Uttarkashi Tunnel Rescue: टनल में फंसे 41 मजदूरों ने 17 दिन कैसे बिताए? केवल इस बात की थी चिंता...पढ़िए पूरी कहानी; घर लौटे दीपक की जुबानी
उत्तराखंड के उतराकाशी में निर्माणाधीन टनल (सुरंग) में फंसे 41 मजदूरों के सुरक्षित बाहर आ जाने से लोगों में खुशी का माहौल है। उत्तरकाशी से घर लौटे सरैया के गिजास निवासी दीपक कुमार ने 17 दिनों की आपबीती दैनिक जागरण से साझा की। दीपक ने बताया कि 12 नवंबर को सुबह चार से पांच बजे टनल हादसा हुआ। घटना के दो घंटे बाद इसकी जानकारी हुई।
By Prem Shankar MishraEdited By: Mukul KumarUpdated: Mon, 04 Dec 2023 10:01 AM (IST)
मनोज कुमार, सरैया। उत्तराखंड के उतराकाशी में सिलक्यारा के निर्माणाधीन टनल (सुरंग) में फंसे 41 मजदूरों का सकुशल बाहर आना दूसरा जीवन मिलने से कम नहीं है। देश की एक से एक तकनीक फेल हो चुकी थी। सबकी उम्मीद टूटती जा रही थी।
इसके बावजूद लगातार प्रयास से सफलता मिली। सभी मजदूर सकुशल बाहर आए। उत्तरकाशी से सभी अपने-अपने घर अपनों के बीच आ गए हैं। इसके बाद भी वह 17 दिन अब भी उनके जेहन में है। जिंदगी और मौत के बीच बस थोड़ा सा फासला था।
सुबह हुआ टनल हादसा
उम्मीद, हौसला और लाखों लोगों के उठे हाथ ने उस फासले को दूर कर दिया। उत्तरकाशी से घर लौटे सरैया के गिजास निवासी दीपक कुमार ने 17 दिनों की आपबीती दैनिक जागरण से साझा की। दीपक ने बताया कि 12 नवंबर को सुबह चार से पांच बजे टनल हादसा हुआ।घटना के दो घंटे बाद इसकी जानकारी हुई। पीछे काम कर रहे साथी ने बताया कि टनल धंस गया है। पीछे आकर देखा तो रास्ता बंद था। देखकर परेशानी हुई। दिन भर स्थिर नहीं रहे, भय लग रहा था। रात में जगकर ही समय बिताया। भय ज्यादा इस बात की सताने लगा कि दीपावली में सभी वरीय लोग छुट्टी पर चले गए हैं।
उन्होंने कहा कि हमलोगों को कौन निकलेगा? दिन भर तो समय चिंता में बीता, लेकिन रात्रि में नहीं सो सके। उसी दिन फिर रात 11:12 बजे के करीब एक बार फिर कुछ दूरी पर टनल धंसने की सूचना मिली। इससे भय और ज्यादा बढ़ गया। हम सभी एक साथ बैठकर रात बिताई।
मूढ़ी और काजू के रूप में मिला भोजन
दीपक ने कहा कि 13 नवंबर की सुबह सभी काफी बेचैन थे कि बाहर इस तरह की सूचना गई भी या नहीं कि हमलोग फंस गए हैं। इस बीच बाहर सूचना देने के लिए पानी के माध्यम से चिट्ठी लिखकर भेजे कि हमलोग फंस गए हैं। बाहर वह चिट्ठी मिली या नहीं यह जानकारी हम लोगों को नहीं हुई।
13 नवंबर की रात्रि भी काफी असहज रहे, मगर चार इंच के पाइप से हवा मिलने लगी तो तो थोड़ा धैर्य मिला। इससे यह बात तय हो गई कि बाहर उनके फंसने के बारे में सब जान रहे हैं। हमलोगों को निकालने के लिए कारवाई चल रही है। इस रात छह घंटे सोया।14 नवंबर को पाइप के माध्यम से बातचीत बाहर होने लगी तो हमलोग इत्मीनान हो गए। पाइप से खाना भी मिलने लगा। पाइप के माध्यम से मूढ़ी और काजू के रूप में भोजन मिलना शुरू हुआ ।
15 नवंबर की सुबह से उठने के बाद पाइप के माध्यम से मिलने वाले भोजन के इंतजार में हमलोग एकत्रित हो जाते थे। सब आदमी मिलकर खाते थे।इस बीच दो सीनियर जो उत्तराखंड के ही गब्बर सिंह और बिहार के सबा अहमद बोलते थे वे लोग पहले भी इस तरह के टनल में फंस चुके थे। उससे निकल चुके हैं। उनलोगों की कहानी सुनाने के बाद हमलोगों को भरोसा होता था।
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