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EXCLUSIVE: देश में बौने बच्‍चों का राज्‍य बना बिहार, चौंका देंगे कुपोषण के ये आंकड़े

EXCLUSIVE यह बिहार में बच्‍चों के कुपोषण को लेकर चौंकाने वाला तथ्‍य है। कुपोषण के कारण बच्‍चे बौने बन रहे हैं। उनका शारीरिक ही नहीं मानसिक विकास भी रुक रहा है।

By Amit AlokEdited By: Updated: Sat, 21 Dec 2019 10:24 PM (IST)
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EXCLUSIVE: देश में बौने बच्‍चों का राज्‍य बना बिहार, चौंका देंगे कुपोषण के ये आंकड़े

पटना/ पूर्णिया [अमित/ दीपक]। बिहार को लेकर यह चौंकाने वाला खुलासा है। यहां पांच साल तक के 48.3 फीसद बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन के शिकार हैं। इसमें बड़ी संख्या में बच्चे गर्भ में ही कुपोषित हो जाते हैं। पांच वर्ष तक आते-आते वे अंडरवेट के साथ-साथ बौने भी होते हैं। ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) के राष्‍ट्रीय औसत 38.4 फीसद से बहुत अधिक है। कह सकते हैं कि कुपोषण के कारण बिहार पांच वर्ष तक के बौने बच्‍चों का राज्‍य बन गया है।

भारत में 38.4 फीसद बच्चे बौनेपन के शिकार

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (NFHS 4) के अनुसार भारत में पांच वर्ष के कम आयु के 38.4 फीसद बच्चे बौनापन के शिकार हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो ऐसे बच्‍चों की लंबाई उनकी उम्र की तुलना में कम है। देश में 21 फीसद ऐसे बच्चे भी हैं, जिनका वजन उनकी लंबाई की तुलना में कम है।

विश्‍व में सर्वाधिक बौने बच्‍चे भारत में

कुपोषण से बौनेपन का यह आंकड़ा पूरे विश्‍व में सर्वाधिक है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 की मानें तो भारत में सर्वाधिक 4.66 करोड़ बच्चे बौनेपन के शिकार हैं। जबकि, नाइजीरिया एवं पाकिस्तान क्रमश: 1.39 एवं 1.07 करोड़ ऐसे बच्चों के साथ क्रमश: दूसरे व तीसरे स्‍थान पर हैं। कुपोषित बच्‍चों की संख्‍या की बात करें तो भारत में यह आंकड़ा 2.55 करोड़ का है। जबकि, नाइजीरिया एवं इंडोनेशिया में यह संख्या क्रमश: 34 व 33 लाख है।

देश के सर्वाधिक बौने बच्‍चे बिहार में

चौंकाने वाला तथ्‍य तो यह है कि भारत में बौनेपन के शिकार  बच्‍चों की संख्‍या बिहार में चिंताजनक है। यहां पांच साल से कम के 48.3 फीसद बच्चे बौनेपन का शिकार हैं। पूर्णिया की बात करें तो आंकड़ा 47.3 फीसद का है। पूर्णिया में यहां पांच वर्ष तक के लगभग आधे बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। इस कारण वे बौनापन के भी शिकार हो रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 38 जिलों में से 23 में बच्चों में कुपोषण की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इनमें बक्सर, नालंदा, कैमूर, नवादा, गया, भोजपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, सारण, सिवान, वैशाली, दरभंगा, मुंगेर, जमुई, किशनगंज, भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा एवं अररिया शामिल हैं।

आयु व लंबाई के आधार पर होता निर्धारण

सवाल यह है कि आखिर बौनापन का कारण क्‍या है? बच्‍चों को पर्याप्त भोजन व पोषण नहीं मिलने तथा बार-बार संक्रमण आदि के कारण उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इस कारण वे बौनापन के शिकार होते हैं। इसका निर्धारण उम्र की तुलना में लंबाई के आधार पर होता है।

कुपोषण से बाधित होता विकास

कुपोषण के कारण बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित हो रहा है। वे कई तरह की बीमारियों के  शिकार हो रहे हैं। वजन कम होना, गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाना, सामान्य बच्चों की तरह मानसिक विकास नहीं होना, वजन और शारीरिक क्षमता का कम होना और सामान्य बच्चों की तरह लंबाई भी नहीं बढऩा आदि पोषण की कमी के कारण होने वाली समस्याओं में शामिल हैं।

समाज कल्‍याण विभाग ने की पहल

समाज कल्याण विभाग ने बच्चों में बढ़ते कुपोषण और महिलाओं व किशोरियों में खून की कमी (एनीमिया) जैसी समस्याओं से पार पाने के लिए पहल शुरू कर दी है। सभी जिलों में आंगनबाड़ी केंद्रों व अस्पतालों में पांच साल तक के बच्चों का नियमित वजन कराया जा रहा है। देखा जा रहा है कि उम्र के अनुसार उनका वजन ठीक है या नहीं। सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों के लिए पोषाहार का नियमित अभियान चलाया जा रहा है। सामुदायिक स्तर से लेकर अस्पतालों और आंगनबाड़ी केंद्रों के साथ शिक्षा विभाग को भी अभियान से जोड़ दिया गया है।

पहले 1000 दिनों में कुपोषण से होता बौनापन

पूर्णिया के सिविल सर्जन डॉ. मधुसूदन प्रसाद का कहना है कि कुपोषण के कारण बौनापन और कम वजन की समस्या हो सकती है। इसका प्रमुख कारण बच्चे की जीवन के प्रारंभिक 1000 दिनों के दौरान देखभाल में कमी होना है। ऐसे बच्चों में मोटापा, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के ज्यादा खतरे रहते हैं। उनका मानसिक विकास भी पूरी तरह नहीं हो पाता है। वे सीखने में सामान्य बच्चों की तुलना में पिछड़ जाते हैं। साथ ही ऐसे बच्चे स्कूल में पिछड़ जाते हैं।

पैमाना के भारतीयकरण की कोशिश में सरकार

यह भी सही है कि देश व दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मानव संरचना का विज्ञान एक नहीं है। ऐसे में बौनेपन को मापने का एक मापदंड नहीं हो सकता। बताया जाता है कि ऐसे में केंद्र सरकार हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से बौनापन मापने के अंतरराष्ट्रीय पैमाना के मानव विज्ञान के अनुसार भारतीयकरण की कोशिश में लगी है।