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Bihar: अगरबत्ती उद्योग में हाथ आजमा आत्मनिर्भर बन रहीं नालंदा की महिलाएं, पहले मुश्किल से मिलती थी दो वक्त की रोटी अब...

बिहार के चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा हर बार उठता है। विपक्ष और बाकी सभी दल मिलकर सरकार को इसपर घेरने की खूब कोशिश करते हैं। बेरोजगारी से युवाओं में काफी नाराजगी है। दूसरी तरफ परिस्थितियों के हाथों की कठपुतली न बनते हुए खुदागंज के महमुदा ढिबरी पिलखी आदि गांव की महिलाएं आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश कर रही हैं।

By Fajal Mowaj (Islampur)Edited By: Mohit TripathiUpdated: Sun, 17 Dec 2023 07:52 PM (IST)
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Bihar: अगरबत्ती उद्योग में हाथ आजमा आत्मनिर्भर बन रही नालंदा की महिलाएं। (जागरण फोटो)
मो. फजल मोआज, खुदागंज। बिहार के चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा हर बार उठता है। विपक्ष और बाकी सभी दल मिलकर सरकार को इसपर घेरने की खूब कोशिश करते हैं। बेरोजगारी से युवाओं में काफी नाराजगी है।

दूसरी तरफ परिस्थितियों के हाथों की कठपुतली न बनते हुए खुदागंज के महमुदा, ढिबरी, पिलखी आदि गांव की महिलाएं आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश कर रही हैं।

यहां की महिलाओं ने परिस्थितियों को अपनी मंजिल न समझते हुए आपदा में अवसर ढूंढा और अब इस क्षेत्र की बिजनेस वुमेन बन चुकी हैं।

अगरबत्ती बनाकर बन रहीं आत्मनिर्भर

महिलाओं के इस काम में चुनौतियां तो बहुत बड़ी है लेकिन आत्मनिर्भर होकर खुद कमाना और परिवार को चलाना अपने आप में उनके लिए बड़ी बात है।

दरअसल, ढिबरी गांव में रहने वाली महिलाएं अगरबत्ती बनाने का काम करती हैं। इनकी बनाई गई अगरबत्ती पूरे बिहार में बिकती है।

अगरबत्ती बनाकर खुद संभाल रहीं घर

अगरबत्ती बनाने वाली महिलाएं बताती हैं कि यहां उनके लिए रोजगार का एक बहुत बड़ा अवसर है। महंगाई के जमाने में जहां लोगों की नौकरियां जा रही हैं ऐसे में वे अगरबत्ती बनाकर खुद घर संभाल रही हैं।

अगरबत्ती आज की तारीख में बड़े उद्योग का रूप ले चुका है। महिलाएं बताती है कि वे एक दिन में करीब 1000 अगरबत्ती बना लेती हैं। उन्हें ठेकेदार की ओर से ही सामान दिया जाता है। वे अगरबत्ती को पूरी तरह से तैयार कर उन्हें ठेकेदार को दे देती हैं।

पार्ट टाइम जॉब के रूप में काम करती हैं खुशबू

इस काम में जुटी 25 साल की खुशबू बताती हैं कि उन्होंने बीए तक की पढ़ाई की है और अब वह प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका के तौर पर काम कर रही हैं। घर लौटने के बाद खुशबू परवीन अगरबत्ती भी बनाती हैं, ताकि आमदनी थोड़ी ज्यादा हो सके।

कोरोना में छूट गई थी निधि कुमारी की नौकरी, फिर...

ज्योग्राफी में एमए कर चुकी निधि कुमारी कहती हैं कि उन्हें यह काम करने में किसी तरह की कोई झिझक नहीं है। एमए करने के बाद उन्होंने स्कूल में पढ़ाया लेकिन कोरोना काल के दौरान विकट परिस्थितियों के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी। हालांकि , उन्होंने घर बैठना ठीक नहीं समझा और इसीलिए अगरबत्ती बनाने के काम में घर वालों का हाथ बंटाने लगी।

परिवारों को समझाने में लगा समय

काम के लिए महिलाएं तो इच्छुक थी पर उनके घर वाले राजी नहीं थे। ऐसे में निधि कुमारी व खुशबू परवीन ने भी घर घर जाकर समझाया कि अपने घर व गांव में ही दो रुपये कमाने का अवसर मिल रहा इससे कुछ आय ही होगी। ऐसे में बात समझ आई तो परिवार के लोगों ने महिलाओं को भेजना शुरू कर दिया।

अगरबत्ती बहुत ही अच्छा बनाकर तैयार किया जा रहा है। महिलाएं अगर ठान लें तो क्या कुछ नहीं कर सकती हैं इसी तरह से पंचायत,प्रखंड एवम जिले की महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। उनकी हरसंभव मदद की जाएगी।

मुश्किल से दो वक्त की रोटी का होता था इंतजाम

नीलम परवी कहती हैं कि यहां मजदूरी कर लोग जीवन गुजर बसर करते हैं। काम नहीं मिलने पर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना मुश्किल होता था। छोटी पूंजी से अगरबत्ती बनाने का काम शुरू किया। आज हाथ में दो चार पैसे आ जाते हैं। बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला रही हूं।

अगरबत्ती बनाकर 3 बच्चों को पाल रही अफसाना

ढिबरी की अफसाना बेगम बताती हैं कि पहले दाने-दाने को मोहताज थी। खुशबू दीदी ने हमलोगों को अगरबत्ती बनाने का गुर सिखाया। जिसके सहारे अच्छी आमदनी हो जा रही है। पति मो रूसतम के निधन के बाद घर चलाना मुश्किल हो रहा था। आज अगरबत्ती बनाकर अपने तीन बच्चों का बेहतर देखभाल कर रही हूं। सभी पढ़ाई कर रहे हैं।

कोरोना संकट संकट में अगरबत्ती निर्माण ने दिया सहारा

महजबी खातून कहती हैं कि दो वर्षों से अगरबत्ती बनाने का काम कर रही हूं। बीच में कोरोना संकट के दौर में काम बंद हो गया। काफी परेशानी हुई। अब फिर से काम शुरू हुआ है। पति बेरोजगार थे। इस कारण पूरी जिम्मेवारी मेरे कंधे पर आ गई। अगरबत्ती का निर्माण कर महीने में आठ से दस हजार रुपये कमा लेती हूं।

अत्याधुनिक मशीन से बढ़ सकती है आमदनी

नाजमा खातुन कहती हैं कि अगरबत्ती बनाने के काम से प्रत्येक दिन दो सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। अगरबत्ती बनाने का अत्याधुनिक मशीन आ जाए, तो महिलाओं की आमदनी और बढ़ जाएगी। तीन वर्ष पूर्व पति शमशुद्दीन आलम की मौत हो गई थी। कैसे दुख में समय काटा, बता नहीं सकती। अब अगरबत्ती निर्माण का काम कर बेहतर तरीके से अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हूं।

क्या कहते हैं प्रखंड विकास पदाधिकारी 

इस्लामपुर प्रखंड विकास पदाधिकारी मुकेश कुमार ने बताया की महिलाएं स्वयं सहायता समूह का निर्माण कर बैंक से ऋण के लिए आवेदन करें। ऋण दिलाने में हरसंभव सहयोग किया जाएगा। स्वरोजगार सृजन के लिए ऋण देने के लिए बैंक तैयार है।

चुनावी चर्चा यहां की महिलाओं की चुनाव में कोई खास रुचि नहीं है। वैसी महिलाएं इस बात से खुश हैं कि सरकार की तरफ से उन्हें हर महीने दो वक्त का मुफ्त राशन मिलता है। लेकिन उनका कहना है कि जो भी सरकार आएगी उसे अगरबत्ती बनाने की मजदूरी में मिलने वाले पैसों को बढ़ाना चाहिए।

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