Bihar Politics: भाजपा ने नीतीश से क्यों मिलाया हाथ? मंदिर-भारत रत्न के मुद्दे से आगे बढ़ी कहानी, यहां पढ़ें गठबंधन की असली वजह
Bihar Political News In Hindi बिहार में आज फिर सत्ता परिवर्तन हुआ है। नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़कर एनडीए से हाथ मिला लिया है। आज उन्होंने नौवीं बार बिहार के सीएम के रूप में शपथ ली है। उन्होंने बिहार में सत्ता परिवर्तन के पीछे भाजपा (BJP) का असली लक्ष्य इस साल के लोकसभा चुनाव में 2019 के परिणाम को दोहराना है।
अरुण अशेष, पटना। Bihar Political News In Hindi बिहार में सत्ता परिवर्तन के पीछे भाजपा (BJP) का असली लक्ष्य इस साल के लोकसभा चुनाव में 2019 के परिणाम को दोहराना है। अगर वोटों की गोलबंदी पिछले चुनाव की तरह हुई तो भाजपा आसानी से यह लक्ष्य हासिल कर सकती है।
शर्त यह है कि भाजपा और राजग (NDA) के दूसरे घटक दल अपने वर्तमान सांसदों के विरूद्ध पनप चुके जन विक्षोभ का आकलन कर नए चेहरे को अवसर दे। क्योंकि गिनती के कुछ सांसदों को छोड़ दें तो अधिसंख्य ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए बहुत कुछ नहीं किया। उनके विरूद्ध वोटरों की नाराजगी भी है।
2019 के चुनाव में राजग के पक्ष में वोटों के ध्रुवीकरण के आंकड़े को देखें तो यह 53.25 प्रतिशत (भाजपा- 23.58, जदयू- 21.81 एवं लोजपा-7.86) पर पहुंच गया था।
यह 1984 (तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद सहानुभति लहर चली थी।) के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Polls) में कांग्रेस (Congress) को मिले वोट (51.8) से भी अधिक था।सीटों के रूप में देखें तो कांग्रेस को तब एकीकृत बिहार की 54 में से 48 सीटों पर ही सफलता मिली थी। 2019 में राजग को 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल हुई।
2019 के परिणाम को दुहराने के लिए भाजपा के पास जदयू (JDU) के सहयोग के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। क्योंकि नीतीश का करीब 22 प्रतिशत वोट शेयर यदि महागठबंधन या आइएनडीआइए (I.N.D.I.A) के पाले में चला जाता तो भाजपा को 2015 के विधानसभा चुनाव जैसे परिणाम पर संतोष करना पड़ सकता था।2014 के लोकसभा चुनाव में 40 में 31 सीट जीतने वाला राजग 2015 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की 60 से कम सीटों पर सिमट गया था। यह कुल 10 लोकसभा क्षेत्रों के तहत आने वाली विधानसभा क्षेत्रों की संख्या के बराबर है।
यह आंकड़ा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को प्रदेश इकाइयों के उस दावे पर भरोसा करने से रोक रहा था कि अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पार्टी के पक्ष में लहर चल रही है। समय रहते शीर्ष नेतृत्व ने नीतीश को अपने पाले में कर लिया।
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