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CM Nitish Kumar : नीतीश कुमार पत्रकारों के मामले में ऐसे ही हैं..., क्या आप जानते हैं उनसे जुड़ा ये किस्सा

Bihar CM Nitish Kumar Defends Journalists आईएनडीआईए के पत्रकारों का बहिष्कार करने के मामले में दिया गया बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान के बाद सियासी हलचल देखी गई। अटकलें लगाई गईं कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है। परंतु देखा जाए तो नीतीश ने इस मामले में असहमति जताते हुए जो बात कही है वह उनके जीवन का हिस्सा है।

By Yogesh SahuEdited By: Yogesh SahuUpdated: Wed, 20 Sep 2023 10:43 AM (IST)
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CM Nitish Kumar: नीतीश कुमार पत्रकारों के मामले में ऐसे ही हैं, क्या आप जानते हैं उनसे जुड़ा ये किस्सा
जागरण डिजिटल डेस्क, पटना/नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने हाल ही में पत्रकारों को लेकर एक बयान दिया है। इसमें उन्होंने कहा है कि हम किसी पत्रकार के खिलाफ नहीं हैं। पत्रकारों पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री ने यह जवाब तब दिया जब बख्तियारपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में संवाददाताओं ने उनसे यह सवाल पूछा।

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) यह बात सिर्फ कहने के लिए कह रहे हैं; ऐसा नहीं है। वह अपने इस विचार पर कायम भी हैं। इस बात का खुलासा उस किस्से से हो सकता है, जो नीतीश कुमार के जीवन से जुड़ा हुआ है।

बहरहाल, सबसे पहले तो आमजन के मन में यह बात जरूर उठी होगी कि सीएम से आखिर यह सवाल पूछा ही क्यों गया? आइए; आपको इसका कारण बताते हैं।

दरअसल, इन दिनों बिहार ही नहीं देश की राजनीति भी गर्म है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानि राजग (National Democratic Alliance, NDA) या यूं कहें कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा, Bhartiya Janta Party, BJP) के खिलाफ खड़ा हुआ विपक्षी दलों का गठबंधन आईएनडीआईए खुद को धीरे-धीरे एक मजबूत विकल्प के तौर पर खड़ा करना चाह रहा है।

आईएनडीआईए महागठबंधन इस क्रम में तीन बैठक कर चुका है। पहली पटना में हुई। दूसरी बेंगलुरु में हुई। तीसरी मुंबई में हुई।

मुंबई में हुई तीसरी बैठक में आईएनडीआईए (I.N.D.I.A) में शामिल सभी विपक्षी दलों के बीच समन्वय बनाने के लिए एक 13 सदस्यों वाली समन्वय समिति बनाने का फैसला हुआ। यह बन भी गई।

इस समन्वय समिति की बीती 13 सितंबर को दिल्ली में एक बैठक हुई। इस बैठक में फैसला लिया गया कि देश के करीब 14 पत्रकारों के शो में आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल दल अपने प्रवक्ता को नहीं भेजेंगे।

कुछ रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस समिति ने एक पत्र के माध्यम से ऐसे पत्रकारों को सूची भी जारी की है। नीतीश कुमार का पत्रकारों (Journalists) से जुड़ा ताजा बयान इसी संदर्भ से जुड़ा हुआ है।

आईएनडीआईएन की समन्वय समिति में कौन-कौन है?

इस समिति में कांग्रेस पार्टी से केसी वेणुगोपाल, डीएमके से एमके स्टालिन, एनसीपी से शरद पवार, शिवसेना (उद्धव बालासहेब ठाकरे) से संजय राउत, राजद से तेजस्वी यादव, तृणमूल कांग्रेस से अभिषेक बनर्जी, आम आदमी पार्टी से राघव चड्ढा, समाजवादी पार्टी से जावेद खान, जदयू से ललन सिंह, झारखंड मुक्ति मोर्चा से हेमंत सोरेन, सीपीआई से डी. राजा, नेशनल कॉन्फ्रेंस से उमर अब्दुल्ला, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (जेकेपीडीपी) से महबूबा मुफ्ती शामिल हैं।

नीतीश कुमार का आईएनडीआईए से क्या सरोकार है?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) वह शख्स हैं, जिन्होंने विपक्षी दलों को साथ लाने के लिए आईएनडीआईए महागठबंधन की नींव रखने के प्रयास शुरू किए थे।

उनके इन प्रयासों को देखते हुए अटकलें थीं कि उन्हें सबसे पहले तो इस गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा। इसके बाद उन्हें आने वाले साल 2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया जाएगा।

हालांकि, स्वयं नीतीश कुमार ने कई मौके पर इससे जुड़े सवालों के जवाब में यही कहा कि उन्हें कोई पद नहीं चाहिए। वह सिर्फ विपक्षी दलों को एक साथ लाना चाहते हैं।

क्या है नीतीश कुमार के जीवन का पत्रकारों से जुड़ा किस्सा?

खैर, ये तो हो गई गठबंधन बनने और उसके पत्रकारों का बहिष्कार करने की अबतक की कहानी। परंतु, अब सबसे अहम सवाल कि नीतीश कुमार के जीवन का पत्रकारों से जुड़ा वो किस्सा क्या है?

दरअसल, नीतीश कुमार साल 2000 से लेकर अबतक आठ बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। उनसे जुड़ा यह किस्सा साल 2010 के विधानसभा चुनाव के समय का है।

इस किस्से के बारे में पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब अकेला आदमी (कहानी नीतीश कुमार की) में विस्तार से बताया है।

ठाकुर की इस किताब का पहला संस्करण साल 2015 में प्रकाशित हुआ था। इसके अनुवादक भविष्य कुमार सिन्हा हैं। ठाकुर ने अपनी किताब में 2010 के विधानसभा चुनावों को याद करते हुए लिखा है कि-

नीतीश उन लोगों में से एक था, जिन्होंने मुझे प्रेरित किया था। 'जाइए, देखिए जब मैंने नीतीश से उनके पांच वर्ष के शासन के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में उनकी पांच बड़ी उपलब्धियां बताने के लिए कहा, तो उनका जवाब था कि आप जाएं और खुद अपनी आंखों से देखें। उन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण योजनाओं पर शानदार पुस्तिकाएं और किए गए कार्य के बारे में मोटी-मोटी पुस्तकें छपवाई थीं, और उनके जन-संपर्क विभाग का मुख्य अधिकारी एक आवाज की दूरी पर उपस्थित रहता था, लेकिन नीतीश न उनमें से किसी का सहारा नहीं लिया। नीतीश कुमार ने कहा- "मैं जो बताऊंगा उससे आपको कोई खास जानकारी नहीं होगी, और हो सकता है कि आप मेरी बात पर विश्वास न करें, पत्रकारों के बारे में मैं भी कुछ ज्ञान रखता हूं", उन्होंने मजाक में कहा था, "अच्छा यही होगा कि आप बाहर निकलकर देखें और खुद फैसला करें।"

ठाकुर अपनी किताब में इसके बाद लिखते हैं कि सत्ता में बैठे किसी राजनेता के लिए अकसर यह एक साहस का काम होता है कि वह अपने क्षेत्र का एक अनिर्देशित (मार्गदर्शक को साथ लिये बिना) भ्रमण करने के लिए आमंत्रित करे।

वे प्रायः इसे प्रायोजित करना अधिक पसंद करेंगे और सभी आवश्यक 'प्रबंध' कराने की तत्परता दिखलाएँगे। नीतीश के आत्मविश्वास में एक गरिमा थी, उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं था और न प्रदर्शित करने के लिए बहुत कुछ।

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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के सत्तारूढ़ रहते हुए बिहार में जो बदलाव आया उसमें से बहुत कुछ सिर्फ सौंदर्यवर्धक था- सड़कें चिकनी एवं समतल थीं, सड़कों पर रोशनी के लिए बिजली लग गई थी, परिवारों के देर रात तक बाहर रहने और औरतों को गहने- जेवर पहनकर निकलने में डर नहीं था, बस अड्डों जैसी जन- -सुविधाएं मुहैया कराई गई थीं और स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ गई थी, तथा शिक्षकों की भी।

बिहार में सड़क पर होना हिम्मत का काम

संकर्षण ठाकुर ने इस वाकये के बाद स्वयं बिहार की बदलती तस्वीर को एक पत्रकार की नजर से देखा। उन्होंने आगे लिखा कि बिहार में सड़क पर होना बड़ी हिम्मत और जीवट का काम था। क्योंकि बहुत समय से वहां सड़क नाम की कोई चीज नहीं थी, आप सड़क की कल्पना भर कर सकते थे।

असल परिवर्तन बिहारियों के मन के अंदर और उनकी मानसिकता में हो रहा था। स्पष्ट था कि उन्हें अपने कुचक्री दिमाग से मकड़जाल को साफ करने की प्रेरणा और ऊर्जा कहीं से मिल रही थी, वे अपने स्वार्थवाद तथा स्वार्थ के आगे कुछ भी न सोच-समझ सकने की भावना को त्याग देने के लिए तैयार हो गए थे।

वास्तव में जो परिवर्तन आ रहा था वह फिर से जगी आशा के रूप में आ रहा था- सड़कों और टूटे पुलों को पुनः बनाया जा सकता है, सड़कों को रोशन किया जा सकता है, स्कूलों को अध्यापन कार्य में व्यस्त किया जा सकता है, अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा सकता है, वादों को पूरा किया जा सकता है, भले ही धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा करके किया जाए।

नीतीश के प्रथम कार्यकाल में, छोटे-से-छोटे शहरों तथा ग्राम- ब्लॉकों में पुराने सब-स्टेशनों की मरम्मत की गई या उन्हें बदल दिया गया; दूसरे कार्यकाल के आरंभ होते ही नई विद्युत् परियोजनाओं पर काम शुरू करने के बारे में विचार किया गया।

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निस्संदेह, वे केवल आश्वासन थे, लेकिन जब किसी वादे के अनुसार सड़क बनना शुरू हो जाता है, तो यह संभावना पक्की होने लगती है कि किसी दिन वहां रोशनी भी पहुंच जाएगी।

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