विधायक बनने के बाद कर्पूरी ने दोस्त से कोट मांगकर की थी विदेश यात्रा
गरीब-गुरबों के फिक्रमंद कला-संस्कृति के प्रेमी और सादगी से अपना जीवन व्यतीत करने वाले राजनेता गिने-चुने मिलेंगे
By JagranEdited By: Updated: Tue, 13 Oct 2020 08:24 PM (IST)
प्रभात रंजन, पटना। गरीब-गुरबों के फिक्रमंद, कला-संस्कृति के प्रेमी और सादगी से अपना जीवन व्यतीत करने वाले राजनीति में शायद गिने-चुने लोग मिलते हैं। बिहार की सियासत में अपनी पहचान बनाने वाले राजनेताओं में कर्पूरी ठाकुर को जननायक की उपमा दी जाती है। उनके जीवन से जुड़े किस्से नई पीढ़ी को प्रेरणा देते हैं।
उन्हें नजदीक से जानने वाले चिंतक प्रेम कुमार मणि कहते हैं, कर्पूरी जी की सादगी को देखकर दूसरे लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे। वर्ष 1952 में वे पहली बार विधायक बने थे। इसी बीच उन्हें विदेश जाने का मौका मिला। आस्ट्रिया जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में उनका चयन हुआ था। विदेश जाने के लिए वे उत्सुक थे, लेकिन उनके पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं थे। ऐसे में उन्होंने एक मित्र से कोट मांगा। वहीं फटा हुआ कोट पहनकर उन्होंने विदेश की यात्रा की थी। उनका पूरा जीवन संघर्ष से भरा रहा। 1978 में बिहार का मुख्यमंत्री रहते हुए जब उन्होंने हाशिये पर खड़े वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू किया तो विपक्ष में बैठे नेताओं से उन्हें भला-बुरा भी सुनना पड़ा था। बूथ लूट के खिलाफ भी उठाते रहे आवाज : यह वह दौर था, जब बिहार में होने वाले चुनावों में धनबल और बाहुबल का प्रयोग खुलेआम होता था। कर्पूरी इसका विरोध करते रहे। वह हमेशा ईमानदार और स्वच्छ छवि के उम्मीदवारों को ही टिकट देने के पक्षधर रहे।
वंशवाद के घोर विरोधी थे कर्पूरी : कर्पूरी ठाकुर लोकदल से जुड़े थे। उनके बारे में उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिन्हा 1985 का एक किस्सा बताते हैं। प्रजातांत्रिक पद्धति के अंतर्गत लोकदल में पार्टी के संसदीय बोर्ड को चुनाव में उम्मीदवारों को टिकट बंटवारे की खुली छूट थी। जागेश्वर मंडल संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे। केंद्रीय नेतृत्व ने राजनारायण को प्रभारी बनाकर पटना भेजा था। संसदीय बोर्ड ने कर्पूरी ठाकुर को समस्तीपुर से और उनके बेटे रामनाथ ठाकुर को कल्याणपुर क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था। जब कर्पूरी को इसकी भनक लगी, तब तक राज नारायण दिल्ली जाने के लिए हवाई जहाज में बैठ चुके थे। कर्पूरी किसी तरह हवाई जहाज तक पहुंचे और राज नारायण से उम्मीदवारों की सूची दिखाने का आग्रह किया। सूची में अपने बेटे का नाम देख भड़क गए और सूची से अपना नाम कटा कर लिख दिया कि वे चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं हैं। इस घटना के बाद पार्टी में हड़कंप मच गया। सभी लोग दौड़े-दौड़े कर्पूरी के पास पहुंचे और उनसे चुनाव लड़ने का अनुरोध किया। सभी ने कहा कि रामनाथ वर्षो से राजनीति में है और पार्टी की सेवा कर रहे हैं। कर्पूरी ने कहा कि वह किसी भी तरह से राजनीति में वंशवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहते। आखिरकार पार्टी के वरीय नेताओं ने रामनाथ ठाकुर की कल्याणपुर से उम्मीदवारी खत्म की, तब जाकर कर्पूरी चुनाव लड़ने को तैयार हुए और जीत हासिल की।
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