बिहार में दरभंगा महाराज के ‘सपनों’ को लगी अव्यवस्था की दीमक, आज बुरे हाल में हैं उनकी विरासतें
महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने अपने काल में दरभंगा को देश-दुनिया में दर्शनीय बनाने की कोशिश की। कई खूबसूरत इमारतें बनवाईं। लेकिन उन्हें सुरक्षित-संरक्षित करने की पहल नहीं हो सकी।
By Ajit KumarEdited By: Updated: Sat, 22 Aug 2020 02:47 PM (IST)
दरभंगा, संजय कुमार उपाध्याय। यूं तो बिहार में अनेक राज-घराने हैं, लेकिन दरभंगा राज का स्थान विशिष्ट है। यहां के राजाओं ने संवेदना के दम पर लोगों के मन में एक अलग छवि बनाई थी। यही वजह रही कि राज परिवार ने राजधानी और यहां की जनता का खूब विकास किया। यहां के 20वें और अंतिम महाराज कामेश्वर सिंह ने तो सामाजिक कार्यों का ऐसा ताना-बाना बुना कि अकेली यह व्यवस्था ही पर्याप्त थी दरभंगा शहर के सपनों को संजोने के लिए। जरूरत थी बस उसे अपडेट करने की।
महाराज ने शिद्दत से अपने नगर को बसाया
देश व दुनिया में दरभंगा के महाराज द्वारा बनवाया गया किला मशहूर है। बात शिक्षा, स्वास्थ्य या सुरक्षा की हो, किसी भी विषय का ख्याल आने के साथ दरभंगा में मौजूद इनसे जुड़ी आधारभूत संरचनाएं इस बात का एहसास कराती हैं कि यहां के महाराज ने शिद्दत से अपने नगर को बसाया है। वक्त ने इस राज परिवार को चैन की नींद दी और अपने साम्राज्य का विकास करने की क्षमता प्रदान की।
महाराज के सपनों को चाट रही अव्यवस्था की दीमक
आज उसी वक्त ने इस राज द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों पर धूल जमा दी है। महाराज के सपनों को अव्यवस्था की दीमक चाट रही है। शहर में जल-जमाव की समस्या घर कर गई है। जो खत्म होने का नाम नहीं लेती। खूबसूरत किलेबंदी भी समापन की ओर है। यकीन से परे है। यदि इसे संभाला गया होता तो देश-दुनिया के मानचित्र पर दरभंगा भी पर्यटन का केंद्र होता।
लाल किले से होती है राज किला की तुलना दरभंगा राज किला का अतीत स्वर्णिम है। 1934 के भूकंप के बाद स्वतंत्रता की लड़ाई जवानी पर थी। इन सबके बीच दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह किला बनाने में लगे थे। ब्रिटिश फर्म का ठेकेदार बैक कैगटोम रात-दिन एक कर किला का निर्माण कर रहा था। तीन तरफ क्रमश: पूर्व, उत्तर व दक्षिण की दीवार पूरी हो गई। लेकिन पश्चिम की दीवारें कुछ दूर निर्माण होने के बाद रुक गईं। पश्चिमी दिशा में एक अग्रवाल परिवार का घर था। सूर्य की रोशनी बाधित हो जाने के कारण निर्माण कार्य पर रोक लगाने के लिए मुकदमा दर्ज किया गया। इस मुकदमा में महाराज हार गए। राज परिवार पर शोध करनेवाली कुमुद सिंह बताती हैं- इस किला के निर्माण के पीछे महाराज की दो सोच थी। एक, अगर देश आजाद नहीं हुआ तो उन्हें किला की बदौलत रूलिंग स्टेट का दर्जा मिल जाएगा। दूसरा, अगर देश आजाद हो गया तो उनके कुल देवी-देवताओं का स्थान सुरक्षित हो जाएगा। दिल्ली के लालकिला की तरह दरभंगा के इस ऐतिहासिक राज किला को भी संरक्षित करने की मांग पुरानी है, लेकिन इस दिशा में आजतक कोई ठोस पहल नहीं की गई। हालांकि, कई राजनेताओं ने अपने भ्रमण के दौरान इसे संरक्षित करने की बात जरूर कही। 90 फीट उंचे किला का सर्वेक्षण भारतीय पुरातत्व विभाग ने किया। लेकिन, आगे कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।
अस्पताल में इलाज को आते थे अफगानिस्तान तक के मरीज महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के सचिव डॉ. मनोज कुमार श्रीवास्तव बताते हैं- महाराज ने यहां अस्पताल की स्थापना की थी। एक वक्त में यहां दरभंगा मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक ट्रेनिंग के लिए आते थे। आज भी महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में इलाज कराने के लिए गरीबों की भीड़ लगी रहती है। मुफ्त में इलाज होने और दवा मिलने से गरीबों के लिए यह अस्पताल संजीवनी बन गया है। आधी दर पर पैथोलॉजी जांच की सुविधा होने से दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की चर्चा आज भी कायम है। महाराज के दानी होने की चर्चा देश में ही नहीं, विदेशों में भी है।
तत्कालीन बंगाल राज्य का था दूसरा सबसे बड़ा चिकित्सालयभले ही आज राजशाही नहीं है, लेकिन दरभंगा महाराज की संपत्ति से चलने वाले इस अस्पताल में प्रतिदिन दर्जनों मरीजों का मुफ्त में इलाज कर दवा देने की व्यवस्था जारी है। याद रहे कि 12 बीघे में फैले इस अस्पताल की स्थापना 1878 में महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह ने द राज हॉस्पीटल एंड द लेडी डेफरीन फिमेल नाम से गरीबों के लिए की। गरीबों की सेवा के लिए खोला गया दो सौ बेड का यह अस्पताल तत्कालीन बंगाल राज्य का दूसरा सबसे बड़ा चिकित्सालय था। जहां आफगानिस्तान, नेपाल आदि कई देशों से मरीज मुफ्त में इलाज कराने आते थे। डॉ. भवनाथ झा, डॉ. अमूल्या चर्टजी, डॉ. मटरा, डॉ. गोयल, डॉ. होल्द जैसे देश-विदेश के कई नामचीन चिकित्सकों ने यहां योगदान दिया है।
बीएचयू से डीएमसीएच तक की स्थापना में राज परिवार की भूमिका अहम दरभंगा के राज परिवार ने देश की शिक्षण व्यवस्था के लिए भी खूब काम किया। जानकार बताते हैं कि दरभंगा महाराज ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, कोलकाता विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय पटना विश्वविद्यालय, कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और भारत में कई अन्य शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में अपनी अहम भूमिका निभाई। सबसे खास यह कि दरभंगा में स्थापित विश्वविद्यालयों के लिए भवन निर्माण कराने के दौरान इसकी खूबसूरती का ध्यान रखा।
दरभंगा राज घराने ने लिखी राजा से महाराजाधिराज की कहानी दरभंगा राज घराने के इतिहास को टटोलने पर पता चलता है कि दरभंगा-महाराज ‘खंडवाल कुल’ के थे। इस राज के संस्थापक महेश ठाकुर थे। उनकी और उनके शिष्य रघुनंद की विद्वता एवं महाराजा मानसिंह के सहयोग से अकबर ने उन्हें राज्य सौंपा था। महेश ठाकुर 1556 से 1569 तक राजा रहे। इनकी राजधानी वर्तमान मधुबनी जिले के भउर (भौर) ग्राम में थी। दूसरे राजा गोपाल ठाकुर 1569 से 1581 तक रहे। बाद में ये काशी चले गए। फिर इनके बाद भाई परमानंद ठाकुर और सौतेले भाई शुभंकर ठाकुर सिंहासन पर बैठे। शुभंकर ठाकुर ने अपने नाम पर दरभंगा के निकट शुभंकरपुर ग्राम बसाया। राजधानी को मधुबनी के निकट भउआरा (भौआरा) में स्थानान्तरित किया। फिर उनके पुत्र पुरुषोत्तम ठाकुर 1617 से 1641 तक, सातवें सुन्दर ठाकुर 1641 से 1668 तक, महिनाथ ठाकुर 1668 से 1690 तक। महिनाथ पराक्रमी योद्धा थे। इन्होंने मिथिला की प्राचीन राजधानी सिमराओं परगने के अधीश्वर सुगाओं-नरेश गजसिंह पर आक्रमण कर हराया था। फिर उनके भाई नरपति ठाकुर 1690 से 1700 तक राजा रहे। इनके बाद सिंह की उपाधि धारण करते हुए राजा राघव सिंह 1700 से 1739 राज देखा। इनके बाद राजा विसुन (विष्णु) सिंह 1739 से 1743 तक, राजा नरेन्द्र सिंह 1743-1770 तक राजा रहे। 1770 से 1778 तक रानी पद्मावती ने राज किया। इनके बाद नरेंद्र सिंह के दत्तक पुत्र राजा प्रताप सिंह 1778-1785 तक राज देखा। इन्होंने अपनी राजधानी को भौआरा से झंझारपुर में स्थानान्तरित किया।
राजधानी झंझारपुर से हटाकर दरभंगा में स्थापित की14वें राजा माधव सिंह का राज 1785 से 1807 तक चला। इन्होंने राजधानी झंझारपुर से हटाकर दरभंगा में स्थापित की। लार्ड कार्नवालिस ने इनके शासनकाल में जमीन की दमामी बन्दोबस्ती करवाई थी। फिर महाराजा छत्र सिंह ने 1807 से 1839 तक राज किया। इन्होंने 1814-15 के नेपाल-युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की। हेस्टिंग्स ने इन्हें 'महाराजा' की उपाधि दी थी। इनके बाद महाराजा रुद्र सिंह - 1839 से 1850 तक, महाराजा महेश्वर सिंह 1850-1860 तक राजा रहे।
इनकी मृत्यु के पश्चात् कुमार लक्ष्मीश्वर सिंह के अवयस्क होने के कारण दरभंगा राज को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के तहत ले लिया गया। जब कुमार लक्ष्मीश्वर सिंह बालिग हुए तब सिंहासन पर बैठे। महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने 1880 से तक 1898 तक सत्ता संभाली। रामेश्वर सिंह इनके अनुज थे। रामेश्वर सिंह को अंग्रेजों ने महाराजाधिराज की उपाधि दी और वे 1898-1929 तक राजा रहे। पिता के निधन के बाद महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह गद्दी पर बैठे। इन्होंने अपने कार्यकाल में दरभंगा को देश-दुनियां में दर्शनीय बनाने की जी-तोड़ कोशिश की। इस तरह से दरभंगा राज परिवार सत्ता संचालन को लेकर पूरी दुनिया में मशहूर रहा।
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