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Lok Sabha Election 2024: 50 सालों बाद भी 'चांद' की तरफ देखना किसी को गंवारा नहीं, मूलभूत सुविधाओं का अभाव

पटना की चांद कॉलोनी इस समय बदहाल स्थिति में है। 50 सालों से इस जगह की सुध किसी ने नहीं ली। कॉलोनी में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। शिक्षा की भी काफी कमी है। चांद कॉलोनी की मस्जिद से नमाज पढ़ कर निकले युवा मोहम्मद अरशद कहते हैं मैं भी इसी बस्ती का हूं। रोजगार नहीं होने के कारण गद्दा बनाने का काम करता हूं।

By ahmed raza hasmi Edited By: Rajat Mourya Updated: Wed, 10 Apr 2024 06:08 PM (IST)
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50 सालों बाद भी 'चांद' की तरफ देखना किसी को गंवारा नहीं, मूलभूत सुविधाओं का अभाव

अहमद रजा हाशमी, पटना। सिटी आलमगंज थाना क्षेत्र के गायघाट के समीप वार्ड 52 स्थित चांद कॉलोनी। चुनावी शोर से अभी दूर, पर अपने दर्द को संभाल रखा है कि कोई आए तो बताएं। लोग कहते हैं, कोई आता ही नहीं हमें पूछने। हम तो वोट भर बनकर रह गए हैं।

वर्षों से यही हाल है। धारीदार गंजी-हाफ पैंट पहने, नंगे पांव, हाथ में चीथड़ी हो चुकी एक किताब, फटे लटकते पन्नों वाली कॉपी और स्कूल बैग लिए अपनी दुनिया में मगन करीब छह साल का मोहम्मद जियान "चंदा मामा दूर के, पुआ पकाए गुड़ के, आप खाए थाली में, मुन्ने को दे प्याली में..." गाता-झूमता चला आ आ रहा था।

चांद कॉलोनी के दृश्य

हर घर जल का नल की बिछी पाइप से रिसता पानी और रास्ते पर जमी हुई काई। मैनहोल का ढक्कन टूटा होने के कारण बच्चे का पैर उसमें जाते-जाते बचा। कुछ ऐसे ही दृश्य हैं। बच्चे के भागते ही सामने आईं अकबरी खातून, अख्तरी बेगम और अन्य महिलाएं आ जाती हैं। सामने देखिए ऊंचाई पर बने खटाल की गंदगी। बारिश में बह कर बस्ती को डुबो देती है। सड़क और नाला धंस रहा है। उनके स्वर और तेज हो रहे थे।

पचास साल से अधिक हो गया यहां रहते हुए। कुछ नहीं बदला है। बहू बन कर आई और अब बच्चे ब्याह करने लायक हो गए हैं। राशन कार्ड से जितना अनाज मिलता है उससे परिवार का पेट नहीं भरता। औरतें घरों के बर्तन मांजकर तो बच्चे काम कर चार पैसे लाते हैं तो पेट भर जाता है। हम केवल वोट बैंक बन कर रह गए हैं।

चांद कॉलोनी की मस्जिद से नमाज पढ़ कर निकले युवा मोहम्मद अरशद कहते हैं, "मैं भी इसी बस्ती का हूं। एमए करने के बाद डिस्टेंस एजुकेशन से एमफिल कर रहा हूं। कोई नौकरी नहीं मिली तो गद्दा बनाने का रोजगार कर लिया"

बस्ती में एक लड़की ने की M.A

बस्ती में एक लड़की ने भी एमए किया था। शादी के बाद वह ससुराल चली गई। करीब 15 लड़के-लड़कियां स्नातक कर रहे हैं। इंटर के तीस और इतने ही मैट्रिक के विद्यार्थी होंगे। सभी कड़ी मेहनत से चांद को छूने की तमन्ना रखते हैं। बच्चों के लिए बस्ती में मदरसा, सड़क पर सरकारी बबुआगंज मध्य विद्यालय, लड़कियों को ईवा फाउंडेशन द्वारा दिया जा रहा कंप्यूटर प्रशिक्षण उम्मीद की किरण है। लोग कहते हैं, फिर चुनाव आ गया लेकिन यहां कोई नेता नहीं आएंगे। बस्ती में लगभग पांच सौ वोटर हैं। अपने सांसद को शायद ही किसी ने देखा होगा।

एक शिक्षित युवक ने कहा कि इंदिरा आवास योजना, केंद्रीय स्वच्छता कार्यक्रम, अंत्योदय योजना, स्वच्छ जल आदि मिल जाता तो चांद कॉलोनी के लोग भी खुद को पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का शहरी समझ पाते। अल्पसंख्यकों की बस्ती है, इसलिए न रंग है, न नूर। चांद महज नाम है, विकास की चांदनी कोसों दूर है। युवक का जाते-जाते सवाल कि सभी पार्टियां हमसे अपेक्षा तो रखती हैं, फिर क्यों सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक मुसलमानों की हालत इतनी खराब है।

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