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Bihar Sharif: 3 जुलाई से सात दिवसीय लंगोट अर्पण मेला होगा शुरू, दशकों पहले शुरू हुई परंपरा आज तक है जारी

शक्ति के संचारक रहे बाबा मणिराम की अलौकिक शक्ति आज भी उनके समाधि स्थल तथा अखाड़े की मिट्टी में मौजूद है। यही कारण है कि उनकी समाधि के करीब एक हजार वर्ष बाद भी लोग अखाड़े की मिट्टी का तिलक लगाना नहीं भूलते हैं। बाबा की प्रसिद्ध समाधि पिसत्ता घाट स्थित है जो अब अखाड़े के नाम से सर्वज्ञ है। इतिहासकारों की मानें तो यह दुनिया की पहली समाधि है...

By janmjay kumarEdited By: Prateek JainUpdated: Sun, 02 Jul 2023 04:52 PM (IST)
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आज से सात दिवसीय लंगोट अर्पण मेला शुरु, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ: शक्ति के संचारक रहे बाबा मणिराम की अलौकिक शक्ति आज भी उनके समाधि स्थल तथा अखाड़े की मिट्टी में मौजूद है।

यही कारण है कि उनकी समाधि के करीब एक हजार वर्ष बाद भी लोग अखाड़े की मिट्टी का तिलक लगाना नहीं भूलते हैं।

बाबा की प्रसिद्ध समाधि पिसत्ता घाट स्थित है, जो अब अखाड़े के नाम से सर्वज्ञ है। इतिहासकारों की मानें तो यह दुनिया की पहली समाधि है, जहां लंगोट अर्पित करने की परंपरा रही है।

शांति व स्वास्थ्य का संदेश देकर बाबा ने ली थी समाधि

बाबा मणिराम सन् 1238 ई. में अयोध्या से पिसत्ता घाट पहुंचे थे, उस समय पूरा क्षेत्र जंगल से ढका था। घने जंगल होने की वजह से आम लोगों का यहां आना-जाना बामुश्किल होता था।

बावजूद बाबा की दिव्य तथा अलौकिक शक्ति की वजह से लोग घने जंगल में खि‍ंचे चले आते थे। बाबा के पास हर मर्ज की दवा थी।

कभी कोई उनके पास से खाली नहीं लौटता था। सन् 1300 ई. में भक्तों को शांति व स्वास्थ्य का संदेश देकर बाबा ने सशरीर समाधि ले ली।

सन् 1952 में लंगोट चढ़ाने की परंपरा की हुई थी शुरुआत

लंगोट परंपरा की शुरुआत के पीछे एक रोचक कहानी है। कहा जाता है पटना के अबकारी विभाग के अधिकारी कपिल देव प्रसाद पुत्र रत्न की चाहत में देश के हर धार्मिक स्थल में मत्था टेक चुके थे, लेकिन चाहत पूरी नहीं हुई। अंतत: बाबा की समाधि पर आकर मन्नतें मांगी।

कहा जाता है कि उसी वर्ष उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र प्राप्ति की खुशी में उन्होंने 6 जुलाई 1952 को गुरु पूर्णिमा के दिन बाबा मणिराम की समाधि पर पहला लंगोट चढ़ाया। इसके बाद से ही यहां लंगोट चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।

सात दिवसीय मेला आज से आरंभ

बाबा मणिराम अखाड़ा स्थल पर आज 3 जुलाई से सात दिवसीय मेले का आयोजन किया जाएगा। हालांकि, इस बार प्रशासन ने शांति व्यवस्था को लेकर जत्थे में लंगोट चढ़ाने पर रोक लगाई है। ऐसे में लोग पारंपरिक हथियारों के प्रयोग पर भी रोक होगी। ऐसे में लंगोट चढ़ाने की इस परंपरा को इस बार जुलूस का शक्ल नहीं दिया जा सकेगा। वहीं, गाजे बाजे पर भी रोक होगी।

खास तौर पर सजाया गया है मंदिर

बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के सचिव अमरकांत भारती ने बताया कि वार्षिक लंगोट अर्पण मेला 3 जुलाई से लेकर 9 जुलाई तक चलेगा। 24 घंटे का अखंड कीर्तन का आयोजन शुरु हो चुका है। इस बार मंदिर परिसर को विशेष रूप से सजाया-संवारा गया है, ताकि श्रद्धालुओं में आकर्षण बना रहे।

मेले में सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध

मेले में सुरक्षा को लेकर पुख्ता प्रबंध किया गया है। पुलिस बलों की भारी तैनाती के साथ जगह-जगह बैरेकेडिंग की गई है। वहीं, पूरे मेले परिसर को सीसीटीवी कैमरे से लैस किया गया है। सादे लिबास में बड़ी संख्या में पुलिस बलों को लगाया गया है। ताकि हर गतिविधि पर नजर हो।

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