वैसे राज्य की जनसंख्या 13 करोड़ सात लाख 25 हजार 310 है, लेकिन इसकी तुलना में 92 लाख 8 हजार 823 लोग स्नातक हैं।यह शिक्षित समाज के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। जबकि, सरकार कुल बजट का 21-22 प्रतिशत राशि शिक्षा पर खर्च कर रही है। बिहार में जाति आधारित गणना के शैक्षणिक आंकड़े में यह सच्चाई सामने आई है।
रिपोर्ट के 17 पन्नों में दी जानकारी
बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में नीतीश सरकार ने जाति आधारित गणना की आर्थिक व शैक्षणिक रिपोर्ट मंगलवार को सदन में पेश की है। इसमें शैक्षणिक आंकड़े की जानकारी कुल सत्रह पृष्ठ में दी गई है।इस आंकड़े का आकलन करने पर मेडिकल-इंजीनियरिंग स्नातक शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या चौंकाने वाली है। राज्य में मेडिकल और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट तक शिक्षा प्राप्त लोग महज एक प्रतिशत (0.36) से भी कम हैं।
इनमें इंजीनियरिंग स्नातक 0.30 प्रतिशत तथा मेडिकल स्नातक तक शिक्षा पाए लोग 0.06 प्रतिशत हैं। इसी तरह राज्य की कुल आबादी में सामान्य स्नातक तक शिक्षा हासिल किए लोगों की संख्या मात्र 6.11 प्रतिशत है।यही हाल आइटीआइ डिप्लोमा धारकों की है। राज्य में आइटीआइ डिप्लोमा तक शिक्षा पाए लोग एक प्रतिशत से भी कम है। यानी ऐसे लोगों की संख्या महज 0.58 प्रतिशत है।
32 प्रतिशत से ज्यादा लोग नहीं गए विद्यालय
सरकार की शैक्षणिक गणना की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार की 22.67 आबादी ने कक्षा एक से पांचवीं तक की शिक्षा हासिल की है।
कक्षा छह से आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या 14.33 प्रतिशत है। जबकि, कक्षा नौवीं से दसवीं तक शिक्षा हासिल किए लोग 14.71 प्रतिशत हैं।कक्षा 11वीं से 12वीं तक की शिक्षा हासिल किए 9.19 प्रतिशत लोग हैं। कुल आबादी में 7.05 प्रतिशत लोगों ने स्नातक की शिक्षा हासिल की है। यानी कुल 67.9 प्रतिशत लोग स्कूल-कालेज गए हैं।जबकि 32.1 प्रतिशत लोग विद्यालय नहीं गए हैं। विद्यालय नहीं जाने वालों में ज्यादातर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग की सर्वाधिक संख्या है।
स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल करने वाले एक प्रतिशत से भी कम
सरकार की शैक्षणिक गणना रिपोर्ट इस मायने में और दिलचस्प है कि यहां के लोग स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल करने में काफी पीछे हैं।कुल आबादी के परिप्रेक्ष्य में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल करने वाली आबादी की पड़ताल करें तो यह एक प्रतिशत (0.82) से भी कम पर आकर ठहरता है।जब स्नातकोत्तर डिग्री धारक ही कम हैं तो डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले तो गिनती के ही होंगे। इसलिए राज्य में डाक्टरेट/सी.ए. मात्र 0.07 प्रतिशत हैं।
शिक्षा में कायस्थ अव्वल, मुसहर समाज सबसे पीछे
सरकार की जाति आधारित गणना की रिपोर्ट में प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई करने वालों की जातिवार संख्या भी पेश की गई है।इस रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा प्राप्ति के मामले में कायस्थ जाति सबसे आगे है, जबकि मुसहर समाज पढ़ाई में सबसे पीछे है।
बिहार की आबादी में शैक्षणिक स्थिति का आकलन करें तो शिक्षा हासिल करने में सामान्य वर्ग के लोग अव्वल हैं। वहीं, शिक्षा ग्रहण करने में पिछड़ा वर्ग दूसरे स्थान पर है।अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति चौथे स्थान पर है। स्नातक की शिक्षा हासिल किए लोगों में भी कायस्थ जाति के लोग आगे हैं, जबकि मुसहर जाति सबसे पीछे।इसे इस रूप में जान लें कि 29.38 प्रतिशत कायस्थ स्नातक हैं, जबकि मुसहर जाति में महज 0.18 प्रतिशत ही स्नातक तक शिक्षा पाए हैं।
सामान्य वर्ग में 13.14 फीसदी स्नातक
रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य वर्ग में 13.14 प्रतिशत स्नातक शिक्षा प्राप्त लोग हैं। जबकि पिछड़ा वर्ग में 6.77 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 4.27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति में 3.05 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति में 3.40 प्रतिशत लोग स्नातक हैं।स्नातकोत्तर में सामान्य वर्ग में 2.50 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग में 0.81 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 0.43 प्रतिशत, अनुसूचित जाति में 0.28 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति में 0.27 प्रतिशत लोग हैं।
सभी जातियों में राज्य भर में 6.11 प्रतिशत स्नातक और 0.82 प्रतिशत लोग स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त हैं। राज्य में 3 लाख 92 हजार 364 इंजीनियरिंग में और 74 हजार 175 लोग चिकित्सा में स्नातक डिग्री प्राप्त हैं।इनमें से सामान्य वर्ग में एक लाख 93 हजार 834, पिछड़ा वर्ग में एक लाख 9 हजार 497, अनुसूचित जाति में 18 हजार 500, अनुसूचित जनजाति में 2 हजार 487 लोग स्नातक इंजीनियरिंग हैं।
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