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Caste Census : चिराग पासवान ने जाति आधारित गणना पर उठाए सवाल, बोले- इसमें हेराफेरी है; तटस्थ एजेंसी से दोबारा करवाई जाए

बिहार की सियासत में युवा चेहरों में से एक हैं चिराग पासवान। पिता स्वर्गीय राम विलास पासवान की विरासत आगे बढ़े रहे चिराग गाहे-बगाहे चर्चा में रहते हैं। कभी चाचा से मनमुटाव तो कभी एनडीए में रहते हुए हाजीपुर सीट पर दावे को लेकर। चिराग बिहारा के मुद्दों को भी उठाते हैं। इसी क्रम में दैनिक जागरण से उन्होंने जाति आधारित गणना जैसे कई मुद्दों पर खुलकर बात की है।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Sat, 07 Oct 2023 07:53 PM (IST)
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Caste Census : चिराग पासवान ने जाति आधारित गणना पर उठाए सवाल

अरुण अशेष, पटना। Chirag Paswan on Caste Census : मंडल और मंदिर के बीच बंटती जा रही बिहार की राजनीति में इन दिनों दो युवाओं की खूब चर्चा होती है- तेजस्वी यादव और चिराग पासवान (Chirag Paswan)। लालू प्रसाद (Lalu Yadav) अगर इस राजनीति के अतीत हैं तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) वर्तमान माने जा सकते हैं।

इस कड़ी में अगर मंडल राजनीति की भविष्य को देखें तो इस समय यही दोनों चेहरे नजर आएंगे। संयोग यह कि निश्चित समर्थक वर्ग के साथ इन दोनों के वोट बैंक में अच्छी खासी पूंजी विरासत के रूप में जमा है।

ये कहीं भी रहें, मोटे तौर पर इनका वोट बैंक साथ चलता रहता है। समय-समय पर तेजस्वी और चिराग-दोनों ने इसे साबित भी किया है।

चिराग लगातार इस प्रयास में हैं कि पिता रामविलास पासवान की विरासत को न सिर्फ संभाले, बल्कि उसे बहुत दूर तक ले जाएं।

राजनीतिक निर्णयों में लचीचापन के मोर्चे पर वह बहुत हद तक पिता के करीब और कुछ मामलों में उनसे कुछ दूर भी चले जाते हैं।

उनके शब्दकोष में सभी दलों के लिए समझौते की गुंजाइश तो है, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए कोई नरमी नहीं है।

लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान से दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो प्रमुख अरुण अशेष ने जाति आधारित गणना से लेकर गठबंधन की राजनीति और नीतीश कुमार से उनसे संबंधों पर बेबाक बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।

प्रश्न- जाति आधारित गणना को आप किस रूप में देखते हैं?

उत्तर- यह पूरा का पूरा हेराफेरी है। हम इसके नतीजे को खारिज करते हैं। अगर संख्या के आधार पर राज्य सरकार गरीबों, पिछड़ों और अनुसूचित जाति-जनजातियों के कल्याण के लिए नीतियां बनाना चाहती है तो किसी तटस्थ एजेंसी के माध्यम से गणना हो। आर्थिक सर्वेक्षण हो, जिसमें पूरी पारदर्शिता रहे। इस गणना में उन जातियों की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर दर्शायी गई है, जिन्हें सत्तारूढ़ महागठबंधन के दलों के करीब माना जाता है। आम लोगों की शिकायत है कि गणना करने वालों ने उनसे संपर्क ही नहीं किया। इतनी बड़ी आबादी और आर्थिक स्थिति की गणना के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई और जितना कम समय लगा, वही इसके सच होने पर संदेह पैदा करता है। मैं दुसाध जाति का उदाहरण दे रहा हूं। इस जाति की आबादी 5.31 प्रतिशत बताई गई है। जबकि यह यादवों(14.27 प्रतिशत) के बाद दूसरे नम्बर पर है।

प्रश्न- बिहार की जाति आधारित राजनीति में चिराग किस जाति पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं?

उत्तर- हम कभी जाति आधारित राजनीति (Caste Based Politics) नहीं करते हैं। आप हमारी सभाओं में देखिए। समाज के हर तबके के लोग नजर आएंगे। सवर्ण, पिछड़े, अति पिछड़े, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक...सबों का समर्थन मिल रहा है। भीड़ में युवाओं की भारी उपस्थिति हमें आश्वस्त करती है कि राज्य में बदलाव होगा। बिहार के लोग और यह राज्य देश में नंबर एक बनेगा।

प्रश्न- आप राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की प्रशंसा करते हैं। किसी दल के प्रति कटुता का भाव नहीं रखते हैं। फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इतनी दूरी कैसे बढ़ गई?

उत्तर- यह राजनीतिक विषय नहीं है। मैं राजनीति करता हूं। चुनावी नफा नुकसान को देखकर रणनीति बनाता हूं। लेकिन, राजनीति में आने से पहले मैं पुत्र भी हूं। दुनिया का कोई समर्थ पुत्र यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि कोई उसके पिता का अपमान करे। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने मेरे सामने मेरे पिता का अपमान किया। उन्हें अपने कमरे में बुलाकर अपमानित किया। मेरे पिता कभी याचक नहीं रहे। नीतीश ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया, जो अहंकारी आदमी याचकों के साथ करता है। मैं उस दिन को नहीं भूल पाता हूं।

प्रश्न- विस्तार से बताएंगे?

उत्तर- हां, हां। यह सब तो मुझे कल की नहीं, आज की बात लग रही है। लोकसभा चुनाव में जब सीटों का बंटवारा हो रहा था, लोजपा ने राजग के घटक के रूप में सात सीटों की मांग की थी। करार हुआ कि लोकसभा की छह और राज्यसभा की एक सीट दी जाएगी। यह भी कि लोकसभा चुनाव के बाद राज्यसभा की जो पहली रिक्ति आएगी, वह मेरे पिता को मिलेगी। इस करार पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित राजग के सभी घटक दलों की सहमति थी। भाजपा के रविशंकर प्रसाद राज्यसभा सदस्य थे। वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हो गए। इसके कारण बिहार से ही राज्यसभा में एक रिक्ति हो गई थी। उनकी जगह मेरे पिता को भेजना तय हुआ। यह जून 2019 की बात है। हमलोग नई दिल्ली से पटना के लिए चले। उस दिन राज्यसभा सीट के लिए नामिनेशन होना था। पटना हवाई अड्डे से हमलोग सीधे एक अणे मार्ग गए। मेरे पिता ने इस चुनाव के लिए जदयू विधायकों का समर्थन मुख्यमंत्री से मांगा। मुख्यमंत्री ने दो टूक कहा- आपसे भाजपा ने करार किया है। आप उनसे समर्थन मांगिए। (हालांकि चुनाव की नौबत नहीं आई। अकेला उम्मीदवार होने के कारण रामविलास पासवान निर्विरोध निर्वाचित हो गए थे।) मैने अपने पिता का चेहरा देखा। उनके चेहरे पर पहली बार मैंने पीड़ा देखी। बस, उसी क्षण, मुख्यमंत्री के कमरे में ही संकल्प लिया कि इस आदमी से (नीतीश कुमार) कभी हाथ नहीं मिलाऊंगा। मैं आज भी इस संकल्प पर कायम हूं।

प्रश्न- गठबंधन की राजनीति में इतनी सख्ती चलती है क्या?

उत्तर- नहीं चलती होगी। हमारे और मुख्यमंत्री के मामले में चलेगी। उनसे कोई समझौता नहीं करेंगे। वह भी तो मेरे साथ दुश्मनी कर रहे हैं।

प्रश्न- आपके साथ दुश्मनी?

उत्तर- बिल्कुल। वे मेरी पार्टी और परिवार को तहस नहस करने पर तुले हैं। हमारी पार्टी में फूट नीतीश कुमार के निर्देशन में पड़ी। हम सबूत देंगे कि कैसे जदयू के एक नेता ने हमारे सांसदों के साथ कहां पर, किस समय और कितनी देर तक मीटिंग की। चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) तो जदयू कोटा से ही केंद्र में मंत्री बने हैं। हमारे पास पक्की सूचना है कि उन्हें मंत्री बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने भाजपा के शीर्ष नेताओं से बातचीत की थी। उनका यह रवैया आज का नहीं है। बहुत पहले से है। 2005 में उन्होंने हमारे विधायकों को तोड़ा। 2020 के विधानसभा चुनाव में जीते हमारे इकलौते विधायक को जदयू में शामिल करा लिया। पार्टी के राज्यसभा सदस्य और विधान परिषद सदस्यों को भी जदयू में मिला लिया। एक नहीं, अनके उदाहरण है। वैमनस्य की शुरुआत भी तो उन्होंने की है। हां, अब अगर वे इसे समाप्त भी करना चाहें तो हम नहीं करेंगे।

प्रश्न- आपका राजग से कब तक संबंध रहेगा?

उत्तर- हम राजग में हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव साथ लड़ेंगे। 2025 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ेंगे। इनको (नीतीश कुमार) मुख्यमंत्री के पद से हटा कर चैन से बैठेंगे। 2024 में नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बन रहे हैं। उसके अगले साल बिहार में राजग की सरकार बनेगी। हम जिलों में जा रहे हैं। गांवों में जा रहे हैं। हर जगह नीतीश कुमार के विरूद्ध आक्राेश है। राजग को लोकसभा की सभी 40 सीटें मिलेंगी।

प्रश्न- मुसलमानों के प्रति आपकी पार्टी और भाजपा के विचार में बहुत अंतर है। आप उनके साथ कैसे लंबी दूरी तय कर पाएंगे?

उत्तर- मुसलमान नहीं, हम अल्पसंख्यक कहेंगे। उसमें और धर्म के लोग आते हैं। सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, कई और विन्दुओं पर भी हमारे बीच मतभेद हैं। रहेंगे भी। आखिर दोनों एक ही सिद्धांत और विचार के होते तो अलग-अलग दल नहीं रहता। हम भाजपा में समाहित हो जाते।हमारे पिता ने 2005 किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाने की जिद कर अपना भारी नुकसान किया। उन्होंने कभी नुकसान पर अफसोस नहीं किया। गोधरा कांड का विरोध कर केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया। अल्पसंख्यकों के प्रति सुनिश्चत विचार भी हमारी विरासत का हिस्सा है। हम इससे अलग नहीं हो सकते। 2019 में बिहार से राजग के 39 सांसद जीते थे। इकलौते मुस्लिम सांसद चौधरी महबूब अली कैसर हमारी पार्टी से जीते थे। उनको टिकट देने का भी विरोध हुआ था। हमने ध्यान नहीं दिया। कैसर हमारे संपर्क में हैं। अगली बार भी उम्मीदवार होंगे।

प्रश्न- कैसर तो पशुपति कुमार पारस के साथ हैं न, उन्हें कैसे उम्मीदवार बनाएंगे?

उत्तर- नहीं, कैसर और वीणा देवी हमारे साथ हैं। दोनों उम्मीदवार होंगे। हां, नवादा के सांसद चंदन सिंह का हमसे संपर्क नहीं है। उनके भाई सूरजभान सिंह ने हमारे परिवार के साथ गद्दारी की है। लोजपा ने उस परिवार के तीन लोगों (सूरजभान, वीणा देवी और चंदन सिंह)को लोकसभा में भिजवाया। सूरजभान ने हमलोगों के साथ अच्छा नहीं किया। पिता की मृत्यु के बाद सूरजभान में हमारे परिवार के लोगों का फोन उठाना बंद कर दिया।

प्रश्न- अब कुछ व्यक्तिगत प्रश्न। राजनीति में आपके तीन चाचा हैं। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और पशुपति कुमार पारस। व्यवहारिक अपनापन के लिहाज से आप किन्हें एक नम्बर पर रखेंगे?

उत्तर- कठिन प्रश्न है। दो चाचा (लालू प्रसाद और नीतीश कुमार) जिन्होंने 32-33 साल तक राज्य पर शासन किया, बिहार की तबाही के लिए जिम्मेवार हैं। हमारे चाचा पशुपति कुमार पारस केंद्र में मंत्री हैं। उन्होंने कुछ किया ही नहीं। इसलिए उनके कार्यों को क्या अच्छा और क्या खराब कहा जाए। हां, हमारे प्रति व्यवहार का प्रश्न है तो हम इसमें लालू चाचा को पहले नम्बर पर रख सकते हैं। मेरे प्रति उनके व्यवहार में कभी कटुता नहीं आई। हम उनका सम्मान करते हैं।

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प्रश्न- स्व. राम विलास पासवान की पहचान भोजन प्रेमी की थी। खूब खाते और खिलाते थे। आपकी रूचि क्या है?

उत्तर- ठीक विपरीत कह सकते हैं। मैं वैष्णव नहीं हूं। लेकिन, मांसाहारी भोजन में मेरी रूचि नहीं है। आप हमको अरहर की दाल, चावल और अंचार दे दीजिए। भर पेट खाएंगे। एक दिन में कई बार यही खाते हैं। पिताजी को मांसाहार और खासकर मछली से बेहद प्रेम था।

प्रश्न- यह अंतिम प्रश्न है। चिराग दुल्हा कब बनेंगे?

उत्तर- कुछ प्रश्नों के उत्तर तुरंत नहीं दिए जा सकते। यह भी उन्हीं में से एक है।

प्रश्न- राजग के दलों ने कभी नीतीश कुमार को विकास पुरुष कहा था। आप कह रहे हैं कि बिहार का विकास ही नहीं हुआ है। यह क्यों?

उत्तर- हमारा चंद्रयान चांद पर पहुंच गया है। दूसरे राज्यों में आइटी पार्क बन रहा है। नए उद्योग धंधे स्थापित हो रहे हैं। हमारे मुख्यमंत्री नल-जल योजना को अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। यह हास्यास्पद स्थिति है। अगर यह योजना सचमुच जनता के हित में होती तो समर्थन कर देते। पूरी योजना ही लूट की हो गई है। रोजगार के नए अवसर नहीं बन रहे हैं। बिहार से दूसरे राज्यों को श्रमिकों की आर्पूति होती है। देश का कौन ऐसा राज्य है, जहां बिहार के लोग मजदूरी करने नहीं जाते हैं। अपने श्रम बल का राज्य में उपयोग नहीं हो रहा है। हमारे लोग दूसरे राज्यों की समृद्धि बढ़ा रहे हैं। क्या आप इसे विकास कहेंगे? मुख्यमंत्री के पास विजन का अकाल है। इसमें कोई दो राय नहीं की कि अपने पहले कार्यकाल (2005-10) में उन्होंने विकास किया था। जनता ने इसका इनाम उन्हें 2009 के लोकसभा और 2010 के विधानसभा चुनावों में दिया। उसके बाद कोई काम नहीं हुआ। काम के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ है।

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प्रश्न- क्या चिराग की अगली रणनीति में मुख्यमंत्री बनने का लक्ष्य भी है?

उत्तर- हमारी पार्टी का लक्ष्य है-बिहार फस्ट, बिहारी फस्ट। मुख्यमंत्री बनने न बनने का प्रश्न का इस समय हम यही उत्तर दे सकते हैं कि इस मामले में मेरा दृष्टिकोण पिता से अलग है। पिताजी केंद्र की राजनीति में रहे। उनके मन में कभी बिहार का मुख्यमंत्री (Bihar CM) बनने का विचार नहीं आया। मेरी प्राथमिकता बिहार है। मेरे इसी दृष्टिकोण में ही अपने प्रश्न का उत्तर खोज लीजिए।

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