सिजेरियन प्रसव के खतरों से अंजान राजधानी पटना, हर 5वें नवजात की ऑपरेशन से हो रही डिलीवरी
Cesarean Delivery Side Effects सिजेरियन प्रसव को चिकित्सा में क्रांति से कम नहीं माना जाता है। जटिल परिस्थितियों में सिजेरियन प्रसव के जरिये गर्भवती व बच्चे की जान बचाना संभव हो पाता है। हालांकि सिजेरियन के कई नुकसान भी हैं। इससे प्रसूता को कई दुष्प्रभावों तो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की आशंका बढ़ जाती है। इसके बावजूद पटना में हर पांचवां प्रसव सिजेरियन से हो रहा है।
जागरण संवाददाता, पटना। Cesarean Delivery: प्रसव-प्रक्रिया कोई रोग नहीं, प्रजनन की सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। गर्भाशय में चीरा लगा सिजेरियन विधि से प्रसव जच्चा या बच्चे की जान बचाने का अंतिम विकल्प है।
इस विधि से प्रसूता की जान को कोई खतरा नहीं होता, लेकिन बेवजह सिजेरियन से प्रसूता को कई दुष्प्रभावों तो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की आशंका बढ़ जाती है। इसे जानते-बूझते हुए राजधानी पटना (Bihar Caesarean Delivery Report) में हर पांचवां प्रसव सिजेरियन से हो रहा है।
बिहार की राजधानी पटना में 22.2 प्रतिशत सिजेरियन प्रसव हो रहे हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 18.8 प्रतिशत से अधिक हैं। हालांकि, प्रदेश में सिजेरियन प्रसव का औसत 4.5 प्रतिशत ही है।
कई चिकित्सकीय शोध में यह साबित हो चुका है कि देश में जितने सिजेरियन हो रहे हैं उनमें से 70 से 80 प्रतिशत को सामान्य विधि से कराया जा सकता है।चिकित्सा विशेषज्ञ सिजेरियन बढ़ने के पीछे प्रसूता की मांग को बता रही हैं। पीएमसीएच व एनएमसीएच जैसे पूर्ण सरकारी मेडिकल कालेजों में भी 50 से 60 प्रतिशत प्रसव सिजेरियन विधि से हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के आधार पर पवन कुमार मिश्र की रिपोर्ट
सिजेरियन प्रसव कब जरूरी?
- जब बच्चे की पेट में पोजिशन सही नहीं हो।
- शिशु के गले में गर्भनाल उलझ-फंस गई हो।
- गर्भस्थ शिश के दिल की धड़कन असामान्य हो।
- बच्चे को विकास संबंधी कोई गंभीर समस्या हो।
- पेट में दो या उससे अधिक शिशु हों।
- गर्भ में बच्चे को पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिल पा रही हो।
- शिशु का सिर बर्थ कैनाल से काफी बड़ा हो।
- प्री-मैच्योर डिलिवरी जैसे सात या आठ माह में हो रही हो।
- प्रसूता को हृदय, बीपी, थायराइड जैसा कोई रोग हो।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
आइजीआइसी पटना के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. बीरेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि बेवजह सिजेरियन से माताओं में दूरगामी दुष्प्रभाव तो होते ही होंगे, लेकिन शिशुओं को जन्म के साथ ही इसका नुकसान उठाना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि मां अपने नवजात को पहले घंटे निकलने वाले अमृत कोलेस्ट्रम दूध नहीं पिला पाती। कई दिन मां का दूध नहीं मिलने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, तो कई बार वह स्तन को ठीक से चूस नहीं पाता, जिसके अभाव में मांओं में पर्याप्त दूध बनना बंद हो जाता है।
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जिला | कुल प्रसव | सिजेरियन | प्रतिशत |
पटना | 56461 | 12543 | 22.2% |
गया | 49772 | 5542 | 11.1% |
भोजपुर | 35343 | 3609 | 10.2% |
मुंगेर | 21180 | 2000 | 10.2% |
रोहतास | 25289 | 2236 | 9.4% |
मुजफ्फरपुर | 64633 | 4834 | 8.8% |
नालंदा | 40437 | 2688 | 6.6% |
भागलपुर | 56168 | 3721 | 6.6% |
दरभंगा | 56519 | 3494 | 6.2% |
सिवान | 35245 | 2171 | 6.2% |
जून 2024 तक सिजेरियन में फिसड्डी जिले
जिला |
कुल प्रसव | सिजेरियन | प्रतिशत |
कटिहार | 65571 | 372 | 0.6% |
समस्तीपुर | 82030 | 529 | 0.6% |
सारण | 52783 | 397 | 0.8% |
अरवल |
9206 | 75 | 0.8% |
खगड़िया |
42388 | 377 | 0.9% |
अररिया |
63545 | 572 | 0.9% |
शिवहर | 13654 | 154 | 1.1% |
सुपौल |
51755 | 587 | 1.1% |
सहरसा | 46987 | 561 | 1.2% |
सहरसा | 46987 | 561 | 1.2% |
बांका | 40637 | 532 | 1.3% |