महागठबंधन सरकार को बड़ा झटका! आरक्षण का दायरा बढ़ाने को पटना हाई कोर्ट में चुनौती, अब क्या करेंगे CM नीतीश?
बिहार में महागठबंधन सरकार को बड़ा झटका लगा है। आरक्षण का दायरा बढ़ाने को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। लोकहित याचिका गौरव कुमार व नमन श्रेष्ठ ने दायर की है। याचिका को सूचीबद्ध करने से पहले उसकी एक प्रति महाधिवक्ता के कार्यालय को भेज दी गई है। मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बाद इसे सूचीबद्ध किया जाएगा।
राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Reservation बिहार में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति (बीसी) और अत्यंत पिछड़ी जाति समूहों के लिए सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का कोटा बढ़ाने वाले कानून को चुनौती देते हुए पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका को सूचीबद्ध करने से पहले उसकी एक प्रति महाधिवक्ता के कार्यालय को भेज दी गई है।
मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बाद इसे सूचीबद्ध किया जाएगा। यह लोकहित याचिका गौरव कुमार व नमन श्रेष्ठ ने दायर की है। बिहार विधान मंडल ने बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ी जाति) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शिक्षण संस्थानों में प्रवेश) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 पारित किया। इनके माध्यम से आरक्षित श्रेणियों के लिए पहले से दी जा रही आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया गया है।
21 नवंबर को अस्तित्व में आया कानून
इस लोकहित याचिका में इन संशोधनों पर रोक लगाने की मांग की गई है। बिहार विधान मंडल ने 10 नवंबर 2023 आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित किया और राज्यपाल ने इन कानूनों पर 18 नवंबर 2023 को मंजूरी दी। राज्य सरकार ने 21 नवंबर 2023 को गजट में इसकी अधिसूचना जारी कर दी। इसके साथ ही राज्य की सेवाओं और शिक्षण संस्थानों के दाखिले में नया आरक्षण कानून प्रभावी हो गया।
याचिका में कहा गया है कि संशोधन जाति सर्वेक्षण के आधार पर किया गया है। इन पिछड़ी जातियों का प्रतिशत इस जातिगत सर्वेक्षण में 63.13 प्रतिशत था, जबकि इनके लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया गया है।
'समान अधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ'
याचिका में ये भी कहा गया है कि संवैधानिक प्रविधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का कोई प्रविधान नहीं है। संशोधित अधिनियम राज्य सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है।
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