बिहार की नवगठित एनडीए सरकार के शक्ति परीक्षण के समय जो राजद विद्रोह का सिलसिला चला था वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। लोकसभा चुनाव के लिए राजद उम्मीदवारों की घोषणा के बाद से पार्टी के कई कद्दावर नेता राजद से इस्तीफा दे चुके हैं। इन नेताओं में अशफाक करीम देवेंद्र यादव बुलो मंडल बृषिण पटेल का नाम प्रमुख है।
सुनील राज, पटना। राष्ट्रीय जनता दल में विधानसभा में बहुमत परीक्षण के समय से विद्रोह का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लोकसभा ऐन चुनाव के बीच भी जारी है।
लोकसभा चुनाव में जब पार्टी के एक-एक नेता और कार्यकर्ता संगठन की मजबूती के लिए झंडा उठाकर चलते हैं, वैसे समय में राजद के बड़े नेता राजद सुप्रीमो लालू यादव पर पार्टी की नीति और टिकट बंटवारे में सिद्धांतों को दरकिनार करने के आरोप लगाकर पार्टी से अलग हो रहे हैं।
गुरुवार को भागलपुर के पूर्व सांसद और राजद के पुराने नेता शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल ने भी जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली। बुलो मंडल ने आरोप लगाया राजद में लोकतंत्र नाम की चीज नहीं बची है।
टिकट बंटवारे से शुरू हुई थी रार
बुलो मंडल पहले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्होंने राजद को अलविदा कहा। लोकसभा चुनावों का एलान होने और महागठबंधन में टिकटों का बंटवारे के साथ ही पार्टी में विद्रोह की आवाज उठनी शुरू हो गई थी।
नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह की पहली आवाज नवादा संसदीय क्षेत्र से उठी। राजद के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव के छोटे भाई विनोद यादव नवादा संसदीय सीट से टिकट चाहते थे।
लेकिन पार्टी नेतृत्व ने यहां से श्रवण कुशवाहा को उम्मीदवार सौंप दी। जिसके बाद विनोद यादव ने पार्टी से इस्तीफा करते हुए निर्दलीय उम्मीदवारी ठोंक दी है।
राजद छोड़ जदयू में शामिल हुए अशफाक करीम
विनोद के बाद पूर्व राज्यसभा सदस्य अशफाक करीम ने राजद छोड़ी। अशफाक करीब आश्वस्त थे कि उन्हें कटिहार संसदीय सीट से चुनाव लडऩे का मौका मिलेगा। लेकिन कटिहार सीट कांग्रेस के पाले में चली गई और तारिक अनवर यहां से उम्मीदवार बनाए गए। अशफाक करीब अब जदयू के साथ हैं।
बृषिण पटेल भी कह चुके हैं बाय-बाय
बृषिण पटेल प्रदेश राजद के उपाध्यक्ष थे। जनता दल के टिकट पर सिवान से सांसद और नीतीश सरकार में मंत्री रहे बृषिण पटेल वैशाली से उम्मीदवारी चाहते थे। टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भी पार्टी को अलविदा कह दिया।
देवेंद्र यादव भी छोड़ चुके हैं साथ
इन नेताओं के बाद नंबर आया पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र यादव का। देवेंद्र यादव झंझारपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे। झंझारपुर संसदीय सीट पर पहली बार 1989 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1991 और 1996 में भी झंझारपुर ने उन्हें संसद तक पहुंचाया।देवेंद्र की यह जीत का सिलसिला यहीं नहीं रुका। 1999 में जदयू और 2004 में राजद के सिंबल पर झंझारपुर से जीत दर्ज की।
वे एक बार फिर इस सीट से उम्मीदवारी चाहते थे। लेकिन राजद ने झंझारपुर सीट विकासशील इंसान पार्टी को दे दी। वीआइपी के टिकट पर सुमन कुमार महासेठ झंझारपुर से उम्मीदवार हैं। पार्टी के इस निर्णय से नाराज देवेंद्र यादव ने पार्टी छोड़ दी।
बुलो मंडल ने राजद से दिया इस्तीफा
इस कड़ी में अगला नाम शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल का है। बुलो मंडल ने भागलपुर संसदीय सीट से 2014 में भाजपा के शाहनवाज हुसैन को पराजित कर यह सीट अपने नाम की थी।
राजद के टिकट पर भागलपुर से लडऩे वाले बुलो मंडल एक बार फिर दावेदारी चाहते थे। लेकिन भागलपुर लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस के खाते में आ गया और कांग्रेस ने यहां से पार्टी के विधायक और पुराने नेता अजीत शर्मा को अपना उम्मीदवार बना दिया। बहरहाल यह तो रही लोकसभा चुनाव की बात।
फ्लोर टेस्ट के दिन 3 विधायकों ने छोड़ा था साथ
राजद के अंदर नेतृत्व को लेकर नाराजगी इस कदर है कि 12 फरवरी को जिस दिन बिहार विधानसभा में नीतीश सरकार का शक्ति परीक्षण होना था, उसी दिन पार्टी के तीन विधायक नीलम देवी, चेतन आनंद और प्रह्लाद यादव इसके बाद संगीता देवी और भरत बिंद ने भी पार्टी छोड़ दी।
इसके बावजूद पार्टी नेतृत्व की ओर से मसले पर न कोई पक्ष रखा गया न ही किसी प्रकार की कार्रवाई ही की गई। राजद के अंदर नेतृत्व को लेकर आग अब तक ठंडी नहीं पड़ी है।
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