Bihar News: चार दशक में भाजपा ने बिहार में सबको किया पीछे, 21 सीटों का सफर 91 तक पहुंचा
बिहार में अपने चालीस साल के सफर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबको पीछे छोड़ दिया है। इस वक्त बिहार विधानसभा में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। भाजपा के इस यात्रा के दौरान कई बड़े नेता और कुछ दल भी शामिल रहे।
By Akshay PandeyEdited By: Updated: Sat, 26 Mar 2022 08:46 AM (IST)
अरविंद शर्मा, पटना : बिहार में भाजपा के नंबर वन पार्टी बनने और सबको पीछे छोड़ने तक का सफर चार दशकों का है। इस दौरान प्रदेश में भाजपा की कमान कैलाशपति मिश्रा, इंदरसिंह नामधारी और ताराकांत झा से लेकर संजय जायसवाल तक कई बड़े नेताओं ने जदयू समेत विभिन्न दलों के साथ गठबंधन कर यात्रा को आगे बढ़ाया। भाजपा ने बिहार में सबसे पहला चुनाव 1980 में लड़ा था। इसी वर्ष छह अप्रैल को भाजपा की स्थापना भी हुई थी। संयुक्त बिहार की 324 सीटों में से 246 सीटों पर लड़ते हुए भाजपा ने कुल 08.41 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे एवं उसके 21 विधायक जीतकर आए थे। पहली बार भाजपा बिहार में चौथे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई। अगले ही चुनाव में वर्ष 1985 में 234 सीटों पर लड़कर भाजपा ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त लहर के चलते भाजपा की औसत सफलता में गिरावट आई। विधायकों की संख्या और वोट दोनों में कमी आई, लेकिन 1990 से फिर रफ्तार पकड़ी। तब इंदर सिंह नामधारी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। 237 सीटों पर प्रत्याशी उतारे गए और विधायकों की संख्या 39 तक पहुंच गई।
भाजपा के 1995 में जीते 41 प्रत्याशी भाजपा को पहली बार बिहार में 1995 में उल्लेखनीय सफलता तब मिली जब कैलाशपति मिश्र के नेतृत्व में भाजपा विधानसभा चुनाव के मैदान में गई। भाजपा के 315 प्रत्याशियों में से 41 जीतकर आए। कांग्रेस का आंकड़ा 29 से आगे नहीं बढ़ पाया। इस तरह भाजपा लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ जनता दल के सामने मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ गई। यशवंत सिन्हा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। तब नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली समता पार्टी को 310 सीटों पर लड़ने के बावजूद सिर्फ सात विधायकों से संतोष करना पड़ा था, किंतु अगले ही वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में समता पार्टी के साथ भाजपा ने गठबंधन किया।
2000 में बरकरार रखी नंबर दो की कुर्सी 2000 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने नंबर दो की कुर्सी बरकरार रखी। समता के साथ गठबंधन के तहत उसने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर 67 जीते। चुनाव के तुरंत बाद अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ और बिहार विधानसभा की सीटें 243 रह गईं। 2005 के विधानसभा चुनाव से एक वर्ष पहले समता का जदयू में विलय हो गया। इस वर्ष दो चुनाव हुए। फरवरी के चुनाव में जदयू विधायकों की संख्या 55 हो गई और वह 37 विधायकों वाली भाजपा से आगे निकलकर बड़े भाई की भूमिका में आ गया। नवंबर 2005 में भी भाजपा 55 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई। हालांकि, 2010 में 102 सीटों पर लड़कर 91 पर जीत मिली, मगर तब भी जदयू के बाद नंबर दो की पार्टी ही रही। 2015 में जदयू से अलग होकर भी भाजपा नंबर तीन पर ही बरकरार रही।
बिहार में विधानसभा के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शनवर्ष : प्रत्याशी : प्राप्त सीटें : मत प्रतिशत
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- 1985 : 234 : 16 : 07.54
- 1990 : 237 : 39 : 11.61
- 1995 : 315 : 41 : 12.96
- 2000 : 168 : 67 : 14.64
- 2005 (फरवरी) : 103 : 37 : 10.97
- 2005 (अक्टूबर) : 102 : 55 : 15.65
- 2010 : 102 : 91 : 16.49
- 2015 : 157 : 53 : 24.42
- 2020 : 110 : 74 : 19.46