एक स्कूल जहां मुस्लिम बच्चे भी पढ़ते संस्कृत, धाराप्रवाह बोलते श्लोक
दरभंगा के त्रिवेणी संस्कृत मध्य विद्यालय में मुस्लिम छात्र-छात्राएं भी धाराप्रवाह संस्कृत के श्लाेक बोलते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में ये खास बातें।
By Amit AlokEdited By: Updated: Fri, 09 Feb 2018 11:38 PM (IST)
दरभंगा [जेएनएन]। संस्कृत और उर्दू को लेकर आम धारणा बनाई गई कि यह धर्मविशेष की भाषा है। यह धारणा टूटती है मिथिला की धरती पर। यहां हायाघाट के त्रिवेणी संस्कृत मध्य विद्यालय में मुस्लिम घरों के तीन दर्जन बच्चे संस्कृत पढ़ते हैं। इस विषय में सबसे अधिक नंबर लाते हैं। धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं। संस्कृत के सहारे ही करियर चमकाने की सोच रहे। वे संस्कृत शिक्षक बनेंगे।
संस्कृत में ऊंची पढ़ाई कर डिग्री की चाह दरभंगा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर हायाघाट प्रखंड के रघुनाथपुर गांव में है संस्कृत विद्यालय। 1950 में इस विद्यालय की स्थापना हुई और 1971 में मान्यता मिली। यहां वर्ग छह से आठ तक की पढ़ाई होती है। कुल 120 छात्र-छात्राओं में 38 मुस्लिम हैं। सुबह जब बच्चे जोर-जोर से संस्कृत के श्लोक गा रहे होते हैं, तो हम भी उसका अर्थ समझने की कोशिश करते रहते हैं। कक्षा आठ में पढ़ने वाली नुजहत परवीन, आरिस खातून और सादिया परवीन कहतीं हैं कि हमें संस्कृत के श्लोक याद करने में बहुत मजा आता है। जीवन को सुखमय बनाने वाली बातें होती हैं। वह खुद संस्कृत पढ़कर शिक्षक बनना चाहती है।
आरिफा के पिता रघुनाथपुर निवासी मो. निजामुद्दीन और अंजरी के पिता मो. ओजैर कहते हैं कि किसी भाषा का ज्ञान बुरा नहीं है। न ही उसका किसी मजहब से वास्ता है।
कभी होती थी आचार्य तक की पढ़ाई स्कूल के सेवानिवृत्त प्राचार्य बैद्यनाथ झा ने कहा कि 1981 तक पहली कक्षा से लेकर आचार्य (एमए के समतुल्य) तक पढ़ाई होती थी। बाद में सरकार की नीतियां बदलीं तो इसे मिडिल स्कूल का दर्जा दे दिया गया। यह बिहार संस्कृत बोर्ड से जुड़ा है। भवन और दूसरी दिक्कतों से स्कूल समिति जूझती है लेकिन स्कूल की अलग पहचान को लेकर समझौता नहीं होता।
प्राचार्य आरती कुमारी कहती हैं कि हम संसाधनों को लेकर चिंतित रहते हैं लेकिन पठन-पाठन पर उसका असर नहीं दिखता। बच्चों को किताबें और छात्रवृत्ति मिलती है। मेहनती और मेधावी बच्चे हैं। इनकी बदौलत क्षेत्र में संस्कृत पढ़ने वालों की संख्या बढ़ी है। मिथिला में संस्कृत को मिलता रहा है महत्व गांव के लोग कहते हैं कि मिथिला के महाराजा कामेश्वर सिंह ने पूरे देश में संस्कृत और विज्ञान के प्रसार के लिए संस्थाएं गठित कराईं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से लेकर देश के कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की स्थापना में योगदान किया। कामेश्वर सिंह संस्कृत विवि के लिए जमीन दी थी। यह पूरे बिहार का अकेला संस्कृत विश्वविद्यालय है। उस विश्वविद्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मुस्लिम बच्चों को संस्कृत पढ़ता देख लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं। बच्चे इससे खुश होते हैं। उन्हें लगता है कि वे खास हैं और उनके करियर के लिए यह अच्छी बात है।
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