
मुजफ्फरपुर, [अंकित कुमार]। जिले का एक ऐसा कॉलेज जो शिक्षा के साथ ही आजादी की लड़ाई का केंद्र रहा। स्वतंत्रता संग्राम में वैचारिक क्रांति का केंद्र रहा। यह है लंगट सिंह (एलएस) कालेज। 122 वर्ष पुराने इस कालेज में एक जमाने में पढऩा गर्व की बात मानी जाती थी। यहां से पढ़कर निकले बहुत से विद्यार्थी आज आइएएस और आइपीएस हैं। औराई प्रखंड के आनंदपुर गांव के निवासी व तमिलनाडु कैडर के आइएएस मोहन प्यारे ने यहां से 1976 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उस वर्ष पूरे बिहार से कुल 110-112 विद्यार्थी ही प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए थे। उसमें अकेले एलएस कालेज से ड्यूक छात्रावास में रहने वाले 55 छात्र थे। उस समय प्रत्येक छात्र की चाहत होती थी कि काश उसका एलएस कॉलेज में नामांकन हो जाए। तब 60 फीसद अंक पर इंटर साइंस में दाखिला मिलता था। शिक्षक नियमित कक्षाएं लेते थे। वह बताते हैं कि यहां से पढ़ाई के बाद कोचिंग की जरूरत महसूस नहीं हुई। यहीं से स्नातक और 1980 में उन्होंने पीजी किया। इसके बाद आइआइटी दिल्ली से एमटेक की पढ़ाई की। 1985 में वे तमिलनाडु कैडर से आइएएस बने। वर्तमान में वे तमिलनाडु सरकार के वित्त आयोग के चेयरमैन हैं।
शिक्षक रहते दिनकर ने यहीं की रश्मिरथी की रचना देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जेबी कृपलानी, रामधारी सिंह दिनकर समेत कई महान विभूतियों ने यहां अध्यापन किया है। चंपारण सत्याग्रह के दौरान 11 अप्रैल, 1917 को महात्मा गांधी भी एक रात के लिए यहां रुके थे। यहीं से चंपारण सत्याग्रह के लिए प्रस्थान से पूर्व गांधीजी ने स्नान किया था। उनकी स्मृति में आज भी गांधी कूप विद्यमान है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने विख्यात पुस्तक रश्मिरथी की रचना यहीं प्राध्यापक रहते हुए की थी। इस कॉलेज को ऊंचाई तक पहुंचाने में शिवहर जिले के राजा शिवराज नंदन सिंह, जमींदार लंगट सिंह, जमींदार बाबू रामेश्वर नारायण सिन्हा, हरदी के बाबू कृष्ण नारायण सिन्हा, अरिक्षण सिन्हा, जमींदार बाबू योगिंदर प्रसाद सिंह, जमींदार धर्मराज चौधरी और जैतपुर स्टेट के रघुनाथ दास समेत 22 लोगों का योगदान रहा।
तीन जुलाई, 1899 को हुई थी स्थापना वैशाली जिले के धरहरा गांव निवासी स्वतंत्रता सेनानी बाबू लंगट सिंह ने उच्च शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से तीन जुलाई, 1899 को एलएस कॉलेज की स्थापना की थी। वे मात्र प्राथमिक स्तर तक की पढ़ाई किए थे, लेकिन शिक्षा का महत्व समझते थे। उत्तर बिहार के लालकिला के रूप में विख्यात इस कालेज को हेरिटेज का दर्जा प्राप्त है।
बरामदे में बैठकर करते थे पढ़ाई
1980-84 में कॉलेज के भौतिकी के छात्र रहे वर्तमान प्राचार्य डा. ओमप्रकाश राय बताते हैं कि उस समय कॉलेज की ख्याति इतनी ज्यादा थी कि नामांकन के लिए अन्य प्रदेश से भी छात्र आते थे। कक्षा में जगह नहीं होती तो छात्र खिड़की और बरामदे पर बैठते थे। नामांकन के लिए एक सीट पर पांच-पांच आवेदक होते थे। प्रयास है कि कॉलेज का गौरव बरकरार रहे।
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