लोकसभा चुनावों में जमानत तक नहीं बचा सके बिहार के 7,737 प्रत्याशी, 1996 में 1325 उम्मीदवारों का हुआ था बुरा हाल
खेल हो या राजनीति का मैदान हार-जीत एक सामान्य प्रक्रिया है। हारने वाला दोबारा दोगुने उत्साह से मैदान में उतरता भी है। यूं कहें कि सम्मानजनक तरीके से हारने पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन चुनाव में यदि किसी की जमानत जब्त हो जाए तो यह काफी टीस देने वाला होता है। उन्हें उपहास का पात्र बनाने का प्रयास किया जाता है।
व्यास चंद्र, पटना। खेल हो या राजनीति का मैदान, हार-जीत एक सामान्य प्रक्रिया है। सम्मानजनक तरीके से हारने पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन चुनाव में जमानत जब्त होना टीस देने वाला होता है। ऐसे लोगों को उपहास का पात्र बनाने का प्रयास किया जाता है।
ऐसे प्रत्याशियों को जमानत के पैसे जाने का उतना गम नहीं होता, जितनी मायूसी जमानत जब्त होने की घोषणा दे जाती है। आंकड़े प्रमाण हैं कि 1951 से 2019 तक के लोकसभा चुनावों में बिहार के 7,737 प्रत्याशियों को इस असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है। इनमें निर्दलियों साथ-साथ राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी तक शामिल हैं।
1996 में सबसे ज्यादा प्रत्याशियों की जब्त हुई जमानत
देश के पहले चुनाव में संयुक्त बिहार के 67 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। इनमें राष्ट्रीय एवं निर्दलीय लगभग बराबर संख्या में थे। राष्ट्रीय पार्टियों के 32 तो निर्दलीय 33 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे।जैसे-जैसे लोकतंत्र मजबूत होता गया, लोगों को वोट का महत्व समझ आने लगा, जमानत नहीं बचा पाने वालों की संख्या भी बढ़ती चली गई।
1996 के चुनाव में रिकार्ड 1325 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। यह संख्या अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा थी। इनमें सबसे ज्यादा निर्दलीय 1,101 प्रत्याशी थे।
इसके बाद जमानत गंवाने वाले उम्मीदवारों की संख्या पांच सौ के आसपास रहती रही है। 1996 के चुनाव में ऐसे प्रत्याशियों की कुल संख्या 1,448 थी।
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