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समस्तीपुर स्टेशन पर दिखी नारी शक्ति, महिलाओं के हाथ ट्रेन की कमान, बोलीं हर दिन हो महिला दिवस

International Womens Day समस्तीपुर रेल मंडल की 432 महिला कर्मियों को म‍िला सम्‍मान महिलाओं के हाथ में रही इंटरसिटी एक्सप्रेस की व्‍यवस्‍था ट्रेनों के संचालन से लेकर सुरक्षा तक की जिम्मेदारी लोको पायलट सहायक लोको पायलट गार्ड टीटीई एवं आरपीएफ सभी रहीं महिलाएं।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 08 Mar 2022 09:11 AM (IST)Updated: Tue, 08 Mar 2022 01:25 PM (IST)
ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना करते डीआरएम व ट्रेन के इंजन में सवार लोको पायलट व सहायक लोको पायलट।

समस्तीपुर, {प्रकाश कुमार}। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर समस्तीपुर रेलवे स्टेशन का नजारा बदला रहा। नारी शक्ति का राज दिखा। सुरक्षा से लेकर परिचालन, सफाई से लेकर टिकट चेङ्क्षकग, सबकुछ आधी आबादी के कंधे पर रहा। ट्रेन चलाने से लेकर रोकने तक की जवाबदेही महिला कर्मियों के हाथों में रही। रेलवे की इस अनोखी पहल की हर ओर सराहना हो रही।

दानापुर से जयनगर तक परिचालित होने वाली ट्रेन संख्या 13226 इंटरसिटी एक्सप्रेस से यात्रा करनेवाले रेलयात्री भी हैरान दिख रहे थे। हों भी क्यों न, ट्रेन में लोको पायलट, सहायक लोको पायलट, गार्ड, टीटीई एवं आरपीएफ की महिला जवान ही दिख रही थीं। समस्तीपुर स्टेशन पर मंडल रेल प्रबंधक आलोक अग्रवाल, महिला कल्याण संगठन की अध्यक्ष व अन्य वरीय अधिकारियों ने हरी झंडी दिखाकर ट्रेन को रवाना किया। साथ ही सभी कर्मियों को उपहार भेंट किया गया।

चेहरे पर गर्व का भाव

ट्रेन में तैनाती से महिला कर्मियों के चेहरे पर गर्व का भाव था। ट्रेन की लोको पायलट चंदू कुमारी, सहायक लोको पायलट सलोनी, गार्ड दीपा कुमारी, प्वाइंट वुमैन, टीटीई सरिता कुमारी, कृष्णा धर, आरपीएफ एसआई निशा कुमारी, कान्स्टेबल संगीता कुमारी, फोरंती मीना, अनिता और सुमन ट्रेन की कमान संभाले रहीं।

ट्रेन में यात्रियों का ख्याल रखने के लिए लगभग एक दर्जन महिलाकर्मी भी थीं। जंक्शन पर भी महिला रेलकर्मियों की तैनाती रही। पूछताछ केंद्र में उद्घोष कर रही थीं। लोको पायलट चंदू कुमारी ने कहा कि हम अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही हैं।

कृषि विश्वविद्यालय की तकनीक से जुड़कर आत्मनिर्भर हो सकती है महिलाएं

नीता श्रीवास्तव कहती है कि महिलाओं को केवल आय के स्रोत का अधिकार मिलना आधी आजादी है। यह तब तक पूरी नहीं हो सकती, जब तक कि वह इस आय का प्रबंधन खुद नहीं करती। कामकाजी महिला की जिंदगी का एक विचारणीय पहलू यह भी है कि जहां पति अपनी कमाई पर पूरा आधिपत्य रखते हुए भी पति की कमाई को अपना ही समझती है। घर के बाहर औरत की चाहे जो हैसियत हो, घर के भीतर की दुनिया उसके वजूद को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। महिलाओं की स्थिति पहले की अपेक्षा आज काफी बदली है, लेकिन आज भी संपत्ति पर महिलाओं का मालिकाना हक बेहद कम है और वे जो खुद कमाती है उसे भी खर्च करने का अधिकार उनके पास नहीं है। यह भी सच है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर अधिकतर नारियों के आय का भी प्रबंधन पुरुष ही करते हैं। मुझे यह बताते हुए खुशी है कि डा. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने कई नवोन्मेषी उपाय किए हैं। इसमें केले के रेसे, अरहर के डंठल से सजावट की वस्तुओं को बनाने की तकनीक विकसित की है। इससे कम लागत में ही कमाई शुरू की जा सकती है। मशरूम तथा उसके उत्पाद की तकनीक को अपनाकर बिहार की हजारों महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। इसलिए प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत की तर्ज पर हम महिला दिवस पर आत्मनिर्भर महिला का संकल्प लें। आत्मनिर्भर महिला ही सम्मान से महिला दिवस मना सकती है।

नारी सशक्तिकरण को सफल बनाने के लिए हर महिला का शिक्षित होना बेहद जरूरी 

महिला कल्याण संगठन की अध्यक्षा अनुजा अग्रवाल कहती है कि नारी शिक्षित हो तभी वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकती है। तभी वह खुद के लिए, अपने परिवार और भविष्य के लिए अच्छे फैसले भी ले सकती हैं। महिला दिवस सिर्फ़ एक दिन मनाने से सफल नहीं हो सकता। इसे पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए समाज के पुरुष समुदाय को चाहिए कि वो हर दिन महिला का सम्मान करें। चाहे वो घर की स्त्री हों या बाहर की स्त्री हों। वह बताती हैं कि हर वर्ग की महिला को समाज में कमाई का ज़रिया मिलना चाहिए। ताकि हर महिला आत्मनिर्भर हो सके, तभी समाज के हर क्षेत्र में उन्नति देखने को मिलेगी। नारी सशक्तिकरण को और भी मजबूत करने के लिए रेल्वे कल्याण संगठन कई महिलाओं को रोजगार देने, उनके भविष्य को संवारने का काम कर रही हैं। जैसे सिलाई सेंटर, ब्यूटी पार्लर, गरीब महिला के बच्चों के लिए विद्यालय का संचालन भी कर रही है। वे बताती हैं कि सारी महिलाओं के लिए यह संदेश है कि खुद भी शिक्षित हो और साथ ही अपने आसपास की महिलाओं को भी शिक्षित होने के लिए प्रेरित करें। इसके साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्र होने में एकजुट होकर मदद करें। जिससे समाज का कल्याण हो सके। साथ ही जो लड़के और लड़कियों में भेदभाव का चलन है उसे सबसे पहले मिलकर अपने घर से हटाएं। इसके लिए बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की जरूरत है।

धैर्य और सहनशीलता से बनेगी बात

अधिवक्ता संध्या मिश्रा कहती है कि भूमंडलीकरण के इस दौर में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। चाहे वह स्कूल, काॅलेज, दफ्तर, कारखाना का क्षेत्र हो या खेल का मैदान, खेत हो या खलिहान- हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ रात-दिन काम कर देश के विकास में संलग्न हैं। कई जगहों पर तो देश के आर्थिक विकास में सहयोग दे रही है। लेकिन फिर भी समाज में नारी की वह स्थिति नहीं है जो होनी चाहिए। आज स्त्रियों का एक ऐसा वर्ग उभरा है, जिसने अपना कार्यक्षेत्र स्वयं चुना है, आज की युवती शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात अपना रास्ता स्वयं चुन रही है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, इंजीनियर पायलट, डाॅक्टर, प्रोफेसर, अध्यापक सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी छाप छोड़ी है। यह सच है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता नारी सशक्तीकरण की पहली शर्त है, लेकिन आर्थिक आजादी ने औरत को दोहरी-तिहरी जिम्मेदारी में जकड़ लिया है। प्रताड़ना का स्तर आर्थिक रूप से सशक्त नारियों के यहां भी है। लेकिन इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पितृ सत्तात्मक समाज में आज भी यदि महिला धैर्य और सहनशीलता से काम करें तो उन्हें कई विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।


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