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Bihar Bhumi Survey: दाखिल-खारिज और परिमार्जन से हर घर परेशान, खतियान की नकल के लिए देने पड़ रहे 1500 रुपये

बिहार भूमि सर्वेक्षण 2024 के कारण राज्य के किसानों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दाखिल-खारिज और परिमार्जन में देरी रजिस्टर-2 में गलतियाँ पुराने कागजातों की कमी और जमीन के बंटवारे से जुड़े विवाद कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं। इस लेख में हम इन समस्याओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे और देखेंगे कि बिहार सरकार इन मुद्दों को कैसे हल करने की योजना बना रही है।

By Jitendra Kumar Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 17 Sep 2024 02:22 PM (IST)
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मनेर में 90 दिनों में भी नहीं हो पा रहा दाखिल-खारिज।

जागरण टीम, पटना। Bihar Bhumi Survey 2024 रजिस्टर–2 क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, जो बचा वह आधा-अधूरा और कटे-फटे स्थिति में हैं। किसानों के नाम जमाबंदी और रकबा का परिमार्जन, दाखिल-खारिज लंबित हैं। पुराने कागजात कैथी भाषा में रहने के कारण कोई समझने और समझाने वाला नहीं मिल रहा है। जमाबंदी के कागजात में प्लॉट नंबर है तो चौहद्दी और रकबा नहीं चढ़ा है। सर्वे शुरू हुआ तो अंचल कार्यालय में मनमानी बढ़ गई।

यह हाल है पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल के अंचल के किसानों का। पालीगंज के खपुरा गांव के महेश कुमार की शिकायत है कि मेरे पिता के नाम पर जमाबंदी (Bihar Jamin Jamabandi) थी। रजिस्टर–2 में खाता सही था, लेकिन कर्मचारी ने एक खाता नंबर गलत लिख दिया। पिता के मृत्यु के बाद जमाबंदी मेरे नाम आया तो गलत खाता नंबर सुधार के लिए अंचल कार्यालय में कई आवेदन के साथ खतियान भी दिया, लेकिन सुधार नहीं हो सका।

मसौढ़ी निवासी श्यामनंदन प्रसाद वर्मा बताते हैं, तीन भाई हैं। पिता के नाम जमाबंदी थी। उनके निधन के बाद दो भाइयों के नाम से मेरे बिना सहमति के ही जमाबंदी कायम कर दी गई। मेरे हिस्से की जमीन को पिता के नाम पर छोड़ दी गई।

खतियान की नकल के लिए प्रति प्लॉट वसूल रहे 1,500 रुपये

अंचल कार्यालय में खतियान उपलब्ध नहीं है। किसानों को प्रति प्लॉट 1,500 रुपये खर्च करना पड़ रहा है। जिन किसानों के पास जमींदारों का हुकुमनामा है उसे सर्वे कर्मी वाजिब कागजात नहीं मान रहे हैं। सरकार के पास जमींदारों द्वारा दिया गया रिटर्न (जमीन का ब्यौरा) का रजिस्टर उपलब्ध नहीं है। जमाबंदी पंजी में बिहार भूमि सर्वेक्षण 2024 ने किसानों के समक्ष परेशानी खड़ी कर दी है। जमींदारी के समय मिली जमीन किसानों ने कई हाथों में बेची है। खरीदार दाखिल-खारिज नहीं करा सके उन्हें पुराना दस्तावेज ही नहीं मिल रहा है।

जिन परिवारों में आपसी, पंचायती अथवा मौखिक बंटवारा है अथवा किसी के पूर्वजों ने मठ, मंदिर, मस्जिदों तथा स्कूलों, अस्पतालों को अपनी जमीन दान में दे दी, लेकिन वह अभी भी उनके ही नाम पर खतियान में है। जो गैरमजरुआ जमीन पर घर बनाकर वर्षों से रहते आ रहे हैं। दो-तीन पुश्त गुजर गई, अब उन जमीनों के कागजात इस भू सर्वे के दौरान मांगे जा रहे हैं तो उपलब्ध नहीं है।

मनेर में 90 दिनों में भी नहीं हो पा रहा दाखिल-खारिज

मनेर अंचल का सर्वर ठीक नहीं है। ऐसी गड़बड़ी कि 90 दिनों से अधिक समय बीतने के बाद भी दाखिल-खारिज के आवेदन का निपटारा नहीं हो पा रहा है। भूमि सर्वे का कार्य शुरू होने के बाद लोग जमीन अपने नाम से कराने के लिए अंचल कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं। जिन लोगों का 90 दिनों से अधिक समय बीत गया रजिस्ट्री के बाद मोटेशन आवेदन नहीं हो पा रहा है।

भूमि जानकारी के पोर्टल पर आवेदन करने में 90 दिनों तक दाखिल-खारिज के लिए आवेदन नहीं करने का कारण पूछा जाता है। जब कारण डाला जाता है तब भी आवेदन सबमिट नहीं हो पाता है। यही हाल परिमार्जन में भी है। सर्वर स्लो और लगान रसीद काटने के बाद पैसा कट जाता है पर बकाया दिखलाता रहता है।

दनियावां में आपसी बंटवारे वाले परेशानी में

दनियावां फतुहा अंचल से कटकर बना था। यहां अधिकांश लोगों ने आपसी सहमति और पंचायती के आधार पर पुश्तैनी भूमि जोत-आबाद करते आ रहे हैं। भूमि सर्वे से किसानों और रैयतों में दस्तावेज को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। परिवार के बीच मौखिक आधार पर बंटवारे के बाद भूमि को शांतिपूर्ण तरीके से जोत रहे थे, वह छिन जाने और वैमनस्य की स्थिति पैदा कर दी है। दाखिल-खारिज और परिमार्जन का पावती हाथों में लिए अंचल कार्यालय का चक्कर लगाकर थक-हार चुके हैं।

प्रखंड के कंचनपुर निवासी रमेश कुमार ने बताया कि सैकड़ों वर्षों से जिस जमीन को वे जोत रहे थे उसका खेसरा नंबर आनलाइन नहीं चढ़ा हुआ है। कई किसानों का खाता चढ़ा है, परंतु खेसरा अंकित नहीं है। पंजी दो में लोगों का खाता–खेसरा ऑनलाइन चढ़ा है तो रकबा कालम में शून्य अंकित है। परिमार्जन पोर्टल पर आवेदन देकर अंचल की दौड़ लगा रहे हैं। राजस्व कर्मचारियों के प्रतिवेदन के आधार पर ही परिमार्जन किया जाता है। स्थिति यह कि एक राजस्व कर्मी के दो से चार बिचौलिया घूम रहे हैं। बिचौलिया के बिना काम नहीं हो सकता है।

कार्यालय में कार्यरत सहायक ने बताया कि अंचल में कार्यरत राजस्व कर्मी को भू अभिलेखों का ज्ञान अथवा प्रशिक्षण नहीं है। शाहजहांपुर की एक किसान ने बताया कि एलपीसी आवेदन बार-बार रद कर दिया जा रहा है। अंचलाधिकारी गीता कुमारी ने बताया कि राजस्व कर्मचारी के प्रतिवेदन के आधार पर ही कार्रवाई की जाती है।

फतुहा में परिमार्जन और दाखिल व खारिज में भूस्वामियों को परेशानी

फतुहा के भूस्वामियों को परिमार्जन और दाखिल-खारिज में देरी सबसे बड़ी परेशानी बन गई है। शिकायत है कि 50 प्रतिशत किसान की जमीन का अपने पूर्वजों के बीच वर्षों पहले बंटबारा हुआ, लेकिन मौखिक है। आज भी राजस्व रसीद दादा के नाम पर ही कट रही है। अपने नाम से रसीद कटाने के लिए अंचल कार्यालय में परेशानी झेल रहे हैं। पूर्वजों का मृत्यु प्रमाण पत्र मांगा जा रहा। कागजी बंटवारा वैध कराने के लिए सभी पटीदारों को बुलाया जा रहा। जो गांव से बाहर रहते हैं वे आने में असमर्थ हैं। जमीन खरीदारों को मोटेशन कराने में पसीने छूट रहे हैं।

सार्वजनिक उपयोग के लिए दान की गई जमीन पर झंझट

जमींदार और किसानों ने कहीं स्कूल, कालेज, धर्मशाला, अस्पतालों व धार्मिक संस्थानों को जमीन दान कर दी थी, वह भी उनके नाम पर ही हैं। ऐसी संस्थाएं जिन जमीन पर बनी हैं वह आज तक रैयत के नाम पर दर्ज है। दान संबंधी जिसका कोई दस्तावेज नहीं है। इसमें संबंधित रैयत के वंशज संस्थाओं के नाम दिए गए मौखिक दान को अस्वीकार करते हुए जमीन को अपने कब्जे में ले सकते हैं।

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