Nitish Kumar ने CM पद से दिया इस्तीफा, NDA के साथ इस फॉर्मूले से बनाएंगे सरकार
Nitish Kumar News नीतीश कुमार ने आखिरकार सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। अब एक बार फिर वो एनडीए में शामिल होंगे और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाएंगे। ऐसे में एक बात तो साफ है कि नीतीश सत्ता की राजनीति करते हैं और वो अनप्रेडिक्टेबल हैं। तो सवाल उठता है ऐसे व्यक्तित्व के बावजूद बिहार में नीतीश फैक्टर इतना स्ट्रॉन्ग कैसे है?
डिजिटल डेस्क, पटना। Bihar Political Crisis Nitish Kumar बिहार की सियासत में एक बार फिर बड़ा उलटफेर देखने को मिला। नीतीश कुमार ने आज सीएम पद से इस्तीफा (Nitish Kumar Resign) दे दिया। अब नीतीश कुमार भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। नीतीश कुमार की बात की जाए तो पाला बदलने के नाम से 'नेता जी' मशहूर हैं।
साल 2014 की बात करें तो नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले साल 2013 में एनडीए से अलग हुए थे। बाद में उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया। साल 2017 की बात करें तो वो महागठबंधन से अलग होकर फिर से एनडीए में शामिल हुए। बाद में वो एनडीए से नाता तोड़कर फिर महागठबंधन में आए।
अब एक बार फिर एनडीए में उनकी वापसी के कयास लग रहें हैं। ऐसे में एक बात तो साफ है कि नीतीश सत्ता की राजनीति करते हैं और वो अनप्रेडिक्टेबल हैं। तो सवाल उठता है ऐसे व्यक्तित्व के बावजूद बिहार में 'नीतीश फैक्टर' इतना स्ट्रॉन्ग कैसे है?
'नीतीश फैक्टर' के बड़े कारण
बिहार में मजबूत 'नीतीश फैक्टर' के 3 बड़े कारण हैं। पहला कारण है जाति, दूसरा वोटबैंक तीसरा खुले मौके रखना। नीतीश खुद कुर्मी जाति से आते हैं। नीतीश कुमार ने बिहार के अत्यंत पिछड़े समुदाय और दलितों का एक बड़ा वोट समूह बनाया और इस समूह ने लगातार उनका साथ दिया है। नीतीश के पास अपना बहुत वोट नहीं हैं, लेकिन जब वो किसी के साथ होते हैं तो उसके प्रभाव के साथ वो वोट उनके साथ होता है।
बिहार में जाति की राजनीति की बात की जाए तो वो इतनी हावी है और जातिगत जनगणना के बाद हर जाति को अपना प्रतिनिधित्व भी दिख रहा है। बीते सालों में ये देखा गया है कि चाहे बीजेपी हो या फिर आरजेडी, दोनो ही पक्षों के लिए नीतीश कुमार ने खुद को प्रासंगिक बना कर रखा है।
दोनों ओर से खुल रखते हैं दरवाजे
जानकार कहते हैं कि बिहार में जब तक कोई दल किसी दूसरे का साथ न ले तब तक सरकार नहीं बना सकता है। नीतीश ने दोनों ओर से दरवाजे खुले रखे हैं - राजद के लिए भी और भाजपा के लिए भी। जब उनको राजद के साथ मुश्किल होती है तो वो भाजपा के साथ चले जाते हैं। जब भाजपा के साथ मुश्किल होती है तो वो राजद के साथ चले जाते हैं।
इस बार नीतीश के एनडीए में आने से भाजपा को ये फायदा होगा कि अगर वो बिहार में सत्ता में आती है तो लोकसभा चुनाव उसके शासनकाल में होगा जिसका सीधा फायदा पार्टी को चुनाव में मिल सकता है। दूसरी तरफ, इंडी गठबंधन की बात करें तो सूत्रों के अनुसार, नीतीश एलायंस से खुश नहीं थे। उनका मानना था कि सीटों पर तालमेल पर काम बहुत धीमी गति से हो रहा है।
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