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कैसे मरा वीरप्पन ? तमिलनाडु के सेवानिवृत्त एसटीएफ जवान ने जीवंत किया घटनाक्रम

Veerappan death वीरप्पन के सुराग के लिए तीन महीने जंगल में खाक छानती रही थी तमिलनाडु एसटीएफ की टीम। वीरप्पन को मारने वाली टीम में रहे सुरेश जे. ने साझा की जानकारी। लकड़ी की तस्करी रोकने के लिए नदी के दुर्गम इलाकों में पेेट्रोलिंग।

By Ajit KumarEdited By: Updated: Fri, 11 Feb 2022 08:33 PM (IST)
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तमिलनाडु के सेवानिवृत्त एसटीएफ जवान सुरेश ने पूरा घटनाक्रम साझा किया। फाइल फोटो
वाल्मीकिनगर (पश्चिम चंपारण), जासं। Veerappan death: दक्षिण भारत के जंगलों में तस्करी रोकना और वीरप्पन को खत्म करना किसी चुनौती से कम नहीं था। उसका सुराग पाने के लिए लगातार तीन महीने तक टीम के साथ जंगल में रहा। यह जानकारी वीरप्पन को खत्म करने वाली टीम में शामिल रहे सुरेश जे. ने दी। वनकर्मियों को प्रशिक्षण देने वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) पहुंचे तमिलनाडु के सेवानिवृत्त एसटीएफ जवान सुरेश ने बताया कि वीरप्पन तमिलनाडु के सत्यमंगलम जंगल में छुपकर तस्करी करता था। तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों जगह पैर फैला चुका था। उसके पीछे लगातार तीन महीने तक टीम के साथ जंगल में रहना पड़ा था। 18 अक्टूबर, 2004 में वीरप्पन को मार गिराया गया। 

सुरेश ने बताया कि तमिलनाडु के सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व से गुजरी मोयार और भवानी नदियां तस्करी का एक माध्यम थीं। तस्कर जंगल से लकडिय़ां काट इसमें बहा देते थे। इनसे निपटने के लिए नदी के दुर्गम और उन इलाकों में टीम के साथ वनकर्मियों की ड्यूटी लगाई जाती थी, जिसका इस्तेमाल तस्कर करते थे। पेट्रोलिंग की व्यवस्था की गई। इस रणनीति से बहुत हद तक तस्करी पर रोक लगाने में मदद मिली। तस्करों से निपटने के लिए जंगल में हम एंबुस कैटवाक पेट्रोलिंग (जिसमें दो कदम की दूरी पर मौजूद होने के बावजूद पत्ता खटकने की आवाज नहीं होती) करते थे।

जंगल के साधन से बना लेते स्ट्रेचर

उन्होंने बताया कि जंगल में अगर कोई साथी ऊंचे स्थान से गिरकर घायल हो जाता तो उसे बचाने के लिए हम वहीं के साधनों का ही इस्तेमाल करते थे। लकड़ी और जैकेट के सहारे स्ट्रेचर बना लेते थे। फिर घायल को लादकर जंगल से बाहर पहुंचाते थे। इस तकनीक का प्रयोग हम आज भी करते हैं।

लाठी डंडे से हो रही जंगल की सुरक्षा

सुरेश ने वीटीआर और तमिलनाडु के जंगल सुरक्षा व्यवस्था की तुलना करते हुए कहा कि इसमें बड़ा फर्क है। यहां लाठी-डंडे से निगहबानी होती है, जबकि तमिलनाडु के जंगल में हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मी ड्यूटी करते हैं।

हाल ही में बची थी एक वनकर्मी की जान

हरनाटांड़ वन क्षेत्र के नौरंगिया दोन परिसर में तैनात रंजीत कुमार की जान बीते दिनों पहाड़ से गिरने के बाद भी बच गई थी। इसकी वजह सुरेश के प्रशिक्षण शिविर में मिली जानकारी थी। रंजीत हरनाटांड़ वन क्षेत्र के नौरंगिया दोन वन परिसर अंतर्गत एन-24 में ट्रांजेक्ट लाइन की मानीटङ्क्षरग में लगे थे। इसी क्रम में पहाड़ से गिरकर घायल हो गए। घायल अवस्था में साथी वनकर्मियों ने आनन-फानन में लकड़ी व अपने जैकेट से स्ट्रेचर बनाकर उन्हें जंगल से बाहर लेकर आए। इस स्ट्रेचर के निर्माण की जानकारी 2021 में संपन्न प्रशिक्षण शिविर के दौरान मिली थी। 

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