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वैशाली की नगरवधू 'आम्रपाली' वेश्या से कैसे बनी बौद्ध भिक्षुणी...जानिए

खूबसूरत होने के कारण मात्र ग्यारह साल की उम्र में ही परंपराओं की भेंट चढ गयी थी एक लड़की जिसे वैशाली की नगरवधू बना दिया गया था। वो थी आम्रपाली जिसने बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Sat, 06 Aug 2016 07:40 AM (IST)
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वैशाली की नगरवधू 'आम्रपाली' वेश्या से कैसे बनी बौद्ध भिक्षुणी...जानिए

पटना [काजल]। उसकी खूबसूरती ही उसके लिए काल बन गई थी। बला की खूबसूरत होने के कारण ही उसे मात्र ग्यारह साल की उम्र में ही उसे गणिका बना दिया गया क्योंकि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके पिता को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा और उसने ग्यारह वर्ष की इतनी कम आयु में ही गणिका के रूप में अपने जीवन की शुरूआत की।

वैशाली की नगरवधू के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने वाली एक गणिका से भिक्षुणी बनी आम्रपाली का जीवन काफी रोचक है। इतिहासकारों के अनुसार अपने सौंदर्य की ताकत से कई साम्राज्य को मिटा देने वाली आम्रपाली का जन्म आज से करीब 25 सौ वर्ष पूर्व वैशाली के आम्रकुंज में हुआ था।

वह वैशाली गणतंत्र के महनामन नामक एक सामंत को यूं ही बाग में पड़ी मिली थी और बाद में वह सामंत राजसेवा से त्याग पत्र देकर आम्रपाली को लेकर अंबारा गाँव चला आया। जब आम्रपाली की उम्र करीब 11 वर्ष हुई तो सामंत उसे लेकर फिर वैशाली लौट आया।

आम्रपाली इतनी खूबसूरत थी कि 11 वर्ष की छोटी-सी उम्र में ही वैशाली गणतंत्र के कानून के अनुसार हजारों सुंदरियों में आम्रपाली का चुनाव कर उसे सर्वश्रेष्ठ सुंदरी घोषित कर जनपद कल्याणी की पदवी दी गई थी औैर उसे पूरे जनपद के लिए नगरवधू या वैशाली जनपद 'कल्याणी' बना दिया गया था।

मगध सम्राट बिंबसार ने आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर जब आक्रमण किया तब संयोगवश उसकी पहली मुलाकात आम्रपाली से ही हुई। आम्रपाली के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध होकर बिंबसार पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठा। माना जाता है कि आम्रपाली से प्रेरित होकर बिंबसार ने अपने राजदरबार में राजनर्तकी के प्रथा की शुरुआत की थी।

आम्रपाली देशभक्ति की परीक्षा में भी खरी उतरी थी। अजातशत्रु से प्रेम होने के बावजूद देशप्रेम की ख़ातिर अजातशत्रु के अनुग्रह को अस्वीकार कर उसने अपने प्रेम की आहूति देना स्वीकार किया, परन्तु अपने देश और राजा से विश्वासघात करने से इनकार कर दिया।

आम्रपाली के रूप की चर्चा जगत प्रसिद्ध थी और उस समय उसकी एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के अनेक राजकुमार उसके महल के चारों ओर अपनी छावनी डाले रहते थे। वैशाली में गौतम बुद्ध के प्रथम पदार्पण पर उनकी कीर्ति सुनकर उनके स्वागत के लिए आम्रपाली सोलह श्रृंगार कर अपनी परिचारिकाओं सहित गंडक नदी के तीर पर पहुँची।

आम्रपाली को देखकर बुद्ध को अपने शिष्यों से कहना पड़ा कि तुम लोग अपनी आँखें बंद कर लो..., क्योंकि भगवान बुद्ध जानते थे कि आम्रपाली के सौंदर्य को देखकर उनके शिष्यों के लिए संतुलन रखना कठिन हो जाएगा।

उस युग में राज नर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे "आर्या अंबा" कहकर संबोधित किया था।

आम्रपाली ने आम्रकानन में भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों को निमंत्रित कर भोजन कराया था और दक्षिणा के रूप में उसने संघ को आमों का अपना बगीचा भी दान कर दिया था और वहां 'विहार' का निर्माण करने का आग्रह किया।

एक गणिका का जीवन बिताते हुए बुद्ध के उपदेश से प्रभावित हो आम्रपाली बुद्ध और उनके संघ की अनन्य उपासिका हो गई थी और उसने अपने पाप के जीवन से मुख मोड़कर अर्हत् का जीवन बिताना स्वीकार किया।गणिका जीवन से धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से इन्कार कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर नारियों को भी उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया।

इस घटना के बाद ही बुद्ध ने स्त्रियों को बौद्ध संघ में प्रवेश की अनुमति दी थी। आम्रपाली इसके बाद सामान्य बौद्ध भिक्षुणी बन गई और वैशाली के हित के लिए उसने अनेक कार्य किए। उसने केश कटा कर भिक्षा पात्र लेकर सामान्य भिक्षुणी का जीवन व्यतीत किया।

माना जाता है कि आम्रपाली के मानवीय तत्व से ही प्रभावित होकर भगवान बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की थी। इस संघ के जरिए भिक्षुणी आम्रपाली ने नारियों की महत्ता को जो प्रतिष्ठा दी वह उस समय में एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।

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