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मुकेश की गेंदबाजी पर गुमान कर रहा बिहार, वीरेंद्र सहवाग को पवेलियन भेजने के बाद बढ़ा हौसला

बेंगलुरु में एक सितंबर से चार सितंबर तक चले पहले टेस्ट मैच की पहली पारी में मुकेश कुमार ने 23 ओवर में पांच विकेट झटके। अपनी प्रतिभा के बूते भारत व न्यूजीलैंड की ए क्रिकेट टीम के बीच खेली जा रही सीरिज में मुकेश ने ध्यान खींचा है।

By Akshay PandeyEdited By: Updated: Tue, 06 Sep 2022 06:06 PM (IST)
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गोपालगंज के खिलाड़ी मुकेश और वीरेंद्र सहवाग।
रजत कुमार, गोपालगंज : भारत व न्यूजीलैंड की ए क्रिकेट टीम के बीच पहली बार अनौपचारिक तौर पर खेली जा रही चार दिवसीय छह टेस्ट मैच की सीरिज में गेंदबाज मुकेश ने सबका ध्यान खींचा है। बेंगलुरु में एक सितंबर से चार सितंबर तक चले पहले टेस्ट मैच की पहली पारी में मुकेश कुमार ने 23 ओवर में पांच विकेट झटके और मात्र 3.73 रन प्रति ओवर की दर से किफायती बालिंग भी की। मैच ड्रा रहा परंतु मुकेश की कड़क गेंदबाजी पर उनका पैतृक गांव काकड़पुर गुमान कर रहा है। अब हुबली में आठ सितंबर से शुरू होने जा रहे टेस्ट मैच में मुकेश के प्रदर्शन पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

गोपालगंज के सदर प्रखंड के काकड़पुर गांव की गलियों में काठ के बैट और रबर की गेंद से क्रिकेट का क, ख, ग सीख राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने वाले मुकेश का जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। जागरण से विशेष बातचीत में बताया कि अभी सारा ध्यान न्यूजीलैंड से हो रही सीरीज पर है। कहा, बिहार के लिए खेलना चाहता था परंतु यहां के क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता ही नहीं थी। तब बंगाल क्लब का रुख किया। कहा, मेरे क्रिकेट जीवन में दो वीरेंद्र की बड़ी भूमिका रही है। एक सारण के कोच वीरेंद्र सिंह ने प्रशिक्षण देकर निखारा। दूसरे तूफानी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को 2015 में रणजी ट्राफी टूर्नामेंट के दौरान आउट करने का अवसर मिला, इस विकेट को झटकने के बाद खुद पर भरोसा बढ़ा। बीते साल पिता काशीनाथ सिंह का बीमारी से निधन हो गया, एकबारगी लगा जैसे अब खेल नहीं सकूंगा। परंतु मां, चाचा, भाई, बहनों ने हौसला बढ़ाया, नतीजतन आज भारत की ए टीम का सदस्य हूं। 

12 अक्टूबर 1993 को जन्मे मुकेश चार बहनों व एक भाई के बाद मां-पिता की आखिरी संतान हैं। छह भाई-बहनों के कारण सबकी आकांक्षाएं पूरी कर पाना खेती के बूते पिता के लिए संभव नहीं थी। वह बच्चों की परवरिश के लिए कोलकाता जाकर आटो चलाने लगे। इधर, गोपालगंज में मुकेश मैट्रिक पास कर चुके थे। आगे ज्यादा पढ़ाई का इरादा नहीं था, अपने शौक व जुनून क्रिकेट में आगे बढ़ना चाहते थे। गोपालगंज जैसी छोटी जगह में बड़ा अवसर मिलना मुश्किल था। 2009 में स्थानीय मिंज स्टेडियम में प्रतिभा खोज प्रतियोगिता की सूचना मिली। बिना किसी को बताए मुकेश साइकिल से वहां पहुंच गए और खुद का नामांकन करा लिया। क्रिकेट मैच में शानदार गेंदबाजी कर दिखाई, जिलास्तरीय क्रिकेट टीम के कप्तान अमित सिंह प्रभावित हुए। उन्होंने मुकेश को प्रशिक्षण दिया। फिर बिहार के पूर्वी चंपारण में आयोजित हेमन ट्राफी टूर्नामेंट में गोपालगंज टीम की तरफ से उन्हें खेलने को मौका मिला। मुकेश ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पूरे टूर्नामेंट में कुल 34 विकेट लेकर राज्यस्तर पर अपनी छाप छोड़ दी। 

डांटने वाले अब चाचा बढ़ा रहे हौसला

अब तक खेलने की धुन के लिए मुकेश को डांट-डपट करने वाले चाचा कृष्णा सिंह को पता चला कि वह बेहतर खेल रहा है तो वह प्रोत्साहित करने लगे। कोलकाता में आटो चला रहे भाई काशीनाथ सिंह को बताया और मुकेश को वहीं  क्रिकेट का प्रशिक्षण दिलाने को सहमत किया। वर्ष 2012 में मुकेश कोलकाता पहुंच गए और बंगाल क्रिकेट क्लब में नामांकन कराया। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा, पश्चिम बंगाल से अंडर 19 व रणजी टीम में चुन लिए गए। लगातार अच्छे प्रदर्शन के बूते राष्ट्रीय टीम में चयन हो गया। इससे पहले आइपीएल आक्शन में गोपालगंज के अनुज राज और मोहम्मद अरशद खान के लिए बोली लगी थी। मुंबई इंडियंस ने दोनों खिलाड़ियों को 20-20 लाख में खरीदा था। अब तीसरे खिलाड़ी मुकेश हैं, जो जिले के नवोदित खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।

गांव में मुकेश के स्वजन। जागरण

हमेशा लगता था डर, कहीं कोई झगड़ा न मोल ले ले मुकेश

मुकेश कुमार जब बचपन में गांव में क्रिकेट खेलते थे तो उनके चाचा कृष्णा सिंह हमेशा उन्हें डांटते थे। चाचा ने बताया कि गांव में हमेशा छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़े को देखकर मन में डर बना रहता था कि क्रिकेट में हार-जीत के बाद कहीं मुकेश कोई झगड़ा न मोल ले ले। इसलिए वह डांटते थे। मुकेश क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने लगा तो समर्थन में आ गए।

मां ने कहा- बचपन में अच्छे बल्ले व गेंद के लिए तरसा है मुकेश  

काशीनाथ सिंह व मालती देवी के छह बच्चों में मुकेश कुमार सबसे छोटे हैं। इनकी चार बहनें शकुंतला देवी, बबिता देवी, विमलेश देवी व अमृता देवी और बड़े भाई धनचित कुमार हैं। धनचित आसनसोल में निजी कंपनी में काम करते हैं। मुकेश कुमार के तीन चाचा व उनके पिता गांव में संयुक्त रूप से साथ रहते थे। मां गृहिणी हैं, कहती हैं टीवी पर मुकेश को गेंदबाजी करते देख आंखें भर आती हैं। बचपन में वह अच्छे बल्ले व गेंद के लिए तरसा करता था। ईश्वर ने उसकी सुन ली। 

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