Tirhut MLC By-Election: एनडीए उतर गया मैदान में, महागठबंधन का अभी कुछ तय ही नहीं
Tirhut MLC Seat By Election बिहार में लोकसभा चुनाव और विधानसभा उप चुनाव खत्म हो गया है। बहरहाल अब विधान परिषद में स्नातक कोटे के तिरहुत निर्वाचन क्षेत्र में उप चुनाव होना है। ऐसे में इसे लेकर प्रदेश में सियासी दलों ने कमर कसना शुरू कर दिया है। बता दें कि राजग इस मामले में महागठबंधन से आगे निकलता दिख रहा है।
राज्य ब्यूरो, पटना। विधान परिषद में स्नातक कोटे के तिरहुत निर्वाचन क्षेत्र में उप चुनाव की अभी घोषणा तो नहीं हुई है, लेकिन राजग इस सीट को जीतने के लिए चुनावी बिसात पर कई कदम आगे बढ़ चुका है। देवेश चंद्र ठाकुर के सांसद चुने जाने के कारण उप चुनाव की नौबत बनी है।
जदयू के अघोषित प्रत्याशी अभिषेक झा जनसंपर्क में जुट गए हैं, जबकि महागठबंधन में अभी यह भी तय नहीं कि इस सीट पर किस पार्टी का प्रत्याशी होगा। पिछले तीन चुनाव से यहां राजद को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ रहा है। ऐसे में कांग्रेस के भीतर यहां से दावेदारी की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है।
राजद को मजबूत प्रत्याशी की तलाश
उधर, राजद के बीच वैसे प्रत्याशी की तलाश चल रही, जो इस क्षेत्र में संगठन को पिछली तीन हार की पीड़ा से उबार सके। पिछली बार राजपूत समाज से आने वाले शिवहर के मनीष मोहन उसके प्रत्याशी थे। देवेश चंद्र ठाकुर से लगभग तीन हजार मतों के अंतर से पिछड़ गए थे। लगभग 57 हजार मत पड़े थे।
सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर और वैशाली जिला को मिलाकर तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र का स्वरूप तय होता है। इसका प्रतिनिधि चुनने में सवर्ण मतदाता अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय होते हैं। इसीलिए महागठबंधन में लोहा से लोहा काटने की रणनीति पर विचार चल रहा है।
पूर्वी चंपारण के अभिषेक झा मैथिल ब्राह्मण हैं, लेकिन इस परिक्षेत्र के नहीं। अलबत्ता उन्हें देवेश का खुला सहयोग है। बाहरी होने के प्रश्न पर वे सीतामढ़ी के रीगा में अपने ननिहाल का उल्लेख कर रहे। सीतामढ़ी और शिवहर की जनसांख्यिकी स्थिति के दृष्टिगत महागठबंधन की प्राथमिकता में इस बार भी राजपूत समाज है।
NDA को लेकर राजपूत समाज में नाराजगी
लोकसभा चुनाव से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन तक यह समाज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से कुछ नाराज बताया जा रहा है। उसका लाभ उठाने के लिए राजद ऐसे प्रत्याशी की तलाश कर रहा, जो योग्य व टिकाऊ होने के साथ स्थानीय भी हो।
स्थानीयता के इस मुद्दे को हवा देते हुए वैशाली के मनीष शुक्ला भी हाथ-पैर मारने लगे हैं। किसी दल में दाल नहीं गली तो निर्दलीय ही ताल ठोक सकते हैं। वे पिछली बार तक देवेश चंद्र ठाकुर के चुनावी प्रबंधक रहे हैं।
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