Bihar News: बिहार की इस बेटे ने ‘मंगल’ पर लिख दिया पैतृक भूमि ‘हिलसा’ का नाम, 3 साल की कड़ी मेहनत लाई रंग
Bihar News बिहार के नालंदा जिले के हिलसा अनुमंडल के रेड़ी गांव निवासी डा. राजीव रंजन भारती ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने मंगल ग्रह पर एक अनोखा क्रेटर ढूंढ निकाला है और उसकी विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत की है। वे भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग की इकाई अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में विज्ञानी हैं। उनकी इस उपलब्धि की चर्चा पूरे देश में हो रही है।
उपेंद्र कुमार, हिलसा (नालंदा)। Bihar News: पैतृक भूमि का नाम बिरले ही इस तरह क्षितिज पर लिख पाते हैं। बिहार के नालंदा जिले के हिलसा अनुमंडल के रेड़ी गांव निवासी डा. राजीव रंजन भारती ने ऐसा ही कर दिखाया है। वे भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग की इकाई अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में विज्ञानी हैं। गत दिनों उन्होंने मंगल ग्रह पर एक अनोखा क्रेटर ढूंढ निकाला है और उसकी विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
रिपोर्ट के अनुसार मंगल पर लगभग 10 किमी चौड़े गड्ढे में जमा तलछट वहां बड़ी मात्रा में पानी का प्रमाण है। कभी मंगल की सतह गीली थी और उस पर पानी बहता था। डा. भारती के अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने भी स्वीकार किया और ग्रह विज्ञान की बड़ी खोज मानते हुए क्रेटर का नाम ही उनकी पैतृक भूमि ‘हिलसा’ रख दिया।
डा. राजीव रंजन भारती ने दैनिक जागरण से की बात
इस बड़ी सफलता के बाद दैनिक जागरण से बातचीत में डा. भारती ने कहा कि मंगल ग्रह पर इस क्रेटर को ढूंढने व विस्तृत अध्ययन में उन्हें लगभग तीन वर्ष लगे। दो और क्रेटर ढूंढ़े गए हैं, जिनके नाम भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पी आर एल) की सिफारिश पर अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (आइएयू) कार्य समूह ने ‘लाल’ व ‘मुरसान’ क्रेटर रखे हैं। उन्होंने बताया कि बचपन से ही मुझे ब्रह्मांड के बारे में विशेषकर ग्रहों के बारे में जानने की जिज्ञासा रही है। इसी जिज्ञासा ने ग्रह वैज्ञानिक बनने के लिए प्रेरित किया है।इस क्रेटर का अध्ययन करने में लगभग तीन वर्ष लगे हैं। उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान ग्रह के विकास की विभिन्न प्रक्रियाओं को समझा। हिलसा क्रेटर लगभग 10 किलोमीटर चौड़ा गड्ढा है और लाल क्रेटर के रिम के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। उन्होंने इसका वैज्ञानिक महत्व बताते हुए कहा कि मंगल ग्रह पर थारिस ज्वालामुखी क्षेत्र में लाल क्रेटर का पूरा क्षेत्र लावा से ढंका हुआ है।इस क्रेटर में लावा के अलावा अन्य सामग्रियों के भू भौतिकीय साक्ष्य हैं। क्रेटर की उप सतह में 45 मीटर मोटी तलछट जमा है, जिसका प्रमाण उप सतह रडार का उपयोग करके प्राप्त किया गया है। यह खोज इस बात का पुख्ता प्रमाण देती है कि पानी ने बड़ी मात्रा में तलछट को क्रेटर में पहुंचाया है।
जिसे अब ‘लाल क्रेटर’ नाम दिया गया है। यह खोज इस बात की भी पुष्टि करती है कि मंगल कभी गीला था और सतह पर पानी बहता था। ‘लाल’ क्रेटर के दोनों ओर दो छोटे-छोटे सुपर इम्पोज्ड क्रेटर हैं, जिन्हें ‘मुरसान’ और ‘हिलसा’ नाम दिया गया है। इससे पहले भी डा. भारती के कई शोध पत्र प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
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