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बिहार की सियासत का बड़ा सवाल: किस घाट लगेगी मांझी की नाव, अपनाएंगे तोल-मोल की रणनीति या रहेगी सीधी चाल

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल से संतोष के त्यागपत्र को माना जा रहा भविष्य के लिए तोल-मोल की रणनीति। निराश महागठबंधन भी नहीं और राजग को अगली घोषणा की प्रतीक्षा मांझी की चाल कुछ ऐसी रह सकती है।

By Arun AsheshEdited By: Yogesh SahuUpdated: Tue, 13 Jun 2023 09:49 PM (IST)
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मांझी की नाव किस घाट लगेगी, सभी को इसकी उत्‍सुकता
अरुण अशेष, पटना। पाला बदलने की राजनीतिक संस्कृति में यह सिद्धांत चलन में है कि यहां स्थायी कुछ नहीं है। न दोस्ती, न दुश्मनी।

कई अन्य राजनेताओं की तरह पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी इसका अनुसरण करते हैं।

उनके पुत्र संतोष कुमार सुमन (बोलचाल में संतोष मांझी) ने नीतीश कैबिनेट से त्यागपत्र दे दिया है। इसके बाद भी महागठबंधन निराश नहीं है।

राजग अगली घोषणा की प्रतीक्षा कर रहा है। क्या पता मांझी की पतवार नाव को किस ओर चलने का निर्देश दे बैठे।

इस वर्ष छह अक्टूबर को मांझी उम्र के 79 वर्ष पूरा करेंगे। उसी दिन वे अपने संसदीय जीवन के 44वें वर्ष में प्रवेश करेंगे।

इन वर्षों में वे कांग्रेस, जनता दल, राजद और जदयू में रहे। इन दलों से वे विधायक बने। मंत्री बने। जदयू ने उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया।

2015 में उन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नाम से अपनी पार्टी बनाई। हरेक चुनाव में उनके पार्टनर बदलते रहे हैं। 2015 में वे राजग के साथ थे।

2019 के लोकसभा में राजद गठबंधन से उनकी दोस्ती हुई। 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर राजग के साथ आए।

बीच में उन्होंने स्वयं को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ संबद्ध कर लिया था। आज उनसे भी अलग हो गए।

रिकार्ड के आधार पर यह अनुमान (पक्का दावा नहीं) लगाया जा सकता है कि 2024 का लोकसभा चुनाव वे राजग के साथ लड़ेंगे।

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की उपलब्धि दो विधानसभा चुनावों में पांच सीट जीतने की है। 2015 के विधानसभा में उनकी पार्टी 21 सीटों पर लड़ी।

एक जीती। 2020 में सात पर लड़ी। एक पर जीत हुई। 2019 में लोकसभा की तीन सीटों पर लड़ी। तीनों हार गई।

दुख का कारण

संतोष कुमार सुमन ने नीतीश कैबिनेट से त्यागपत्र दिया। बुजुर्ग मांझी की शिकायत थी कि उनके पुत्र को बहुत हल्का विभाग दिया गया है।

संतोष पहले लघु जल संसाधन मंत्री थे। यह अभी के अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण विभाग की तुलना में भारी माना जाता है।

नीतीश कुमार के साथ जीने-मरने की कसम का उद्देश्य भी यही था कि कहीं भारी विभाग मिल जाए।

सरकार के समर्थन में जरूरत से अधिक विधायकों के रहने के कारण कुछ मिलने की गुंजाइश नहीं बन रही थी।

राजग में दिखा भविष्य

महागठबंधन में रहते हुए मांझी को अधिक सीट मिलने की गुंजाइश नहीं दिख रही थी। यहां 40 सीटों में सात दावेदार दल हैं।

उनमें भी जदयू, राजद और कांग्रेस जैसे तीन बड़े दल। इन तीनों से कुछ बचे तो तीन वामदल भी हैं। मांझी तीन-पांच के बीच फंसे हैं।

पिछली बार लोकसभा की तीन सीटें मिली थीं। इस बार पांच चाहिए। राजग में जदयू कोटे की लोकसभा की 17 सीटें रिक्त हैं। यहां तीन-पांच की गुंजाइश है।

इसके अलावा बुजुर्ग मांझी की राज्यपाल बनने या राज्यसभा में जाने की हसरत पूरी होने की संभावना भी यहां है।

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