Bihar News: न चीर-फाड़ के यंत्र, न फोरेंसिक डॉक्टर... कुछ इस तरह होता है सदर अस्पताल में पोस्टमॉर्टम
बिहार के नवादा में स्थित सदर अस्पताल में पोस्टमॉर्टम राम भरोसे ही किया जा रहा है। इस अस्पताल में न तो पोस्टमॉर्टम के लिए पर्याप्त यंत्र हैं और न ही फोरेंसिक डॉक्टर। सामान्य चिकित्सकों के भरोसे ही पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया को छोड़ दिया गया है। वो भी जब अपने काम से फुर्सत पाते हैं तो पोस्टमॉर्टम का कोरम पूरा करते हैं।
जागरण संवाददाता, नवादा। Bihar Government Hospital Postmortem सदर अस्पताल नवादा में पोस्टमॉर्टम करने के लिए किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की नियुक्ति नहीं है। ओपीडी और इमरजेंसी ड्यूटी में तैनात डॉक्टरों को फुर्सत मिलती है तो पोस्टमॉर्टम हाउस जाकर अपना कोरम पूरा कर देते हैं। वहीं, चीर-फाड़ से लेकर विसरा की पैकिंग करना व अन्य प्रक्रिया चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी जितेन्द्र कुमार करते हैं।
सदर अस्पताल नवादा में पोस्टमॉर्टम के लिए पैथोलॉजी और फोरेंसिक के जानकर चिकित्सक नहीं हैं। इसी के साथ, अस्पताल में चीर-फाड़ करने वाले यंत्रों की भी कमी है। विशेषज्ञ डॉक्टर के साथ पोस्टमॉर्टम हाउस के कर्मचारियों का पद भी रिक्त है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देने के लिए किसी दूसरे विभाग से लॉगर लगाया गया है। रिपोर्ट से संबंधित सभी लेखा-जोखा इनके पास ही रहता है।
पोस्टमॉर्टम हाउस में AC तक की सुविधा नहीं
हालांकि, सदर अस्पताल के पोस्टमॉर्टम हाउस में एसी तो नहीं हैं परंतु 48 से 72 घंटा रखने के लिए फ्रिज की व्यवस्था है। फ्रिज में वैसे शव को रखा जाता है, जो पुलिस को लावारिस हालात में मिले और मृतक के स्वजन इसकी पहचान कर सकें।
72 घंटे से पहले स्वजन शव की पहचान कर लेते हैं तो उन्हें कुछ कागजी प्रक्रिया के बाद सुपुर्द कर दिया जाता है। पहचान नहीं होने पर पुलिस ही लावारिस शव का अंतिम संस्कार करती है।
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क्या कहते हैं अधिकारी?
मैन पावर की कमी होने के बावजूद पोस्टमॉर्टम को हर हाल में कराया जाता है। दिन में किसी प्रकार की परेशानी नहीं है। वहीं, रात्रि में पुलिस कप्तान एवं जिलाधिकारी के द्वारा त्वरित कार्रवाई करते हुए इसका निपटारा किया जाता है। किसी भी हाल में पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया नहीं रोकी जाती है। क्योंकि वादी को न्याय दिलाने में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की एक अहम भूमिका होती है। - आशुतोष कुमार वर्मा, जिलाधिकारी, नवादा
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