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Bihar Politics: विजय सिन्हा जैसा ही हाल होगा अवध बिहारी चौधरी का? 12 फरवरी को हो सकता है बड़ा खेला

Bihar Political News बिहार विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी अपने पद से त्याग पत्र देंगे या मतदान का मुकाबला करेंगे यह निर्णय 12 फरवरी को होगा। उसी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सदन में विश्वास मत का प्रस्ताव पेश करेंगे। उससे पहले चौधरी को पद से हटाने के लिए दी गई नोटिस की चर्चा होगी।उसके बाद आसन पर उपाध्यक्ष या कोई अन्य पीठासीन सदस्य बैठेंगे।

By Arun Ashesh Edited By: Sanjeev KumarUpdated: Sat, 03 Feb 2024 02:51 PM (IST)
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अवध बिहारी चौधरी और विजय सिन्हा (जागरण)
 राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Political Crisis: बिहार विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी अपने पद से त्याग पत्र देंगे या मतदान का मुकाबला करेंगे, यह निर्णय 12 फरवरी को होगा। उसी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सदन में विश्वास मत का प्रस्ताव पेश करेंगे। उससे पहले अवध बिहारी चौधरी (Awadh bihar Chaudhary) को पद से हटाने के लिए दी गई नोटिस की चर्चा होगी।उसके बाद आसन पर उपाध्यक्ष या कोई अन्य पीठासीन सदस्य बैठेंगे।

इसी व्यवस्था में विश्वास मत की प्रक्रिया पूरी होगी।विश्वास मत में सरकार के जीत जाने के बाद भी चौधरी त्याग पत्र नहीं देते हैं तो उन्हें हटाने के लिए मतदान होगा। यह सब 24 अगस्त 2022 को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) को पद से हटाने की तर्ज पर होगा। 

12 फरवरी को क्या होगा?

12 फरवरी को राज्यपाल विधानसभा के विस्तारित सेंट्रल हाल में विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करेंगे। उसके बाद विधानसभा और विधान परिषद की अलग-अलग कार्यवाही शुरू होगी। विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के आसन पर बैठते ही सत्तारूढ़ दल के सदस्य उठ कर कहेंगे कि अध्यक्ष को हटाने के लिए नोटिस दिया गया है।

इसलिए उनकी अध्यक्षता में सदन की कार्यवाही नहीं चल सकती है। अध्यक्ष आसन छोड़ कर चले जाएंगे। उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी की अध्यक्षता में सदन की कार्यवाही शुरू होगी।उसी समय सरकार की ओर से विश्वास मत का प्रस्ताव पेश होगा। मतदान होगा।

विजय सिन्हा ने क्या किया था?

 Bihar News: 24 अगस्त 2022 को लगभग ऐसी ही स्थिति आने पर विजय सिन्हा ने पहले भाषण दिया और आसन की जवाबदेही वरिष्ठ विधायक नरेंद्र नारायण यादव को देकर अपने कक्ष में चले गए। फिर बिना नोटिस पर मतदान के उन्होंने त्याग पत्र दे दिया। सरकार का विश्वास मत का प्रस्ताव भी पारित हो गया।

 दोनों स्थिति में है अंतर है

दो साल पहले और आज की परिस्थिति में अंतर है। उस समय गठबंधन से अलग होने के बाद भी भाजपा सरकार बनाने का प्रयास नहीं कर रही थी।अभी महागठबंधन के घटक दल सरकार बनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। इसलिए चौधरी की नजर सरकार के विश्वासमत के परिणाम पर भी टिकी हुई है।

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