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Bihar Politics: ना NDA ने साथ दिया ना महागठबंधन ने, इन राजनीतिक 'योद्धाओं' के सामने अब ये है चुनौती

महागठबंधन से जुड़े पांच दल अबतक आपस में ही सीटों का बंटवारा नहीं कर पाए हैं। खासकर कांग्रेस और वाम दलों की मांग पूरी नहीं हो पा रही है। भाकपा और भाकपा माले ने तीन-तीन और माकपा ने एक सीट की मांग की है। कांग्रेस की 10 सीट की मांग है। अगर इन दलों की मांग मान ली जाए तो राजद के हिस्से में सिर्फ 23 सीटें बचेंगी।

By Arun Ashesh Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 19 Mar 2024 02:17 PM (IST)
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ना NDA ने साथ दिया ना महागठबंधन ने, इन राजनीतिक 'योद्धाओं' के सामने अब ये है चुनौती
राज्य ब्यूरो, पटना: दो धारा में बंटी दिख ही बिहार की राजनीति में तीसरी धारा भी निकल सकती है। यह उन दलों से निकलेगी, जिन्हें राजग या महागठबंधन में जगह नहीं मिली। रालोजपा और विकासशील इंसान पार्टी आज की तारीख में किसी गठबंधन में नहीं है। उम्मीद की जा रही है कि महागठबंधन से इनकी बातचीत होगी, लेकिन संकट यह है कि महागठबंधन में इन दलों की मांग के अनुरूप सीटें उपलब्ध नहीं हैं।

एआइएमआइएम पहले से ही तीसरा कोण बनाने की दिशा में सक्रिय है।अबतक उसने 11 मुस्लिम बहुल सीटों की पहचान की है। इन पर उम्मीदवार देने की घोषणा की है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में अगर उसे सक्षम उम्मीदवार मिले तो वह टिकट देने से परहेज भी नहीं करेगा।

एमआइएम को जदयू और राजद की आधिकारिक सूची के जारी होने की प्रतीक्षा है। यह जारी हो जाए तो उसे कुछ अच्छे उम्मीदवार गैर-मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी मिल सकते हैं। एआइएमआइएम के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक अख्तरूल इमान ने बताया कि हमारी पार्टी अधिक सीटों पर भी उम्मीदवार दे सकती है। कोई जरूरी नहीं है कि उम्मीदवार मुसलमान ही हो।

क्या चाहते हैं मुकेश सहनी?

उन्होंने यह भी कहा कि हां उम्मीदवार की छवि अच्छी हो और जीत की संभावना भी हो। उन्होंने कहा कि पार्टी नेतृत्व पहले से ही अधिक सीटों पर उम्मीदवार देने की संभावना पर विचार कर रहा है। एमआइएम के अलावा मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी भी कुछ उम्मीदवारों का सहारा बन सकती है। इस समय वीआइपी इस प्रयास में है कि महागठबंधन से उसका समझौता हो जाए।

महागठबंधन में नहीं हुआ सीटों का बंटवारा

दिक्कत यह आ रही है कि महागठबंधन से जुड़े पांच दल अबतक आपस में ही सीटों का बंटवारा नहीं कर पाए हैं। खासकर कांग्रेस और वाम दलों की मांग पूरी नहीं हो पा रही है। भाकपा और भाकपा माले ने तीन-तीन और माकपा ने एक सीट की मांग की है। कांग्रेस की 10 सीट की मांग है। अगर इन दलों की मांग मान ली जाए तो राजद के हिस्से में सिर्फ 23 सीटें बचेंगी। यह उसकी अपनी मांग से भी कम है।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के परिवार में ही तीन सीट की मांग हो रही है। उन्हें किडनी देने वाली पुत्री डॉ. रोहिणी आचार्य को छपरा से उम्मीदवार बनाने की मांग हो रही है। लालू प्रसाद 1977, 1989 और 2004 में छपरा से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। हार की हालत में भी इस सीट पर राजद का दूसरा नम्बर हमेशा सुरक्षित रहता है। राजद में रोहिणी के प्रति सहानुभूति का भाव है।

इस तरह राजद में भी विकासशील इंसान पार्टी के लिए मन लायक सीट की संभावना नहीं है। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस अब राजग से अलग हो गए हैं। वह अगर महागठबंधन से जुड़ते हैं तो उन्हें कम से कम पांच सीट चाहिए। उनके पास दूसरा विकल्प यह है कि भाजपा के हिस्से की लोकसभा सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा करें।

2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने कुछ ऐसा ही जदयू की विधानसभा सीटों पर किया था। चिराग को तो कुछ लाभ नहीं हुआ। जदयू को भारी नुकसान उठाना पड़ा। अगर पारस कुछ सीटों पर भी भाजपा उम्मीदवार की संभावना क्षीण कर सकते हैं तो उन्हें हार में जीत का आनंद देगा।

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