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Bihar Election 2024: बागियों ने किया NDA प्रत्याशियों का बेड़ा गर्क, समझें आरा-बक्सर समेत 7 सीटों का गुणा-भाग

पहले चरण वाली औरंगाबाद सीट छोड़ छह सीटें पाटलिपुत्र जहानाबाद काराकाट सासाराम आरा एवं बक्सर में हुई जीत-हार की पटकथा भी कभी राजग के साथ रहे बागियों ने लिखी। यह बात दीगर है कि पार्टी ने उन जयचंदों से किनारा भी किया लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी। भाजपा संगठन से लेकर राजग के मतदाताओं के बीच संभवत इसकी भरपाई नहीं हुई।

By Raman Shukla Edited By: Rajat Mourya Published: Thu, 06 Jun 2024 08:28 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jun 2024 08:28 PM (IST)
बागियों ने किया NDA प्रत्याशियों का बेड़ा गर्क, समझें आरा-बक्सर समेत 7 सीटों का गुणा-भाग

रमण शुक्ला, पटना। अंतिम दौर में मगध व शाहाबाद की सात सीटों पर राजग की हार के पीछे भाजपा-जदयू के बागियों एवं भितरघातियों का हाथ रहा। उन्हीं सबने राजग प्रत्याशियों का बेड़ा गर्क किया। लगभग हर सीट पर बागियों ने जितने वोट काट लिए, करीब-करीब उतने ही मतों से राजग प्रत्याशियों की हार हुई है।

इसमें एक पहले चरण वाली औरंगाबाद सीट छोड़ छह सीटें पाटलिपुत्र, जहानाबाद, काराकाट, सासाराम, आरा एवं बक्सर में हुई जीत-हार की पटकथा भी कभी राजग के साथ रहे बागियों ने लिखी। यह बात दीगर है कि पार्टी ने उन जयचंदों से किनारा भी किया, लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी।

भाजपा संगठन से लेकर राजग के मतदाताओं के बीच संभवत: इसकी भरपाई नहीं हुई। वहीं, आरा में सांसद की उपेक्षा के कारण संगठन का मनोबल ही टूट गया था। सांसद का मतदाताओं एवं कार्यकर्ताओं से दूरी भी भाजपा के पक्ष कम मतदान के पीछे बड़ी वजह रही।

औरंगाबाद में भितरघात की मार

औरंगाबाद में कुशवाहा मतदाता के एकजुटता के साथ ही भाजपा के भितरघातियों ने भाजपा सांसद सुशील सिंह की हार की पटकथा लिखी। इसमें पूर्व विधायक रामाधार सिंह का खुलकर सांसद का विरोध करना सबसे अहम रहा। इसके अलावा जिले में संगठन से जुड़े पदाधिकारियों का विरोध भी सांसद के लिए घातक रहा।

भाजपा सूत्रों के अनुसार अंदरखाने भाजपा के सांसद प्रत्याशी रहे कृष्ण बल्लभ प्रसाद सिंह ऊर्फ बबूआ जी और पूर्व जिलाध्यक्ष विनय शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी सांसद के लिए नुकसान साबित हुआ। अति पिछड़े में कहार मतदाताओं भी सांसद विमुख होना हार का एक मुख्य कारण रहा। ऐसी कई वजहों से 79, 111 मतों से सांसद की हार हुई।

पाटलिपुत्र में थ्री-के फैक्टर

रामकृपाल यादव की हार के सारण के अगड़ा-पिछड़ा और जदयू के कोर वोटर की बेरुखी महंगी पड़ी। इसके अलावा थ्री के फैक्टर ने ज्यादा चोट किया। राजद के कोर वोटर की तुलना में राजग थ्री-के (कोईरी-कुशवाहा, कुर्मी एवं कहार) तीन वर्ग के मतदाताओं का उत्साह ठंडा रहना भी पाटलिपुत्र से भाजपा सांसद के हार के पीछे अहम कारण रहा।

हालांकि, यह एक अहम तथ्य है कि 2019 की तुलना में अबकी बार रामकृपाल को लगभग 20 हजार मत ज्यादा फिर भी भाजपा सांसद हार गए। 2019 में रामकृपाल को 500900 मत मिल थे। वहीं, 2024 में 5,02800 मत मिले हैं। इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी की 85,174 मतों भाजपा प्रत्याशी की हार हुई।

आरा में संगठन की उपेक्षा

पूर्व केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह की हैटट्रिक की नाव कार्यकर्ताओं और जिला संगठन की उपेक्षा के भंवर में डूब गई। भाजपा के जिला पदाधिकारियों का आरोप है कि सांसद से चुनाव में भाजपा का कार्यकर्ता और कुछ नहीं, लेकिन थोड़ा सम्मान चाह थी। पर, कार्यकर्ता को वह भी नहीं मिला तो वह क्यों तपती धूप में पार्टी के लिए जान देता? भाजपा संगठन के लिए जानी जाती है और चुनाव में खासतौर पर आरएसएस के स्वंयसेवक रणनीति में अहम भूमिका निभाते थे।

इस बार धरातल पर उनकी सक्रियता नहीं दिखी। जनता तो दूर सांसद तक कार्यकर्ताओं की पहुंच भी सुलभ नहीं थी। रही सही कसर पवन सिंह के कारण पिछड़े मतदाताओं का सांसद के विरोध में मत करना हार का अहम कारण रहा। आरके सिंह 59808 मत से चुनाव हार गए।

बक्सर में क्षत्रिय हुए सुधाकर के साथ

बक्सर में भाजपा प्रत्याशी मिथिलेश तिवारी के हार के पीछे क्षत्रिय मतदाताओं का एक मुश्त राजद प्रत्याशी सुधाकर सिंह के पक्ष मत करना सबसे बड़ी वजह रही। वहीं, पूर्व नौकरशाह आनंद मिश्रा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जितना मत कटा लिया उससे कहीं कम मत से मिथिलेश की हार हुई।

पूर्व नौकरशाह को 47409 मत मिले जबकि मिथिलेश की हार 30091 मतों से हुई। वहीं, मिथिलेश के प्रति जिला संगठन की भी वैसी सक्रियता नहीं दिखी। बाहरी व्यक्ति का प्रत्याशी होना भी अंदरखाने विरोध चरम पर रहा।

काराकाट से चली पिछड़ा विरोधी लहर

पवन सिंह का काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ना और क्षत्रिय समुदाय के युवा वर्ग का उपेंद्र कुशवाहा के विरुद्ध मुखर होना रालोमो प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा की हार की बड़ी वजह रही। हालांकि इसका नुकसान भाजपा-जदयू प्रत्याशियों की अंतिम चरण वाले कई सीटों झेलनी पड़ी।

यही नहीं, काराकाट में भाजपा के संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने भी कुशवाहा का साथ नहीं दिया। इसके अलावा बार-बार गठबंधन बदलना भी कुशवाहा के लिए घातक साबित हुआ। ऐसे में उपेंद्र तीसरे पायदान पर चले गए।

सासाराम में छेदी-ललन का नहीं मिला साथ

भाजपा प्रत्याशी शिवेश राम को पिता की विरासत मिलने की उम्मीद पर पार्टी के भितरघातियों ने ही पानी फेर दिया। पूर्व सांसद छेदी पासवान और सांसद बनने का सपना संजोकर भाजपा से जुड़े ललन पासवान का भितरघात ने शिवेश का बेड़ा गर्ग कर दिया। दोनों की पूरे चुनाव में सक्रिता पार्टी प्रत्याशी के प्रति नहीं दिखी। इसके अलावा कुशवाहा मतदाताओं भी मीरा कुमार और राजद के कारण प्रभाव में ज्यादा मतदान कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष किया।

जहानाबाद में कुशवाहा हुए विमुख जदयू के बागी और औरंगाबाद से राजद के सांसद चुने गए अभय कुशवाहा के अलावा राजद से जुड़े पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के नेताओं की किलेबंदी राजग प्रत्याशी की स्थित लचर होती चली गई। हार का कारण भी यही रहा।

इसके अलावा पवन के पक्ष में क्षत्रिय मदाताओं की लामबंदी से कुशवाहा मतदाता राजद की ओर हो लिए। राजद की ओर से छह-छह कुशवाहा समाज के नेताओं को प्रत्याशी बनाए जाने का संदेश जदयू प्रत्याशी चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के लिए घातक साबित हुआ।

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