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बिहारः मंत्री जमा खान के पूर्वज भगवान सिंह आठ सौ वर्ष पहले बन गए थे मो. पहाड़ खान, बरकरार है रिश्ते की डोर

हाल ही में बिहार के मंत्री जमा खान ने कहा था कि उनके पूर्वज हिंदू थे। जमा के पूर्वज भगवान सिंह के राजस्थान से बिहार आने और मो. पहाड़ खान बन जाने की दास्तान आठ सौ वर्षों के बाद भी कैमूर जिले के गांवों में लोगों की जुबान पर है।

By Akshay PandeyEdited By: Updated: Mon, 12 Jul 2021 07:53 PM (IST)
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बिहार सरकार के अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण मंत्री जमा खान। जागरण आर्काइव।
अरविंद शर्मा, पटना : बिहार सरकार के अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण मंत्री जमा खान ने खुद को हिंदू पूर्वज की औलाद बताकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की बात को आगे बढ़ाया है। जमा खान के पूर्वज भगवान सिंह के राजस्थान से बिहार आने और मो. पहाड़ खान बन जाने की दास्तान आठ सौ वर्षों के बाद भी कैमूर जिले के गांवों में लोगों की जुबान पर है, जो हिंदू-मुस्लिम के डीएनए के एक होने का सबूत भी है। एक किमी के अंतर पर दो गांव हैं-नौघरा और सरैया। दोनों को दो भाइयों ने बसाया। एक में मुस्लिम आबादी है तो दूसरे में हिंदू।

दोनों का सदियों का साथ है। रीति-रिवाज में भी बहुत फर्क नहीं। ईद-होली साथ मनती है। जीवन-मरण में पट्टीदारी (गोतियारो) चलती है। मतांतरण के बाद भी परंपराएं पूरी तरह नहीं बदलीं। पुरोहित को फसल का अग्रभाग दिया जाता है। शादियों में हिंदुओं की तरह ही हल्दी के उबटन लगाए जाते हैं। मड़वा (मंडप) की रस्म होती है। जमा खान के चचेरे भाई राजा खान बताते हैैं कि तीन दशक पहले तक नौघरा के मुस्लिमों में निकाह से पहले वैदिक मंत्र भी पढ़े जाते थे। दोनों गांवों के पुरोहित भी एक ही थे-रामप्रसाद तिवारी। उनके पुत्र कैलाश तिवारी तक यह परंपरा चलती रही थी। उसके बाद शिथिल होती गई।

धर्म बदलकर भगवान बन गए पहाड़ खान

मंत्री जमा खान की कहानी महिमन सिंह से शुरू होती है, जो वैस राजपूत थे। सरैया के निवासी और जयराम सिंह के वंशज आनंद सिंह के मुताबिक 12वीं शताब्दी में गुलाम वंश के बख्तियार खिलजी का दौर था। बनारस से सटे कैमूर जिले के चैनपुर स्टेट में गहरवाल वंश के शालिवाहन का राज था। राजस्थान के बांसवाड़ा से आकर महिमन सिंह ने चैनपुर में शरण ली। उनके दो पुत्र थे भगवान सिंह और जयराम सिंह। भगवान सिंह ने चैनपुर स्टेट की सेना में नौकरी कर ली। ओहदा बढ़ा तो सेनापति बन गए। 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाने से पहले खिलजी ने चैनपुर पर आक्रमण कर दिया और हरा दिया। भगवान को मजबूरन मतांतरण करना पड़ा। विशालकाय शरीर के कारण उनका नाम मो. पहाड़ खान दिया गया। उनके वंशज नौघरा गांव में बसे हैैं। दूसरे भाई जयराम सिंह के वंशज पास के गांव मलिक सराय में हैैं। स्थानीय लोग इसे सरैया भी कहते हैैं। 

कैमूर जिले के चैनपुर में राजा शालिवाहन के किले का मुख्य द्वार। इस्लाम कबूल करने के पहले भगवान सिंह इसी राज के सेनापति थे।

मय्यत और पैदाइश में साथ-साथ

सदियों ने दोनों गांवों की आबादी भले बढ़ाई है, फासला नहीं। पैदाइश का मौका हो या मय्यत का, भाई की तरह एक-दूसरे के काम आते हैं। अंतिम यात्रा में मुस्लिमों का भी कंधा नसीब होता है और मय्यत में हिंदू भी मिट्टी देने जाते हैैं। परंपराएं परस्पर चलती हैं। खेती-बधारी भी भाईचारे की नजीर है। एक तरफ मुन्ना सिंह का खेत है तो दूसरी तरफ जमा खान का, जो बताता है कि भाइयों में बंटवारा भी उसी तरह से हुआ होगा। रहन-सहन भी समान है। नौघरा के बुजुर्ग आज भी धोती-कुर्ता पहनते हैैं। लंबी दाढ़ी रखने से परहेज करते हैं। उन्हें देखकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि कौन हिंदू है और कौन मुस्लिम। चैनपुर में आज भी राजा शालिवाहन के किले का अवशेष और पहाड़ खान का मजार है। अवसर विशेष पर दोनों गांव के लोग साथ-साथ शिरकत करते हैैं।

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