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Bihar Lok Sabha Election: सातवें चरण में राजद-कांग्रेस के साथ माले की भी होगी परीक्षा, NDA के सामने भी बड़ी चुनौती

नालंदा हो पटना साहिब हो पाटलिपुत्र हो या फिर दूसरी कोई सीट एनडीए का यहां 10 वर्षों से जादू रहा है। नालंदा संसदीय सीट की बात करें तो 2014 और 2019 में जदयू के कौशलेंद्र कुमार के आगे किसी की नहीं चली। भाजपा से अलग लड़ते हुए भी 2014 में कौशलेंद्र ने जदयू के टिकट पर यहां से भाजपा की सहयोगी लोजपा उम्मीदवार सत्यानंद शर्मा को पराजित किया।

By Sunil Raj Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 28 May 2024 02:17 PM (IST)
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सातवें चरण में राजद-कांग्रेस के साथ माले की भी होगी परीक्षा, NDA के सामने भी बड़ी चुनौती
सुनील राज, पटना। Bihar Lok Sabha Election Seventh Phase लोकसभा चुनाव की लंबी अवधि समय के साथ पटाक्षेप की ओर बढ़ रही है। पहली जून को सात बिहार के आठ लोकसभा क्षेत्र के मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इसके बाद चार जून को मतगणना और परिणाम की प्रतीक्षा होगी। इसके पहले दोनों गठबंधन की ओर से लगातार यहां मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं।

दोनों गठबंधनों के लिए आखिर दौर की यह लड़ाई बेहद अहम है। एनडीए के सामने अपना रिकॉर्ड बचाने की चुनौती है तो महागठबंधन उस रिकॉर्ड को ध्वस्त करने की जुगत में है। बिहार के जिन आठ लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होना है वे सीटें हैं नालंदा, जहानाबाद, आरा, बक्सर, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, सासाराम और काराकाट।

ये वे सीटें हैं जहां 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही 2014 में एनडीए एलायंस ने जिसमें जदयू नहीं था उस दौरान उसने लोकजन शक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और विरोधियों को बुरी तरह से शिकस्त दी थी। इस बार एनडीए के साथ जदयू भी है। जबकि दूसरी ओर महागठबंधन की ओर से इन सीटों पर जीत की लड़ाई का बड़ा दारोमदार राजद, भाकपा माले और कांग्रेस के ऊपर होगा।

सातवें चरण की आठ सीटों में तीन पर राजद, तीन पर भाकपा माले और दो पर राजद का मुकाबला एनडीए उम्मीदवारों से होगा। लोकसभा चुनाव के पुराने रिकार्ड बताते हैं कि इन सभी आठ सीटों पर बीते 10 वर्षों से एनडीए ने जो बिसात बिछा रखी है उसका मुकाबला महागठबंधन के लिए आसान नहीं होने जा रहा।

नालंदा हो, पटना साहिब हो, पाटलिपुत्र हो या फिर दूसरी कोई सीट एनडीए का यहां 10 वर्षों से जादू रहा है। नालंदा संसदीय सीट की बात करें तो 2014 और 2019 में जदयू के कौशलेंद्र कुमार के आगे किसी की नहीं चली। भाजपा से अलग लड़ते हुए भी 2014 में कौशलेंद्र ने जदयू के टिकट पर यहां से भाजपा की सहयोगी लोजपा उम्मीदवार सत्यानंद शर्मा को पराजित किया।

2019 में कौशलेंद्र ने इस रिकॉर्ड को बनाकर कर रखा और महागठबंधन की सहयोगी हम उम्मीदवार अशोक आजाद चंद्रवंशी को पराजित किया। इस बार इस सीट पर जदयू बनाम भाकपा माले संदीप सौरभ के बीच लड़ाई है। पाटलिपुत्र सीट पर राजद दो बार से भाजपा के रामकृपाल को पराजित करने के लिए लड़ रहा है।

रामकृपाल के मुकाबले दोनों चुनाव में लालू प्रसाद ने अपनी बेटी मीसा भारती को उम्मीदवार बनाया, लेकिन जीत प्राप्त नहीं हो पाई। इस बार भी इस सीट पर रामकृपाल के सामने राजद ने मीसा भारती को टिकट देकर खड़ा किया है। पटना साहिब सीट की बात की जाए तो यहां से लगातार भाजपा विजयी होती रही है। 2014 में शत्रुघ्न ने भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के कुणाल सिंह को हराया।

2019 में भाजपा के रविशंकर ने कांग्रेस के शत्रुघ्न को पराजित किया था। इस बार भाजपा प्रत्याशी रविशंकर के मुकाबले महागठबंधन ने कांग्रेस की बड़ी नेता मीरा कुमार के पुत्र अंशुल अभिजीत को मैदान में उतारा है। आरा में 2014 और 2019 में आरके सिंह भाजपा की विजय दीवार की तरह खड़े रहे और उन्होंने 2014 में राजद उम्मीदवार भगवान सिंह कुशवाहा और 2019 में राजद समर्थित सीपीआइ एमएल उम्मीदवार राजू यादव को पराजित किया।

इस बार फिर आरके सिंह के सामने भाकपा माले उम्मीदवार सुदामा प्रसाद को खड़ा किया है। इन सीटों के साथ ही बक्सर, सासाराम,जहानाबाद और काराकाट का इतिहास भी कुछ अलग नहीं रहा है। इन चारो सीटों पर एनडीए के आगे महागठबंधन पराजित होता रहा है। इस चुनाव लालू प्रसाद और सहयोगी दलों के बड़े नेताओं ने काफी सोच-विचार करने के बाद प्रत्याशी खड़े किए हैं।

चुनाव जीतने की रणनीति भी सहयोगी दलों के साथ मिलकर बनाई है, लेकिन सातवें चरण की आठ सीटों पर लड़ाई को दोनों गठबंधन बेहद अहम मानकर लड़ रहे हैं। यह तो मतदान के बाद परिणाम तय करेंगे कि सभी सीटों पर एनडीए अपना रिकॉर्ड बचाने में सफल होता है या फिर महागठबंधन उस रिकॉर्ड को ध्वस्त करने में सफल होता है।

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