ये हमारा शौक नहीं... किसानों ने पान की खेती को क्यों बताया मजबूरी, पिछले दो साल का रिकॉर्ड आपका भी घुमा देगा सिर
बिहार के किसानों का कहना है कि पान की खेती करना हमारा शौक नहीं मजबूरी है । पिछले दो साल का रिकार्ड देखे तो पान कृषक बेहाल थे। हर साल पान किसानों पर मौसम की मार पड़ती है। कभी गर्मी में फसल सुख जाती है। तो कभी बरसात में पान का फसल अधिक बारिश के कारण गल जाती है ।
संवाद सूत्र, खुदागंज। मगही पान के लिए मशहूर इस्लामपुर प्रखंड के खुदागंज थाना क्षेत्र के दर्जनों गांवों में पान की खेती किया जाता है। पिछले दो साल का रिकार्ड देखे तो पान कृषक बेहाल थे। प्रखंड में पान कृषकों का लाखों का नुकसान हुआ था।
वर्ष 2020 में कोरोना की वजह से पान का पत्ता वाराणसी ना जाने से कृषक अपने पान के पत्तों को औने-पौने कीमत पर अपने क्षेत्र के गुमटी पर मजबूरी में बेच दिए। जिससे लाखों का नुकसान हुआ। वही वर्ष 2021 में बेमौसम बारिश से 80 प्रतिशत पान का फसल बर्बाद हो गया।
पान के बरेजा में किसान मौसमी सब्जियों को उपजाने पर विवश दिखे। पान की फसल बर्बाद होने से पान कृषकों का कमर टूट गया। दोनों विपदाओं से उबरने के बाद एक बार पुनः पान कृषक इस्लामपुर प्रखंड के खुदागंज थाना क्षेत्र के सेरथुआ सराय, बौरी, कोचरा, मैदी, इमादपुर, डौरा जैसे दर्जनों गांव के किसान पुनः पान के फसल को नए सिरे से लगाने लगे हैं।
हर साल होता है नुकसान, मुआवजा की आस में रहते हैं किसान
प्रखंड में बृहद पैमाने पर पान की खेती की जाती है और प्रखंड के दर्जनों गांव के किसानों का पान मूल पेशा है। यहां के दर्जनों गांव के किसान इसी पान की खेती से परिवार का भरण-पोषण बच्चों की पढ़ाई बेटी की शादी आदि कार्यों को करते हैं। पान का फसल एक कच्चा फसल है ये फसल ना ठंड ना गरमी और ना ही अधिक बरसात को झेल पता है।
हर साल पान किसानों पर मौसम का मार पड़ता है। कभी गर्मी में फसल सुख जाता है। तो कभी बरसात में पान का फसल अधिक बारिश के कारण गल जाता है। ठंडी के मौसम में पान के पत्ते सिकुड़न के कारण जल जाते हैं। इन समस्याओं के बाद विभाग के द्वारा मुआवजे के एलान तो किया जाता है। लेकिन इसका लाभ कृषकों तक आते-आते दम तोड़ देता है।
नुकसान के कारण सैकड़ों किसान छोड़ चुके पुस्तैनी धंधा
जिस प्रकार किसान पूरे साल अपने पसीने से पान की फसल को तैयार करते हैं उसके बाद फसल गर्मी, बरसात, ठंड का शिकार हो जाता और पूरे साल की मेहनत मिट्टी में मिल जाता है तो किसानों के पास रोने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है।
कारण यही है क्षेत्र के पान किसान अपने पुस्तैनी धंधा को छोड़कर दूसरे राज्य को पलायन कर गए या तो फिर दूसरे धंधा में हाथ बंटा लिए। सेरथुआ गांव निवासी मेघन चौरसिया पहले की खेती करते थे हर साल नुकसान होने के कारण अब वो कोलकाता में आइसक्रीम बेच अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। ऐसे सैकड़ों किसान है जो पान की खेती को करना बंद कर दिए हैं।
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