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Bihar Politics : 'RJD की दबंगई से ही...', लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की असली वजह आई सामने

Bihar Politics लोकसभा चुनाव की हार की समीक्षा को लेकर कांग्रेस मुख्यालय में बैठक हुई। इसकी अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने की। इस दौरान 36 जिलों के अध्यक्ष शामिल रहे। बैठक में 40 लोकसभा सीटों को लेकर चर्चा हुई छह सीटों पर विशेष रूप से बातचीत हुई जहां पर पार्टी को हार मिली। बैठक के दौरान हार के कई कारण उभरकर सामने आए।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Shashank Shekhar Updated: Mon, 15 Jul 2024 08:52 PM (IST)
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पटना में कांग्रेस की समीक्षा बैठक का आयोजन। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Politics बिहार कांग्रेस की चुनावी समीक्षा बैठक किसी अंतिम व सर्व-सहमत निष्कर्ष के बिना सोमवार को सहजता से संपन्न हो गई। सार संक्षेप यह कि महागठबंधन में समन्वय की कमी और सीटों-प्रत्याशियों के चयन में कोताही के कारण पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। एकतरफा निर्णय लेने वाले राजद से गठबंधन बहुत लाभप्रद नहीं। अपने बूते की राजनीति से ही बिहार में कांग्रेस का कल्याण संभव है।

कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय (सदाकत आश्रम) में लोकसभा चुनाव की समीक्षा के लिए आहूत बैठक की अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने की। उसमें 36 जिलाध्यक्षों की सहभागिता रही। चर्चा 40 लोकसभा सीटों पर हुई। हालांकि, उन छह सीटों (भागलपुर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, बेतिया, पटना साहिब, महराजगंज) पर विशेष फोकस रहा, जहां कांग्रेस पराजित हुई है।

कांग्रेस की हार के ये हैं कारण 

पराजय के कई कारण गिनाए गए। मौखिक तौर पर शिकायत भितरघात की हुई और उससे अधिक महागठबंधन के बीच समन्वय नहीं होने की। प्रदेश से लेकर प्रखंड व पंचायत स्तर तक समन्वय की कमी रही। कोई समिति ही नहीं थी, जो घटक दलों के बीच हस्तक्षेप कर चुनाव प्रचार को सही दिशा देती। कांग्रेस की संभावना को प्रभावित करने में राजद की दबंगई भी बड़ा कारण रही।

तीसरी शिकायत यह कि प्रत्याशियों की घोषणा अंतिम समय में हुई। प्रचार-प्रसार व जनता के बीच जाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। चौथी शिकायत यह कि सीटों और प्रत्याशियों के चयन में कांग्रेस की संभावना का ध्यान नहीं रखा गया। परंपरागत व संभावना वाली सीटें सहयोगी दलों के हवाले कर दी गईं। प्रत्याशियों के चयन में सांगठनिक प्रतिबद्धता, राजनीतिक अनुभव और जातिगत समीकरण का पूरा ध्यान नहीं रखा गया।

इन सबके बीच बैठकखाने में यह आवाज भी बुलंद होती रही कि राजद का भरोसा छोड़ कांग्रेस को बिहार में अपने बूते राजनीति करनी होगी। जनता के बीच एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो भाजपा और राजद से इतर किसी तीसरे दमदार विकल्प की तलाश कर रहा। ऐसे में अकेले दम चुनाव मैदान में उतरकर कांग्रेस अपनी पुरानी जमीन वापस पा सकती है। राजद के अतीत और उसकी नकारात्मक छवि से कांग्रेस का नुकसान हो रहा।

प्रदेश अध्यक्ष ने दिया ये निर्देश

अंतत: प्रदेश अध्यक्ष ने निर्देश दिया कि सभी जिलाध्यक्ष सप्ताह भीतर अपनी शिकायत व सुझाव लिखित रूप से उन्हें उपलब्ध कराएंगे। उन्हें सूचीबद्ध कर केंद्रीय नेतृत्व को भेज दिया जाएगा। इसी के साथ उन्होंने जिलाध्यक्षों को माह भीतर जिला व प्रखंड समिति के गठन का निर्देश दिया। नवगठित समिति की सूची प्रदेश कार्यालय को उपलब्ध करानी है।

भितरघात, अहंकार और कमजोर छवि

जिलाध्यक्ष परवेज जमाल ने भागलपुर में कांग्रेस की हार का कारण प्रत्याशी अजीत शर्मा का अहंकारी स्वभाव बताया। उनका कहना था कि जदयू प्रत्याशी अजय मंडल के विरुद्ध पर्याप्त नाराजगी थी, लेकिन अपनी विनम्रता के कारण अजय मंडल चुनाव जीत गए। ऐसी ही शिकायतें कई जिलों से हुई। सारण, जमुई और मुंगेर संसदीय क्षेत्र में महागठबंधन के पराजय का कारण भितरघात बताई गई।

बेतिया के बारे में लगभग यही राय थी, लेकिन वहां प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी की पहुंच-पैठ का कमजोर होना भी हार का एक कारण रहा। हालांकि, भागलपुर के संदर्भ में प्रदेश अध्यक्ष का कहना था कि अजीत शर्मा वहां बेहतर प्रत्याशी थे। वे तीन बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं।

लोकसभा चुनाव में हार-जीत पर चर्चा हुई। जिलाध्यक्षों ने अपनी बात रखी। विधानसभा चुनाव में अभी समय है। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए मैं विधानसभा में कांग्रेस सदस्यों की संख्या तिगुना अधिक करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। वर्ष 2020 में कांग्रेस 19 सीटों पर विजयी रही थी। पिछली बार कांग्रेस विधानसभा की जितनी सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उन पर आगे भी लड़ेगी।- अखिलेश प्रसाद सिंह, अध्यक्ष, बिहार कांग्रेस

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