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बिहार के सासाराम में सम्राट अशोक के शिलालेख पर बना दी मजार, सवाल यह कि दुनिया में और कितने बामियान?

अफगानिस्‍तान के बामियान में तालिबान ने दुनिया की सबसे ऊंची बुद्ध प्रतिमा को ध्‍वस्‍त कर दिया। बिहार के सासाराम में सम्राट अशोक के शिलालेख पर मजार बना दी गई है। ऐसे में सवाल यह है कि दुनिया में और कितने बामियान हैं?

By prshant singhEdited By: Updated: Sun, 25 Sep 2022 03:59 PM (IST)
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बिहार के सासाराम में सम्राट अशोक का लघु शिलालेख व उसपर बना मजार।
सासाराम से लौटकर प्रशांत सिंह। अफगानिस्‍तान के बामियान के बुद्ध की दास्तान तो आपको याद ही होगी। कभी वहां दुनिया में बुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमा थी। तालिबान ने उसे विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया था। इस्लामिक स्टेट ने भी इराकी पुरातत्व स्थलों को नष्ट किया। भारत में वैसे हालात नहीं, लेकिन यहां बिहार के रोहतास जिले की चंदन पहाड़ी की कंदरा में महान मौर्य सम्राट अशोक के एक ऐतिहासिंक शिलालेख पर मजार बना दिया गया है। पूरे देश के अशोक के ऐसे छह-आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है। इस शिलालेख पर चूने से पोताई करवा चादर चढ़ाई जाती है।

अशोक के 2300 साल पुराने लघु शिलालेख के साथ अन्‍याय

प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, यह सब जानते हैं। परंतु क्या हो, जब  कोई समूह प्रत्यक्ष को ही मिटाने का उपक्रम करने लग जाए? ऐसे में प्रत्यक्ष को भी प्रमाणिकता के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने  के लिए विवश होना पड़ता है। ऐसा ही कुछ एकीकृत भारत (काबुल से लेकर कन्याकुमारी तक) पर राज करने वाले सम्राट अशोक के 2300 साल पुराने लघु शिलालेख के साथ हो रहा है।

सद्भाव के संदेश देते आठ लघु शिलालेख, बिहार में एक

बिहार के आज के रोहतास जिला मुख्‍यालय सासाराम शहर की पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य अवस्थित कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक कंदरा में उत्कीर्ण कराए गए थे। देश में ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे ऐसे शिलालेख मात्र आठ हैं और बिहार में एकमात्र। फिर भी समाज, सरकार और शासन की नाक के नीचे ब्रिटिश राज से लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रमाणिकता के साथ चिह्नित, अधिग्रहित और संरक्षित स्थल की पहचान बदल दी गई है। 2300 साल पुरानी विरासत को मात्र 23 साल में मिटा दिया गया। इस दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा जिला प्रशासन को 20 पत्र लिखे गए कि चंदन शहीद पहाड़ी पर यथास्थिति बनाए रखें, वहां किया जा रहा निर्माण अवैध और गैर कानूनी है।

एएसआइ ने डीएम को दिया अतिक्रमण हटाने का निर्देश

वर्ष 2008 और 2012 व 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन डीएम ने एसडीएम सासाराम को निर्देशित किया। तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को सौंपने का निर्देश भी दिया, लेकिन कमेटी ने आदेश को नहीं माना। आज यहां बड़ी इमारत बन गई है।  इस बाबत रोहतास के जिलाधिकारी धर्मेंद्र कुमार की बात भी सुनिए। वे कहते हैं कि भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग अगर अशोक शिलालेख को अतिक्रमणमुक्त कराने के लिए सहयोग मांगता है तो वे इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएंगे।

शिलालेख पर पोता चूना, घेराबंदी कर गेट में जड़ा ताला

शिलालेख की घेराबंदी कर गेट में ताला जड़ दिया गया है। शिलालेख को सफेद चूने से पोतवा दिया गया है, उस पत्थर पर हरी चादर ओढ़ाकर किन्हीं सूफी संत की मजार घोषित कर दिया गया है। सालाना उर्स का भी आयोजन हो रहा है। जाने-अनजाने यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मत्था टेकने आने लगे हैं।

आस्था की आड़ में नजरों से ओझल किया बुद्ध का संदेश

जिस भारत देश से बौद्ध धर्म का प्रसार पूरे विश्व में हुआ, बुद्ध वहीं मौन हैं। उनके अनुयायी, इतिहासकार, पुराविद हतप्रभ हैं, न जाने उन्हें और कितने 'बामियान' देखने होंगे। अफगानिस्तान के बामियान में तो तालिबान ने पहाड़ पर बनीं बुद्ध की ऊंची मूर्तियों को विस्फोट से धराशाई कर दिया था, परंतु सासाराम में बुद्ध के संदेश की स्थापना को आस्था की आड़ में देश और दुनिया की नजरों से ओझल कर दिया गया है। अगर सचमुच यहां कोई पीर लेटे होंगे तो वह भी कष्ट में होंगे। कोई भी महात्मा नहीं चाहेंगे कि जिस शिलालेख की पहली ही पंक्ति 'एलेन च अंतलेन जंबुदीपसि' यानी जंबू द्वीप भारत में सभी धर्मों के लोग सहिष्णुता से रहें, हो, उस पवित्र पत्थर पर दर्ज संदेश को ओझल कर दिया जाए।

ब्रिटिश राज में 1917 में संरक्षित किया गया शिलालेख

एएसआइ की अधीक्षक गौतमी भट्टाचार्य ने बताया कि सम्राट अशोक के इस महत्वपूर्ण लघु शिलालेख को ब्रिटिश राज में  वर्ष 1917 में संरक्षित किया गया था। इसे प्रारंभिक नोटिफिकेशन (संख्या: बीओ 01332 ईई, 14 सितंबर 1917) तथा अंतिम नोटिफिकेशन (संख्या: बीओ 1814 ईई एक दिसंबर 1917) के जरिए अधिग्रहित किया गया था। स्वतंत्रता के बाद एएसआइ ने इस शिलालेख को वर्ष 2008 में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया। आशिकपुर पहाड़ी की चोटी से लगभग 20 फीट नीचे स्थित कंदरा में स्थापित शिलालेख के पास एएसआइ ने संरक्षण संबंधी बोर्ड भी लगाया था, परंतु वर्ष 2010 में इस बोर्ड को किसी ने उखाड़कर फेंक दिया। एक बार फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित करने के लिए केंद्र सरकार को अनुशंसा भेजी है।

ईसा पूर्व 256 ई. का ब्रह्मी  लिपि में है शिलालेख

इतिहासकार डा. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि ईसा पूर्व 256 ई. में देश भर में आठ स्थानों पर तीसरे मौर्य सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख लगवाए थे। इनमें से एक सासाराम की चंदन पहाड़ी पर है, जहां अब मजार बना दिया गया है। बताया कि कलिंग विजय के युद्ध में हुए रक्तपात से विचलित होकर बुद्ध की शरण में आए सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए जगह-जगह ऐसे शिलालेख खुदवाए थे। उस कालखंड में आमजन की लिपि ब्रह्मी थी, इस कारण संदेश इसी लिपि में उत्‍कीर्ण करवाए, ताकि अधिक से अधिक लोग इन्हें पढ़कर आत्मसात कर सकें।

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