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Patna Gandhi Maidan History: एक व्यवसायी के कहने पर सरकार ने बदला था नाम, बेहद दिलचस्प है नामकरण की कहानी

Patna Gandhi Maidan पटना में इंटरनेशनल आर्काइव्स डे के अवसर पर प्रदर्शनी लगाई गई है। जिसमें पटना के इतिहास के झरोखों से आप रुबरू हो सकेंगे। इस प्रदर्शनी में बताया गया है कि पहले पटना में भी ट्राम चलती थी।

By Roma RaginiEdited By: Roma RaginiUpdated: Wed, 14 Jun 2023 12:18 PM (IST)
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Patna Gandhi Maidan: पटना के गांधी मैदान का इतिहास
जागरण संवाददाता, पटना। ऐतिहासिक गांधी मैदान का नाम कालांतर में बांकीपुर लॉन था। एक व्यवसायी के अनुरोध पर इसका नाम बदला गया। सुनकर आपको अचरज होगा, लेकिन यह सच है।

मुजफ्फरपुर निवासी व्यवसायी की वजह से बिहार सरकार ने बांकीपुर मैदान का नाम बदलकर गांधी मैदान कर दिया। बिहार सरकार के राजकीय अभिलेखागार में चल रही ऐतिहासिक दस्तावेजों की प्रदर्शनी में ऐसी कई बातें आपके सामने आएंगी, जिनसे आप अभी तक रूबरू नहीं होंगे।

इंटरनेशनल आर्काइव्स डे के अवसर पर यह प्रदर्शनी लगाई गई है। इसमें आजादी से पहले के कई अहम दस्तावेज हैं। इसमें उस समय पटना के विकसित स्वरूप का पता चलता है।

ऐसे पड़ा गांधी मैदान नाम

बात 1948 की है। मुजफ्फरपुर के विश्वनाथ प्रसाद चौधरी ने बिहार सरकार के प्रधान सचिव को पत्र लिखा। इसमें अनुरोध किया कि जहां बापू ने महीनों बैठकर प्रार्थना की, उस पवित्र भूमि का नाम बांकीपुर मैदान से बदला जाना चाहिए।

व्यवसायी ने सुझाव दिया कि यह महात्मा गांधी मैदान, गांधी मैदान, गांधी उद्यान, गांधी पार्क, गांधी प्रार्थना सभा या कुछ और जिसमें बापू के नाम का संबंध हो। सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया और बांकीपुर मैदान का नाम बदलकर गांधी मैदान कर दिया।

पटना का पहला सिनेमा हॉल

दस्तावेज के अनुसार, सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1918 में आने के बाद एलिफिंस्टन बाइसकोप कंपनी को 500 रुपये सालाना पर सिनेमा हॉल के लिए 625 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई गई। उसपर पहला सिनेमा हॉल एलिफिंस्टन खुला।

कोलकाता की तरह पटना में थी ट्राम और फेरी सेवा

दस्तावेजों के अनुसार, 1886-87 में एक कंपनी बनाई गई। बताया गया कि बांकीपुर मैदान से अशोक राजपथ के रास्ते पटना सिटी तक ट्राम सेवा की शुरुआत की गई। घोड़े से चलने वाले ये ट्राम 16 साल तक यातायात के अहम साधन थे। फिर 1903 में इसे बंद कर दिया गया।

साथ ही गंगा में फेरी सेवा (नाव) थी। यह पहलेजा से दीघा, मारुफगंज और हरदी छपरा तक चलती थी। पहले में पटना की जलनिकासी, जलापूर्ति की व्यवस्था से जुड़े दस्तावेज पटना के विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को दिखाते हैं।

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