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Bihar Politics: त्यागपत्र नहीं दिए तो दो इतिहास बनाएंगे बिहार विधानसभा अध्यक्ष, आखिर क्या है विजय सिन्हा का प्लान

Bihar Politics बिहार की राजनीति में बिहार विधानसभा के स्पीकर विजय चौधरी का अगला कदम क्या होगा इसको लेकर सबको इंतजार है। अगर स्पीकर त्यागपत्र नहीं देते हैं तो वे दो इतिहास बनाएंगे। पहली बार सत्ता पक्ष के अविश्वास का सामना करेंगे विजय सिन्हा।

By Rahul KumarEdited By: Updated: Mon, 22 Aug 2022 10:32 PM (IST)
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बिहार विधानसभा के स्पीकर विजय कुमार सिन्हा। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार के संसदीय इतिहास में पहला मौका होगा जब विधानसभा अध्यक्ष को सत्ता पक्ष के अविश्वास का सामना करना पड़ेगा। विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा अगर त्यागपत्र नहीं देते हैं तो वे दो इतिहास बनाएंगे। पहला उन्हें 24 अगस्त को सदन में अध्यक्ष के रूप में सत्ता पक्ष का सामना करना होगा और दूसरा बिहार विधानसभा में पहली बार किसी अध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटना पड़ेगा। 

बिहार में अभी तक दो बार विधानसभा अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाए जा चुके हैं। एक बार चर्चा भी हो चुकी है और दूसरी बार बिना चर्चा के प्रस्ताव वापस ले लिया गया था। दोनों प्रस्ताव विपक्ष द्वारा लाए गए थे। 

विजय सिन्हा जिस तरह मैदान में अभी तक अड़े और खड़े हैं, उससे माना जा रहा कि वह सदन में अपना पक्ष रखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनके पक्ष में सिर्फ भाजपा के 76 सदस्य हैं, जबकि विरोध में 164 सदस्यों का सत्ता पक्ष है। ऐसे में उनका टिक पाना असंभव है। इस बीच नैतिकता के आधार पर उनसे इस्तीफे की मांग की जाने लगी है। डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी ने कहा है कि विजय सिन्हा को त्यागपत्र दे देना चाहिए। उन्हें पता है कि उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है। ऐसे में कोई अन्य विकल्प भी नहीं बचता है। 

राजद ने भी विजय सिन्हा को तत्काल इस्तीफे की नसीहत दी है। प्रदेश प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्यसंचालन नियमावली के मुताबिक वह विशेष सत्र की अध्यक्षता नहीं कर सकते हैं। जब सदस्यों को उन पर विश्वास नहीं है तो वह सरकार के बहुमत का फैसला कैसे कर सकते हैं। नए अध्यक्ष के चुनाव तक यह काम उपाध्यक्ष के जिम्मे होगा।

कार्यसूची अभी तय नहीं हुई है, लेकिन माना जा रहा है कि बुधवार को सरकार के विश्वास मत प्राप्त करने से बात शुरू होगी, लेकिन कार्यवाही शुरू होते ही सत्ता पक्ष के सदस्य अविश्वास प्रस्ताव पर विमर्श की मांग करेंगे। ऐसे में सहमति देना विधानसभा अध्यक्ष की बाध्यता होगी। तब स्थापित व्यवस्था के तहत विजय सिन्हा को आसन छोड़ना पड़ेगा। चर्चा के समय आसन पर उपाध्यक्ष होंगे। 

दो बार आ चुके हैं अविश्वास प्रस्ताव 

पहली बार सात अप्रैल 1960 को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष विंध्येश्वरी प्रसाद वर्मा के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह थे। विधानसभा उपाध्यक्ष प्रभुनाथ सिंह को आसन पर आकर अविश्वास का संकल्प पढ़ा था। लंबी बहस हुई थी, किंतु प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया। दूसरी बार मई 1970 में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। विधानसभा अध्यक्ष थे राम नारायण मंडल और मुख्यमंत्री थे दारोगा प्रसाद राय। सदन में आठ जून को चर्चा होनी थी, लेकिन नोटिस सदन में रखे जाने से पहले ही वापस ले ली गई। इस कारण चर्चा की नौबत नहीं आई।