Jubilee special: एक मुख्यमंत्री जो टूटी झोपड़ी में रहते थे, रिक्शा पर पहुंचे कार्यक्रम स्थल, जानें- जननायक की अनसुनी कहानियां...
घोर गरीबी में जीने वाले कर्पूरी ठाकुर का जीवन मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सादगी भरा रहा। उन्हें जननायक की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली। पढें उनसे जुड़ी कुछ कहानियां.
By Murari KumarEdited By: Updated: Fri, 24 Jan 2020 02:39 PM (IST)
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। राजनीति में भ्रष्टाचार के वर्तमान दौर में एक मुख्यमंत्री ऐसे भी हुए, जो झोपड़ी में रहते थे, जो गाड़ी नहीं रहने पर रिक्शा से चल सकते थे, बीच रास्ते में कार पंक्चर हो जाने पर ट्रक से लिफ्ट लेकर आगे जा सकते थे। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है। हम बात कर रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर की। आज उनकी जयंती है।
घोर गरीबी में जीने वाले कर्पूरी ठाकुर का जीवन मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सादगी भरा रहा। उन्हें जननायक की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली। इसके पीछे उनकी सोच व कार्यशैली निहित थी। उनकी कई स्मृतियां आज भी लोगों के जेहन में हैं। कर्पूरी ठाकुर के पुत्र व राज्यसभा सदस्य रामनाथ ठाकुर तथा अन्य लोगों ने उनसे जुड़ी स्मृतियों को साझा किया।टूटी झोपड़ी में रहते थे जननायक
समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपनी टूटी झोपड़ी में ही रहते थे। उनके निधन के बाद उस झोपड़ी को हटाकर सरकार ने वहां एक सामुदायिक भवन का निर्माण कराया, जो अब स्मृति भवन के रूप में जाना जाता है।
रिक्शा पर कार्यक्रम स्थल चल पड़े कर्पूरी
कर्पूरी ठाकुर के पुत्र सांसद रामनाथ ठाकुर बताते हैं कि एक बार समस्तीपुर में एक कार्यक्रम में कर्पूरी ठाकुर को शामिल होना था। उस समय वे राज्य के मुख्यमंत्री थे। हेलीकॉप्टर से वे दूधपुरा हवाई अड्ड़े पर समय पर पहुंचे तो देखा कि न तो जिलाधिकारी आए हैं और न ही कोई अन्य प्रशासनिक पदाधिकारी। तब वे रिक्शे पर बैठे और कार्यक्रम स्थल की ओर चल दिए। रास्ते में जिलाधिकारी मिले तो सिर्फ इतना ही पूछा, बहुत विलंब हो गया, क्या बात है? इस पर जिलाधिकारी ने कहा, कार्यक्रम की तैयारी में ही व्यस्त था। उन्होंने कहा, कोई बात नहीं। फिर उनकी गाड़ी पर बैठ कर कार्यक्रम स्थल आए।
चंदे की रसीद भिजवाईइस तरह की कई घटनाएं हैं जो आज भी लोगों को कर्पूरी ठाकुर के जीवन दर्शन में झांकने को विवश करती है।पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह के आगमन पर पार्टी ने उन्हें थैली भेंट करने का निर्णय लिया था। लोग चंदा दे रहे थे। इसी क्रम में एक व्यक्ति ने कपूर्री ठाकुर को ढाई रुपये चंदा पार्टी फंड में दिया। उस समय उनके पास चंदा वाली रसीद नहीं थी, इसलिए वे रसीद नहीं दे सके।
बाद में उन्होंने अपने पीए से कहा कि निबंधित डाक से उन्हें पावती रसीद भेज दें। पीए ने कहा कि जितना चंदा उन्होंने दिया है, उससे ज्यादा तो रजिस्ट्री में ही खर्च हो जाएगा। इस पर कर्पूरी ने जो बातें कही, वह सोचने को विवश करती है। कहा, सवाल ढाई रुपये चंदा का नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता का है। उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि ढाई रुपये की राशि जो पार्टी फंड में दी, वह पार्टी फंड में जमा हो गई।
ट्रक से लिफ्ट लेने को हो गए तैयारइसी तरह के एक वाकया का उल्लेख करते हुए दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं कि बाबू वीर कुंवर सिंह जयंती कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कर्पूरी जगदीशपुर गए थे। वहां से लौटते हुए रास्ते में कार की टायर पंक्चर हो गई। उन्होंने अपने बॉडीगार्ड से कहा कि किसी ट्रक को रुकवाओ उसी पर बैठकर पटना चले जाएंगे। बॉडीगार्ड ने कहा कि लोकल थाने से संपर्क करते हैं, गाड़ी मिल जाएगी तो उससे निकल जाएंगे।
फिर, लोकल थाना से उन्हें एक गाड़ी मुहैया कराई और कुछ जवानों के साथ उन्हें पटना के लिए रवाना किया गया। पटना अपने आवास पर पहुंचे तो साथ आए पुलिस के जवानों को सोने के लिए खुद ही दरी बिछाई। कहा, रात बहुत हो गई है। कुछ देर आराम कर लीजिए फिर निकल जाइएगा।
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