Bihar Politics: ठाकुर के कुएं में उतरी बिहार की सियासत, मनोज झा की 'कविता' पर राजपूतों ने छेड़ा संग्राम
मनोज झा के द्वारा संसद में ओम प्रकाश बाल्मीकि की कविता ठाकुर का कुआं पढ़े जाने पर बिहार में सियासी संग्राम खड़ा हो गया है। राजद सांसद डॉ. मनोज झा ने महिला आरक्षण बिल पर बहस के समय राज्यसभा में इस कविता का पाठ किया था। पांच दिन बाद राजद और जदयू के कुछ राजपूत नेताओं को लग रहा है कि कविता से उनकी बिरादरी का अपमान हो गया है।
राज्य ब्यूरो, पटना: आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा द्वारा संसद में ओम प्रकाश बाल्मीकि की कविता 'ठाकुर का कुआं' पढ़े जाने पर बिहार में सियासी संग्राम खड़ा हो गया है। ऐसा लग रहा है कि बिहार की राजनीति ठाकुर के कुंए में उतर आई है।
राजद के सांसद डॉ. मनोज झा ने महिला आरक्षण बिल पर बहस के समय राज्यसभा में इस कविता का पाठ किया था। पांच दिन बाद राजद और जदयू के कुछ राजपूत नेताओं को लग रहा है कि कविता से उनकी बिरादरी का अपमान हो गया है।
आनंद मोहन के बेटे की मनोज झा नसीहत
जाति के नाम पर जदयू के एक विधान पार्षद भी कूद पड़े हैं। हालांकि, RJD विधायक चेतन आनंद सबसे अधिक दुखी हैं। विधायक चेतन आनंद पूर्व सांसद आनंद मोहन के पुत्र हैं। आनंद मोहन की पहचान राजपूत नेता की रही है।
चेतन ने मनोज झा को नसीहत दी कि वे राजपूत समाज का अपमान न करें। इस तरह की कविताओं का उदाहरण न दें, जिससे किसी जाति की भावना आहत हो।
जातियों को लेकर कई नकारात्मक कविताएं लिखी गई हैं। मनोज झा की जाति के बारे में भी ऐसी कविताएं हैं। अगर वे अपनी जाति के बारे में ऐसी कविता पढ़ें तो लोग विरोध करेंगे।
चेतन बोले-अगर हम होते तो...
चेतन ने अपनी जाति से जुड़े विभिन्न दलों के राज्यसभा सदस्यों की भूमिका पर आश्चर्य प्रकट किया। उन्होंने कहा कि उन्हें कविता पाठ के समय मनोज झा का विरोध करना चाहिए था। अगर हम होते तो सदन में ही धरना पर बैठ जाते।
राजद विधायक ने कहा कि उनकी पार्टी ए टू जेड की है, लेकिन मनोज झा जैसे लोगों के चलते दल को परेशानी हो रही है। वह इस मामले को पार्टी मंच पर उठाएंगे।
MLC संजय सिंह बोले- आग को मत छेड़ो...
जदयू विधान परिषद सदस्य संजय सिंह ने कहा कि मनोज झा ने क्षत्रिय समाज का अपमान किया है। यह बर्दाश्त करने वाली बात नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि 'आग को मत छेड़ो'। भाजपा विधायक नीरज कुमार बब्लू ने कहा-ऐसा बयान (कविता नहीं) देने वाला सामने रहता तो मुंह तोड़ देता।
मनोज को थी आशंका
सांसद मनोज झा को आशंका थी कि इस कविता को लेकर विवाद जरूर होगा। उन्होंने कविता पढ़ने से पहले स्पष्ट कर दिया था कि इसके प्रतीक किसी जाति विशेष से नहीं जुड़े हैं। यह ठाकुर हम में है, हम सभी में है। न्यायालय में है। विश्वविद्यालय में है। संसद की दहलीज पर है। संसद में है।
यह है कविता
चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का। भूख रोटी की, रोटी बाजरे की, बाजरा खेत का, खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का,हल ठाकुर का, हल की मूठ पर हथेली अपनी,फसल ठाकुर की। कुआं ठाकुर का, पानी ठाकुर का, खेत-खलिहान ठाकुर के,
गली-मुहल्ले ठाकुर के। फिर अपना क्या? गांव? शहर? देश?
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