Bihar Politics: कांग्रेस को झटके पर झटका! पहले विधायक 'पलटे', फिर विधान परिषद की सीट गई और अब...
स्वयं को प्रतिबद्ध कांग्रेसी बताने वाले प्रदेश नेतृत्व की पहली पांत के एक नेता का कहना है कि सीटों के बंटवारे तक आवाजाही की ऐसी सूचनाएं मिलती रहेंगी। राज्य में सत्ता परिवर्तन के पहले से ही बिहार कांग्रेस में अंदरखाने उठापटक चल रही है। इसी कारण प्रदेश समिति की घोषणा तक नहीं हो पाई। इस उठापटक का कारण पहले बिहार कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास बताए जाते थे।
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार कांग्रेस के लिए यह यक्ष प्रश्न जैसे है कि उसकी त्रासदी का अंत कब होगा। इसका समाधान ढूंढने के बजाय गुटबाजी में उलझे नेता अपने लिए संभावना की तलाश में लगे हैं। दो विधायकों के बाद अब राज्य संगठन के प्रभारी अजय कपूर को भी भाजपा में ठौर मिल गया है। इस बीच विधान परिषद की एक सीट भी हाथ से निकल चुकी है।
स्वयं को प्रतिबद्ध कांग्रेसी बताने वाले प्रदेश नेतृत्व की पहली पांत के एक नेता का कहना है कि सीटों के बंटवारे तक आवाजाही की ऐसी सूचनाएं मिलती रहेंगी। राज्य में सत्ता परिवर्तन के पहले से ही बिहार कांग्रेस में अंदरखाने उठापटक चल रही है। इसी कारण प्रदेश समिति की घोषणा तक नहीं हो पाई।
भक्त चरण दास का नाम चर्चा में
इस उठापटक का कारण पहले बिहार कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास बताए जाते थे। अंतत: उनसे कमान ले ली गई। मोहन प्रकाश को दिल्ली से ही फुर्सत नहीं। ऐसे में लगभग सारा दायित्व कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अजय कपूर के पास था। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान उनकी सक्रियता देखते बन रही थी। भारी देह के बावजूद उत्साही युवा जैसे वे अगली कतार में आकर दायित्व को संभाले हुए थे।विधायकों ने मारी 'पलटी'
राहुल के साथ वे उत्तर प्रदेश गए तो फिर वापस नहीं लौटे। कानपुर से चुनाव लड़ने की कामना में भाजपा के हो गए हैं। लोकसभा चुनाव लड़ने की ललक में ही चेनारी के विधायक मुरारी प्रसाद गौतम कांग्रेस छोड़ भाजपा के हुए। वंचित वर्ग के लिए सुरक्षित सासाराम की सीट पर उनकी दृष्टि लगी हुई है। महागठबंधन सरकार में मुरारी कांग्रेस कोटे के दो मंत्रियों में से एक थे, जबकि उसी समुदाय में उनसे वरीय विधायकों को अवसर नहीं मिला।
मुरारी के साथ ही बिक्रम के विधायक सिद्धार्थ सौरव भी भगवा खेमे में गए थे। उनकी अपनी महत्वाकांक्षा है और हिसुआ की विधायक नीतू कुमारी की महत्वाकांक्षा नवादा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की है। राजापाकर की विधायक प्रतिमा कुमारी तो इन सारे झगड़ों की जड़ अनदेखी बताती हैं।
वे पहले ही कह चुकी हैं कि अगर पार्टी के हित की अनदेखी नहीं होती तो विधान परिषद में कांग्रेस चार से तीन की संख्या के लिए विवश नहीं होती। उल्लेखनीय है कि पांच मई को विधान परिषद में प्रेम चंद मिश्रा का कार्यकाल पूरा हो रहा और कांग्रेस की यह सीट महागठबंधन में भाकपा (माले) के हवाले हो चुकी है। इससे पहले राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को वाम दलों का सहयोग मिला था। यह दान-प्रतिदान नेतृत्व द्वारा गठबंधन धर्म बताया जा रहा।
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