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ज्ञान के प्रति असीम प्यास और जिज्ञासा का भाव ही नालंदा : उपेंद्र राव

नालंदा विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन कोरोना काल के बाद विश्व व्यवस्था में धर्म-धम्म परंपरा की भूमिका विषय पर चर्चा संपन्न हुई। देश-विदेश के कई विद्वानों और चितकों ने चर्चा में हिस्सा लिया।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 09 Nov 2021 11:15 PM (IST)
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ज्ञान के प्रति असीम प्यास और जिज्ञासा का भाव ही नालंदा : उपेंद्र राव

जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ : नालंदा विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन 'कोरोना काल के बाद विश्व व्यवस्था में धर्म-धम्म परंपरा की भूमिका' विषय पर चर्चा संपन्न हुई। देश-विदेश के कई विद्वानों और चितकों ने चर्चा में हिस्सा लिया। सुबह के सत्र में हिस्सा लेते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर के. टी. एस. सराव ने 'धर्म' तथा 'रिलिजन' के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि रिलिजन शब्द की अवधारणा मानव केंद्रित है, जबकि धर्म समस्त सृष्टि के हित की चिता करता है। जेएनयू में संस्कृत और पाली के प्रोफेसर सी. उपेन्द्र राव ने 'नालंदा' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि ज्ञान के प्रति असीम प्यास और जिज्ञासा का भाव ही 'नालंदा' है। उन्होंने कहा कि नालंदा भगवान बुद्ध के प्रखर शिष्य सारिपुत्र का जन्मस्थान है।

... शुभ - लाभ की बात करता है धर्म : भाग्येश झा .. गुजरात से आए विचारक भाग्येश झा ने कहा कि कोरोना संकट ने हमें अपने 'माइक्रोस्कोप' को ठीक करने का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि धर्म सिर्फ लाभ की नहीं, बल्कि शुभ-लाभ की बात करता है। सुबह के पहले सत्र की अध्यक्षता कर रहे इंडियन काउंसिल ऑफ फिलॉसोफिकल रिसर्च के अध्यक्ष रमेश चंद्र सिन्हा ने कहा कि भारत के प्राचीन जीवन मूल्य नई वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ... कोरोना ने ठहर कर सोचने का दिया मौका : देवराकोंडा

... मंगलवार सुबह के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर और प्रमुख रहे बालागणपति देवराकोंडा ने कहा कि कोरोना संकट ने हमारी गतिविधियों पर रोक लगा दी। दरअसल, कोरोना ने हमें अपने जीवन में ठहर कर सोचने और पुनर्विचार करने का संदेश दिया है, ताकि हम फिर से ऊर्जान्वित महसूस कर सकें। कार्यक्रम में जेएनयू के प्रोफेसर प्रियदर्शी मुखर्जी और सांथीगिरि रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक के. गोपीनाथ पिल्लई ने भी अपने विचार रखे।

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