पटना में साइबर फ्राड करने वाले गिरोह का भंडाफोड़, ठगी करने के लिए अपनाते हैं ये हथकंडे
बिहार की पटना पुलिस एक सप्ताह में दो साइबर गिरोह का भंडाफोड़ कर चुकी है। यह गिरोह दिल्ली और पश्चिम बंगाल में सक्रिय संगठित गैंग से बड़ी मात्रा में डेबिट कार्ड खरीद रहे है। इनके पास से बरामद भारी मात्रा में डेबिट कार्ड पास बुक और सिम कार्ड मिले हैं।
By Jagran NewsEdited By: Nirmal PareekUpdated: Sat, 24 Dec 2022 08:53 AM (IST)
जागरण संवाददाता, पटना: बिहार की पटना पुलिस एक सप्ताह में दो ऐसे साइबर गिरोह का पर्दाफाश कर चुकी है, जो दिल्ली और पश्चिम बंगाल में सक्रिय संगठित गैंग से बड़ी मात्रा में डेबिट कार्ड खरीद रहे है। लोगों को लाटरी, केवाइसी अपडेट, बिजली बिल आदि के नाम पर झांसा देकर उनके खाते से रकम उड़ाने के बाद उसे दूसरे खाते में ट्रांसफर कर एटीएम से निकासी के लिए साइबर फ्राड, फर्जी आइडी पर खुले बैंक पासबुक और डेबिट कार्ड खरीद रहे हैं। इसके साथ ही 10 से 12 हजार रुपये में सक्रिय सिमकार्ड भी खरीद रहे हैं। गिरोह के पास से बरामद भारी मात्रा में डेबिट कार्ड, पास बुक और सिम कार्ड की पुलिस जांच कर रही है। पत्रकारनगर थानेदार मनोरंजन भारती ने बताया कि गिरोह के काम काज के तौर तरीकों की छानबीन की जा रही है।
दूसरे राज्यों में सरगना, चेन बनाकर काम कर रहा गैंग
पत्रकारनगर से गुरुवार को गिरफ्तार गिरोह के पास से बरामद सौ से अधिक सिमकार्ड और 30 डेबिट कार्ड के साथ ही जो रजिस्टर बरामद हुआ है, उससे साफ है कि ठगी की रकम एक करोड़ से अधिक की है। सरगना पुणे में बैठा है। हर गैंग की अलग अलग भूमिका है। एक गैंग सिम कार्ड को साइबर अपराधियों को बेच रहा है, दूसरा डेबिट कार्ड उपलब्ध करा है और तीसरा गिरोह साइबर अपराधियों के इशारे में ठगी की रकम की निकासी कर रहा है।
अलग-अलग क्षेत्रों में किराए के कमरे में रहते हैं शातिर
पुलिस की छानबीन में पता चला कि फोन कर लोगों को झांसा देने वाला गिरोह लगातार ठिकाना बदलते रहते हैं। रकम आते ही एटीएम से निकासी करने वाले गैंग के शातिर पत्रकारनगर, रामकृष्णा नगर, कंकड़बाग, अगमकुआं, बाईपास और राजीव नगर इलाके में भी सक्रिय हो जाते है। साइबर अपराधी इन सभी के संपर्क में रहते है, जो ठगी की रकम किस खाते में ट्रांसफर किए और उस खाते का एटीएम किस गैंग के किस शातिर के पास है, इसका पूरा डिटेल रखते है।मुश्किल है नेटवर्क तोड़ना
बता दें एटीएम से रुपये की निकासी करने वाले गिरोह के शातिर पुलिस के हत्थे चढ़ जाते है, लेकिन पुलिस नेटवर्क की जड़ तक नहीं पहुंच पाती। इसे तोड़ना मुश्किल होता है।
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