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बिहारशरीफ के इस गांव में आज भी खादी ग्रामोद्योग को संभाले हुए हैं अरुण प्रसाद, पिता ने रखी थी नींव; विनोबा भावे की थी बड़ी भूमिका

खादी ग्रामोद्योग की लोकप्रियता आजादी के बाद से कम होती चली गई लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं जो इन्‍हें संभाले हुए हैं। अस्थावां के बलवापुर गांव में सन् 1978 ई. में स्वर्गीय केश्वर प्रसाद ने खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की थी जिसकी जिम्‍मेदारी अब उनके पुत्र अरुण प्रसाद के कंणे पर है और वह इसका खूब अच्‍छे से निर्वहन कर रहे हैं।

By rajnikant sinha Edited By: Arijita Sen Updated: Tue, 26 Dec 2023 04:47 PM (IST)
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अस्थावां के बलवा पर हस्तकरघा उद्योग को दिखाते संचालक।
राजेश शर्मा, अस्थावां। खादी ग्रामोद्योग को बढ़ावा देना, उसे एक मुकाम दिलाना गांधी का सपना था। वे खादी को राष्ट्रीय कपड़े का दर्जा दिलाना चाहते थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद यह सपना पूरा नहीं हो सका। चरखा से शुरू हुआ यह आंदोलन जन आंदोलन बनता चला गया। घर-घर में खादी बनने लगे।

आजादी के बाद इसकी लोकप्रियता में आयी गिरावट के कारण, लोग खादी को भूलते चले गए। लेकिन खादी के कई दीवाने आज भी खादी काे संभाले बैठे हैं। अस्थावां के बलवापुर गांव में सन् 1978 ई. में स्वर्गीय केश्वर प्रसाद ने खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की। इसकी स्थापना में विनाेवा भावे की बड़ी भूमिका रही।

सन् 1991 में राज्य सरकार ने करघा को दी मान्यता

अस्थावां के बलवा पर के रहने वाले केश्वर प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम के एक योद्धा थे। महात्मा गांधी व विनोवा भावे जैसे महान लोगों से प्रभावित रहने वाले केश्वर प्रसाद ने महाराष्ट्र के वर्धा से अपने जीवन की शुरुआत की थी।

यहीं आश्रम में रहकर बुनियादी शिक्षा हासिल की। बाद में अपने गांव वापस चले आए। कुछ दिन बाद गांव में ही खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की। इतने पुराने हस्तकरघा को सन् 1991 में सरकार से मान्यता मिली।

आज इस हस्तकरघा को केश्वर प्रसाद के पुत्र अरुण प्रसाद चला रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद करघा बंदी के कगार पर पहुंच गया।

सन् 2014 में राज्य व केन्द्र सरकार के पूर्णधार ॠण योजना के तहत 29 लाख अनुदानित राशि प्राप्त हुई। जिसके बाद यह हस्तकरघा फिर चल पड़ा।

इस खादी ग्रामोद्योग की कई शाखाएं कर रही काम

करघा के कार्यों को उनके पुत्र अरूण प्रसाद देख रहे हैं। इस ग्रामोद्योग की कई छोटी-छोटी शाखाएं है। बलवापुर में चादर, कंबल, गमछा, लुंगी, थान चेक वस्त्र बनता है। वहीं बिलासपुर में कंबल की बुनाई होती है।

तीसरा केन्द्र सिलाव के नेपुरा गांव में है। यहां रेशम के कटिया वस्त्र रेशमी तथा तसर के कपड़ों की बुनाई की जाती है। चौथा केन्द्र भूतनाथ रोड में है। यहां बहुत बड़े हाउस गोदाम व दुकान है। जहां सामानों की बिक्री हाेती है।

इस करघा में बने वस्त्रों की पूरे देश में होती प्रदर्शनी

इस छोटे से गांव में बने वस्त्रों की प्रदर्शनी हर वर्ष बिहार सहित देश के विभिन्न् हिस्सों में की जाती है। इस उद्योग के सहारे गांव के बेरोजगार युवक-युवितयों को रोजगारोन्मुख बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

पहले ऐसे लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके बाद 4500 रुपया प्रति माह दिया जाएगा। ट्रेनिंग के बाद कामगारों को सरकार की तरफ लोन भी उपलब्ध कराया जाएगा।

जीवन का एक बड़ा मिशन है अरुण प्रसाद का कार्य

अरुण प्रसाद सैफ इंडिया स्टेट ब्रांच के इंचार्ज भी रहे। 2006 में नौकरी छोड़ वह गांव चले आएं। इसके बाद पुश्तैनी कारोबार को पुर्नजीवित करने की ठानी।

ग्रामीण उद्योग के बारे में विशेष रूप से जानकारी व ट्रेनिंग ली। बंद के कगार पर पहुंचे करघे को जीवित किया। अभी 60 तकनीकी कामगार है।

सिलाई के लिए करीब दो सौ से अधिक युवा व महिलाएं है। खादी ग्रामीण उद्योग के निदेशक अरुण प्रसाद ने कहा कि खादी स्वदेशी हथियार है।

इसका विकास देश के विकास की गाथा लिखता है। कुछ दिनों पूर्व डीएम शशांक शुभंकर व एसपी अशोक मिश्रा करघा केन्द्र पहुंचे। कार्यों की खुलकर प्रशंसा की।

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