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मंत्री बने नित्यानंद: कभी लालू को दी थी चुनौती, नहीं रोकने दिया था आडवाणी का रथ

कभी लालू प्रसाद यादव को चुनौती देनेवाले और आडवाणी के रथ को हाजीपुर में नहीं रुकने देनेवाले उसूलों के पक्के बिहार भाजपा नेता नित्यानंद राय को अब बड़ी जिम्मेदारी मिली है। जानें।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Fri, 31 May 2019 09:59 AM (IST)
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मंत्री बने नित्यानंद: कभी लालू को दी थी चुनौती, नहीं रोकने दिया था आडवाणी का रथ
पटना, जेएनएन। बिहार भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय भी मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए। नित्यानंद राय अमित शाह के बेहद करीबी माने जाते हैं और पहली बार केंद्र में शामिल हुए हैं। उन्‍हें राज्‍यमंत्री बनाया गया है। उन्हें भाजपा ने वर्ष 2016 में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी थी। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद गुटों में बंटी बिहार बीजेपी को एकजुट कर एक मंच पर ला खड़ा कर दिया। अपने उसूलों और पक्के इरादे को साथ लेकर चलने वाले नित्यानंद राय ने इस बार रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा को हराया है।

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बिहार में भाजपा ने वर्ष 2016 में प्रदेश का अध्यक्ष बदलने का फैसला लिया तो विधायकों से लेकर सांसदों तक कई नामों की चर्चा हुई, लेकिन अमित शाह के मापदंडों पर सिर्फ नित्यानंद राय ही खरे उतर पाए और उन्होंने युवा नेता राय को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी। 

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नित्यानंद राय के राजनैतिक सफर की शुरुआत 1981 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, एबीवीपी के कार्यकर्ता के रूप में हुई। हाजीपुर के ही राजनारायण कॉलेज में इंटर की पढ़ाई के दौरान वे नियमित संघ की शाखाओं में जाते थे। उनकी नेतृत्व क्षमता की वजह से संघ ने उन्हें जल्द ही 1986 में हाजीपुर का तहसील कार्यवाह बना दिया और उसके बाद तो वे संगठन की हर सीढ़ी चढ़ते चले गए।

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1990 की शुरुआत तक संघ से पदमुक्त होकर वे सीधे बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव बनाए गए और 1995-96 में युवा मोर्चा के महासचिव और फिर1999 में युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने। फिर उन्होंने पहली बार में ही 2000 के विधानसभा चुनाव में हाजीपुर सीट से जीत हासिल की।

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नित्यानंद राय ने हाजीपुर से लगातार चार विधानसभा चुनाव जीता और दो बार उसी सीट से मंडल स्तर के ऐसे कार्यकर्ता को चुनाव जितवाया, जो जाति समीकरण में कहीं भी फिट नहीं बैठता था। 2015 के विपरीत माहौल में भी पार्टी ने यह सीट जीती। फिर राय 2014 के लोकसभा चुनाव में उजियारपुर लोकसभा सीट से सांसद बने और इस बार भी उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा को बड़े अंतर से इसी सीट से पराजित किया है।

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वर्ष 1990  में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा बिहार में लोकतंत्र की जन्मभूमि कहे जाने वाले हाजीपुर पहुंचने वाली थी। इसे रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव आमादा थे। उन्होंने ऐलान भी कर दिया था कि रथ को गांधी सेतु पार नहीं करने दिया जाएगा। उसी वक्त संघ की पृष्ठभूमि से जुड़ा बीजेपी का ये युवा चेहरा उभर रहा था और उसने ताकतवर लालू यादव की सत्ता को चुनौती दी और ऐलान किया कि राम रथ यात्रा को हाजीपुर में नहीं रोकने दिया जाएगा।

महज 23 वर्ष के नित्यानंद राय ने तब महापंचायत बुलाकर ऐसा जनसमर्थन जुटाया कि बिहार की तत्कालीन लालू सरकार आडवाणी का रथ हाजीपुर में रोकने का साहस नहीं जुटा पाई। इतना ही नहीं, नित्यानंद राय ने हाजीपुर में आडवाणी की जनसभा भी कराई थी। इसके बाद नित्यानंद राय की पहचान राजनीति की शुरुआत में ही दबंग और निर्भीक कार्यकर्ता की बन गई थी। 52 वर्ष के हो चुके राय के करियर में तब अहम मोड़ आया जब 30 नवंबर, 2016 को तड़के बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव रामलाल का फोन आया और उन्हें बिहार में बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। अब उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गयी। 

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