बिहारशरीफ के इस गांव में आज भी खादी ग्रामोद्योग को संभाले हुए हैं अरुण प्रसाद, पिता ने रखी थी नींव; विनोबा भावे की थी बड़ी भूमिका
खादी ग्रामोद्योग की लोकप्रियता आजादी के बाद से कम होती चली गई लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं जो इन्हें संभाले हुए हैं। अस्थावां के बलवापुर गांव में सन् 1978 ई. में स्वर्गीय केश्वर प्रसाद ने खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की थी जिसकी जिम्मेदारी अब उनके पुत्र अरुण प्रसाद के कंणे पर है और वह इसका खूब अच्छे से निर्वहन कर रहे हैं।
राजेश शर्मा, अस्थावां। खादी ग्रामोद्योग को बढ़ावा देना, उसे एक मुकाम दिलाना गांधी का सपना था। वे खादी को राष्ट्रीय कपड़े का दर्जा दिलाना चाहते थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद यह सपना पूरा नहीं हो सका। चरखा से शुरू हुआ यह आंदोलन जन आंदोलन बनता चला गया। घर-घर में खादी बनने लगे।
आजादी के बाद इसकी लोकप्रियता में आयी गिरावट के कारण, लोग खादी को भूलते चले गए। लेकिन खादी के कई दीवाने आज भी खादी काे संभाले बैठे हैं। अस्थावां के बलवापुर गांव में सन् 1978 ई. में स्वर्गीय केश्वर प्रसाद ने खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की। इसकी स्थापना में विनाेवा भावे की बड़ी भूमिका रही।
सन् 1991 में राज्य सरकार ने करघा को दी मान्यता
अस्थावां के बलवा पर के रहने वाले केश्वर प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम के एक योद्धा थे। महात्मा गांधी व विनोवा भावे जैसे महान लोगों से प्रभावित रहने वाले केश्वर प्रसाद ने महाराष्ट्र के वर्धा से अपने जीवन की शुरुआत की थी।यहीं आश्रम में रहकर बुनियादी शिक्षा हासिल की। बाद में अपने गांव वापस चले आए। कुछ दिन बाद गांव में ही खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की। इतने पुराने हस्तकरघा को सन् 1991 में सरकार से मान्यता मिली।
आज इस हस्तकरघा को केश्वर प्रसाद के पुत्र अरुण प्रसाद चला रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद करघा बंदी के कगार पर पहुंच गया।
सन् 2014 में राज्य व केन्द्र सरकार के पूर्णधार ॠण योजना के तहत 29 लाख अनुदानित राशि प्राप्त हुई। जिसके बाद यह हस्तकरघा फिर चल पड़ा।
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