पर्यटन विभाग के मानचित्र से ककोलत शीतल जल प्रपात गायब
नवादा। जिले में भारत की समृद्ध प्राचीन संस्कृति के इतने अवशेष हैं कि इन्हे संरक्षित और विकसित
By Edited By: Updated: Wed, 20 Apr 2016 10:47 AM (IST)
नवादा। जिले में भारत की समृद्ध प्राचीन संस्कृति के इतने अवशेष हैं कि इन्हे संरक्षित और विकसित कर दिया जाय तो सालो भर सैलानियों का जमघट लगा रहेगा। नवादा में ही बिहार का इकलौत शीतल जलप्रपात है। जहां साल में 8 माह सैलानियों का आवागमन होता है। इसके अलावा मेसकौर प्रखण्ड के सीतामढ़ी में जगत जननी माता सीता की निर्वासन स्थली है। मान्यतों के अनुसार वनवास काल में माता सीता ने इसी सीतामढ़ी में निवास किया था। यहीं लवकुश का जन्म भी हुआ। जिसका प्रमाण आसपास की भौगोलिक बनावट से स्पष्ट होता है।
वारिसलीगंज प्रखण्ड के अपसढ़ गांव में नालन्दा से भी प्राचीन व तक्षशिला के समकालीन विश्वविद्यालय के अवशेष हैं। देवनगढ़ में पाषणकाल से मध्यकाल के दर्जनों अवशेष विखरे पड़े हैं। ककोलत जलप्रापत की तरह कौआकोल प्रखण्ड में मच्छंदरा जलप्रपात भी है लेकिन शासन-प्रशासन की उदासीनता के कारण बदहाल स्थिति में है। इसके अलावा नवादा का जैन मंदिर ,अपसढ़ में बराह की प्रतिमा,द्वापर कालिन हड़िया सूर्य मंदिर,नारद संग्रहालय में संग्रहित जिले की विरासत आदि ऐसे दर्जनों स्थल हैं जहां के धरोहरों व अवशेषों को महज सूरक्षित व संरक्षित कर दिया जाय तो सालो भर नालन्दा,बोधगया की तरह नवादा में भी पर्यटकों का जमघट लगा रहेगा। लेकिन विडंबना यह है कि राज्य सरकार द्वारा यहां के धरोहरों को संरक्षित या सुरक्षित करना तो दूर पर्यटन के मानचित्र से भी गायब कर दिया गया है। अन्य धरोहरों व स्थलों की बात न भी करें तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर जिले की पहचान दिलाने वाला ककोलत जलप्रापत भी पर्यटन विभाग के नक्शे से गायब है। केन्द्र सरकार ने 2004 में ककोलत के नाम पर 5 रूपये का डाक टिकट जारी कर इसे अन्तरराष्ट्रीय पहचान दी थी। बता दें ककोलत एतिहासिक,पुरातात्विक व पौराणिक ²ष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। ककोलत के समीप ही पाषण काल के उपकरण मिले हैं। गो¨वदपुर पहाड़ी श्रृखंलाओं में अवस्थित ककोलत में 150 फीट की उचाई से पानी गिरता है। यह शीतल जल के लिये सुविख्यात है। कुल मिलाकर कहा जाय तो जिले के नारदीगंज की सीमा राजगीर को तो पर्यटन के मानचित्र पर अच्छा खासा महत्व मिला है लेकिन जिले से होकर नालन्दा, बोधगया आदि जगहों पर सफर करने वाले पर्यटकों को जिले की एतिहासिक व पौराणिक धरोहरों से अनभिज्ञ रखा जा रहा है। जबकि सीमामढ़ी को रामायण सर्किट में शामिल कर तथा नवादा व हिसुआ के जैन मंदिर को जैन सर्किट में शामिल कर नवादा में भी पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता था।
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