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नाव हादसा : कोसी से लेकर गंडक नदी तक लील चुकी कई जानें, उत्तर बिहार में बड़ी दुर्घटनाएं कोई आज की नहीं

मुजफ्फरपुर में बागमती नदी में आज एक नाव पलटने के बाद कई लोग लापता हो गए। हालांकि उत्तर बिहार में इस तरह दुर्घटना कोई नई नहीं है। कोशी से लेकर गंडक नदी तक में नाव पलटने से अब तक हजारों जानें जा चुकीं हैं। इससे पहले 6 सितंबर 2023 को दरभंगा में गहरे चौर में नाव पलटने से तीन बच्चियों और दो महिलाओं की मौत हो गई थी।

By Jagran NewsEdited By: Mukul KumarUpdated: Thu, 14 Sep 2023 06:29 PM (IST)
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कोसी से लेकर गंडक नदी तक लील चुकी कई जानें
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर : नदी से घिरा स्कूल... और उसकी राह में नदी की बाधा। नदी पार करने को नाव का विकल्प, इससे बचें तो दूर-दुर्गम रास्ता। अब जान हथेली पर लेकर नदी पार करें या धूल धूसरित रास्तों की परिक्रमा कर स्कूल पहुंचें।

इन सबसे जंग जीत स्कूल पहुंचे तो वहां सीमित संसाधन की कोफ्त। कुल मिलाकर ज्ञान प्राप्त करने के लिए चुनौतियां हर ओर। यह पीड़ा उत्तर बिहार के कमोबेश हर जिले में दिखती है, जहां शिक्षा की राह में पहुंच की बाधा है। वहां बच्चे चचरी या बांस पुल और नावों से आना-जाना करते हैं।

नदी की पेटी में गांव, स्कूल जाने को नाव

दरभंगा के गौड़ाबौराम प्रखंड क्षेत्र की गोरामानसिंह पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय चतरा में के छात्र-छात्राओं को नाव से नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता है। कमला बलान नदी की पेटी में बसा चतरा गांव साल में पांच माह नदी के पानी से घिरा रहता है।

ग्रामीण अशोक शर्मा, योगेंद्र यादव बताते हैं कि कमला बलान नदी के चतरा घाट पर पुल की मांग वर्षों से हो रही हैं, लेकिन सांसद-विधायक चुनाव के बाद इसपर गौर करते कहां है? अगस्त के बाद जनवरी तक नदी में पानी भरा रहता है। चतरा पूर्वी टोल के 50 बच्चे नाव से नदी पार स्कूल जाते हैं।

एक बार में 15 से 20 बच्चे नाव पर सवार होते हैं। कई बार तो नाविक के नहीं होने से कोई ग्रामीण ही नाव पार करा देता है, ऐसे में कभी भी हादसा हो सकता है।

किरतपुर प्रखंड क्षेत्र में बाढ़ के समय बच्चों को नाव से स्कूल जाना पड़ता है। कोसी का पानी जब फैल जाता है तो आवागमन बंद हो जाता है, ऐसे में स्कूल जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है।

पूसा में 100 से अधिक बच्चे नाव से पार कर आते स्कूल

समस्तीपुर के पूसा में प्रतिदिन 100 से अधिक छात्र-छात्राएं नाव से नदी पार कर स्कूल आते हैं। ये कल्याणपुर प्रखंड के सिमरी घाट से नाव से बूढी गंडक पार करते हैं।

पूसा विश्वविद्यालय प्रशासन ने नावों के परिचालन पर रोक लगा दिया था, किंतु स्थानीय लोगों के दबाव पर पुन: चालू कर दिया गया। यहां नाव परिचालन में मानक का ध्यान नहीं रखा जाता। क्षमता से अधिक छात्र-छात्राओं को बैठाकर लाया जाता है।

सिमरी घाट, बख्तियारपुर, बलहा, सोमनाहा सहित आधा दर्जन से अधिक गांवों के बच्चे प्रतिदिन पूसा नाव से इसलिए आते हैं कि उन्हें कम दूरी तय करनी पड़ती है। सड़क मार्ग से छह से सात किलोमीटर की दूरी से बचने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ता है।

हर रोज जान जोखिम में डालकर नदी पार करते शिक्षक

समस्तीपुर के मोहनपुर प्रखंड की धरणीपट्टी पश्चिमी पंचायत में गंगा पार दियारे में तीन स्कूलों के 11 शिक्षक नाव से गंगा नदी पार कर स्कूल जाते हैं। बीते 13 वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है। रसलपुर घाट से नाव पर सवार होकर नदी पार करते हैं। शाम में छुट्टी के बाद वापस उसी घाट पर उतर कर घर लौटते हैं।

प्रति व्यक्ति 50 रुपये खर्च होते हैं। शिक्षकों का कहना है कि खर्च तो फिर भी बर्दाश्त है, हर रोज नाव की सवारी जान पर भारी है। बेतिया के दियारावर्ती क्षेत्र में भी शिक्षकों के सामने यही पीड़ा है।

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वे नाव से पार कर स्कूल पहुंचते हैं। इन इलाकों के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए नाव से गंडक पार करना होता है, क्योंकि दियारे के गांवों में हाई और प्लस टू विद्यालय नहीं हैं।

नौतन, बैरिया एवं योगापट्टी प्रखंड में 18 ऐसे गांव हैं, जहां के बच्चे उच्च शिक्षा के लिए बेतिया मुख्यालय आते हैं। इसके लिए उन्हें नदी पार करने की मजबूरी है। हालांकि, जागरूक व सक्षम अभिभावक अपने बच्चों को मुख्यालय में छात्रावास या लाज में रखने लगे हैं।

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