CM Nitish Kumar : नीतीश कुमार पत्रकारों के मामले में ऐसे ही हैं..., क्या आप जानते हैं उनसे जुड़ा ये किस्सा
Bihar CM Nitish Kumar Defends Journalists आईएनडीआईए के पत्रकारों का बहिष्कार करने के मामले में दिया गया बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान के बाद सियासी हलचल देखी गई। अटकलें लगाई गईं कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है। परंतु देखा जाए तो नीतीश ने इस मामले में असहमति जताते हुए जो बात कही है वह उनके जीवन का हिस्सा है।
आईएनडीआईएन की समन्वय समिति में कौन-कौन है?
इस समिति में कांग्रेस पार्टी से केसी वेणुगोपाल, डीएमके से एमके स्टालिन, एनसीपी से शरद पवार, शिवसेना (उद्धव बालासहेब ठाकरे) से संजय राउत, राजद से तेजस्वी यादव, तृणमूल कांग्रेस से अभिषेक बनर्जी, आम आदमी पार्टी से राघव चड्ढा, समाजवादी पार्टी से जावेद खान, जदयू से ललन सिंह, झारखंड मुक्ति मोर्चा से हेमंत सोरेन, सीपीआई से डी. राजा, नेशनल कॉन्फ्रेंस से उमर अब्दुल्ला, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (जेकेपीडीपी) से महबूबा मुफ्ती शामिल हैं।नीतीश कुमार का आईएनडीआईए से क्या सरोकार है?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) वह शख्स हैं, जिन्होंने विपक्षी दलों को साथ लाने के लिए आईएनडीआईए महागठबंधन की नींव रखने के प्रयास शुरू किए थे।उनके इन प्रयासों को देखते हुए अटकलें थीं कि उन्हें सबसे पहले तो इस गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा। इसके बाद उन्हें आने वाले साल 2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया जाएगा। हालांकि, स्वयं नीतीश कुमार ने कई मौके पर इससे जुड़े सवालों के जवाब में यही कहा कि उन्हें कोई पद नहीं चाहिए। वह सिर्फ विपक्षी दलों को एक साथ लाना चाहते हैं।क्या है नीतीश कुमार के जीवन का पत्रकारों से जुड़ा किस्सा?
खैर, ये तो हो गई गठबंधन बनने और उसके पत्रकारों का बहिष्कार करने की अबतक की कहानी। परंतु, अब सबसे अहम सवाल कि नीतीश कुमार के जीवन का पत्रकारों से जुड़ा वो किस्सा क्या है? दरअसल, नीतीश कुमार साल 2000 से लेकर अबतक आठ बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। उनसे जुड़ा यह किस्सा साल 2010 के विधानसभा चुनाव के समय का है।इस किस्से के बारे में पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब अकेला आदमी (कहानी नीतीश कुमार की) में विस्तार से बताया है।ठाकुर की इस किताब का पहला संस्करण साल 2015 में प्रकाशित हुआ था। इसके अनुवादक भविष्य कुमार सिन्हा हैं। ठाकुर ने अपनी किताब में 2010 के विधानसभा चुनावों को याद करते हुए लिखा है कि-ठाकुर अपनी किताब में इसके बाद लिखते हैं कि सत्ता में बैठे किसी राजनेता के लिए अकसर यह एक साहस का काम होता है कि वह अपने क्षेत्र का एक अनिर्देशित (मार्गदर्शक को साथ लिये बिना) भ्रमण करने के लिए आमंत्रित करे।वे प्रायः इसे प्रायोजित करना अधिक पसंद करेंगे और सभी आवश्यक 'प्रबंध' कराने की तत्परता दिखलाएँगे। नीतीश के आत्मविश्वास में एक गरिमा थी, उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं था और न प्रदर्शित करने के लिए बहुत कुछ। यह भी पढ़ें : हम शुरू से ही रहे हिमायती... अगर ये भी होता तो', पढ़िए महिला आरक्षण बिल पर नीतीश समेत क्या बोले बिहार के नेतानीतीश कुमार (Nitish Kumar) के सत्तारूढ़ रहते हुए बिहार में जो बदलाव आया उसमें से बहुत कुछ सिर्फ सौंदर्यवर्धक था- सड़कें चिकनी एवं समतल थीं, सड़कों पर रोशनी के लिए बिजली लग गई थी, परिवारों के देर रात तक बाहर रहने और औरतों को गहने- जेवर पहनकर निकलने में डर नहीं था, बस अड्डों जैसी जन- -सुविधाएं मुहैया कराई गई थीं और स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ गई थी, तथा शिक्षकों की भी।नीतीश उन लोगों में से एक था, जिन्होंने मुझे प्रेरित किया था। 'जाइए, देखिए जब मैंने नीतीश से उनके पांच वर्ष के शासन के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में उनकी पांच बड़ी उपलब्धियां बताने के लिए कहा, तो उनका जवाब था कि आप जाएं और खुद अपनी आंखों से देखें। उन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण योजनाओं पर शानदार पुस्तिकाएं और किए गए कार्य के बारे में मोटी-मोटी पुस्तकें छपवाई थीं, और उनके जन-संपर्क विभाग का मुख्य अधिकारी एक आवाज की दूरी पर उपस्थित रहता था, लेकिन नीतीश न उनमें से किसी का सहारा नहीं लिया। नीतीश कुमार ने कहा- "मैं जो बताऊंगा उससे आपको कोई खास जानकारी नहीं होगी, और हो सकता है कि आप मेरी बात पर विश्वास न करें, पत्रकारों के बारे में मैं भी कुछ ज्ञान रखता हूं", उन्होंने मजाक में कहा था, "अच्छा यही होगा कि आप बाहर निकलकर देखें और खुद फैसला करें।"