जवाहर लाल नेहरू से लेकर वायसराय तक का रहा है नाता, गंगा किनारे बनी इमारत में दिखती है मिथिला की संस्कृति
गंगा किनारे बनी लाल रंग की इस खूबसूरत इमारत का देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और वायसराय तक से नाता रहा है। इस इमारत में आज शिक्षा का मंदिर सजता है। बिहार की राजधानी पटना में पुरानी इमारतों में इसका स्थान महत्वपूर्ण है।
By Shubh Narayan PathakEdited By: Updated: Sat, 02 Jul 2022 06:42 AM (IST)
पटना, जागरण टीम। Patna News: शहर की प्राचीन और भव्य इमारतों में शुमार पटना विश्वविद्यालय का दरभंगा हाऊस छात्र-छात्राओं के साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना है। सुर्खी-चूने से निर्मित भवन की दीवारों पर पीले और गेरूआ रंग का लेप इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाता है। गंगा किनारे स्थित दरभंगा हाऊस शैक्षणिक, धार्मिक व पर्यटन स्थल के रूप में भी जाना जाता है। देश की आजादी के दौरान कई महत्वपूर्ण गुप्त बैठकों के अलावा नेहरू, वायसराय व एनी बेसेंट समेत कई गणमान्य लोगों की मेजबानी करने का अवसर दरभंगा हाऊस को मिला। गंगा तट पर स्थित दरभंगा हाऊस को देखने के लिए हर दिन सुबह-शाम लोगों की भीड़ लगती है। दरभंगा हाऊस के इतिहास, वास्तुकला और महत्ता पर प्रकाश डालती रिपोर्ट।
12 बीघा जमीन पर खड़ा है दरभंगा हाऊस
मगध महिला कालेज की पूर्व प्राचार्य डा. जयश्री मिश्र कहती हैैं कि दरभंगा हाऊस की हाबर्ड विवि के विद्वान ने प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा था कि दरभंगा हाऊस के किनारे से बहती गंगा का दृश्य इतना सुंदर है कि बार-बार छात्रों का ध्यान भटकता होगा। देश का शायद ही कोई विवि इतना सुंदर होगा। डा. जयश्री के अनुसार 1879 में जब महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह का राज्यारोहण हुआ, तब उन्होंने पटना के बंगाली लोगों से 12 बीघा जमीन खरीदी और 1880 के दशक में इस भवन का निर्माण कार्य आरंभ हुआ था।
लोक संस्कृति को ध्यान में रख तैयार किया गया भवन
दरभंगा हाऊस का डिजाइन तैयार करने में अंग्रेजी वास्तुकार मेजर चाल्र्स मान्ट का योगदान रहा। चाल्र्स मान्ट ने भारतीय वास्तुकला और परंपरा को ध्यान में रखते हुए भवन का स्वरूप बनाया, जो मुगल स्थापत्य कला का एक नमूना है। वास्तुकार ने भवन में तीन प्रभाग बनाए थे। पहला जनता के आवभगत के लिए है। दूसरा महाराजा के निवास के लिए और तीसरा महिलाओं के रहने के लिए है। इसके निर्माण में गोपनीयता का भी पूरा ख्याल रखा गया था।
भवन पर दिखती है मिथिला की लोक संस्कृति मिथिला की लोक संस्कृति को स्थापित करने को लेकर भवन के ऊपर महाराज का कुल चिन्ह मछली और फूल जगह-जगह बनाए गए हैं। वहीं बरामदे के स्तंभ पर बनी मेहराबदार आकृति भवन की शोभा में चार-चांद लगाती है। दरभंगा हाऊस के दो मंजिला भवन के निर्माण में उस समय नौ लाख रुपये खर्च हुए थे। इसी कारण इसे नौलखा भवन के रूप में भी जाना जाता है। दरभंगा हाऊस की दर-ओ-दीवारों पर मिथिला की लोक संस्कृति की झलक से दिखाई देती है। भवन पर बनी मिथिला कला शैली लोगों को आकर्षित करती है। भवन पर उर्वरता का प्रतीक मछली का चित्र अंकित है। वहीं धन का प्रतीक हाथी का चित्र भी बना है। भवन पर उन्नति और लंबी आयु का प्रतीक घोड़े का चित्र भी बना है।
राजा और रानी ब्लाक में बंटा है हाऊस दरभंगा हाऊस का पूर्वी भाग रानी ब्लाक और पश्चिमी भाग राजा ब्लाक के नाम से जाना जाता है, जिसमें पटना विवि के मानविकी और सामाजिक विज्ञान संकाय के विभाग मौजूद हैं। दोनों भाग के बीच दक्षिण से उत्तर की ओर गंगा घाट तक गलियारा बना है। गंगा के जल तक पहुंचने के लिए सीढिय़ों का इंतजाम किया गया है। वहीं सुरंगनुमा गलियारे में काली मंदिर है, जो पटना के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
स्वतंत्रता आंदोलन में भी थी भूमिकादरभंगा हाऊस की भव्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के पूर्व इस भवन में मेहमानों की मेजबानी की गई। 1894 में एनी बेसेंट के पटना आने पर उन्हें दरभंगा हाऊस में ठहराया गया था। आजादी के बाद भी कई बड़े शख्स का यहां आगमन हुआ। 1948 में देश के अंतिम वायसराय सी. राजगोपालाचारी, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का आतिथ्य महाराजा कामेश्वर ङ्क्षसह ने इसी दरभंगा हाऊस में किया था। वहीं इसके अलावा स्वतंत्रता आंदोलनों में दरभंगा हाऊस की महत्ता खूब रही। आंदोलन को लेकर यहां पर गुप्त बैठकें हुआ करती थीं।
विवि के अधीन हुआ दरभंगा हाऊस
पटना विवि के विस्तार के लिए जब जगह की आवश्यकता हुई तब राज परिवार ने 1955 में दरभंगा हाऊस को सात लाख रुपये में विवि को दे दिया था। उस समय से यह दरभंगा हाऊस पटना विवि के अधीन है और विवि के छात्र-छात्राओं को ऊंची डिग्री देने में अपना योगदान दे रहा है। पटना विवि के अधीन दरभंगा हाऊस की स्थापत्य कला और इसकी खूबसूरती को बनाए रखने को लेकर पटना विवि लाखों रुपये खर्च करता है। यहां पर स्थित मां काली के प्राचीन मंदिर की पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं नवरात्र के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
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- 1880 के दशक में दरभंगा हाऊस के भवन का निर्माण कार्य हुआ था आरंभ
- बंगाली समुदाय से दरभंगा महाराज नेे खरीदी थी जमीन
- अंग्रेज वास्तुकार चाल्र्स मान्ट ने दरभंगा हाऊस का किया था डिजाइन
- मुगल व मिथिला स्थापत्य कला का भवन करता है नुमाइश
- 1894 में पटना आने के बाद दरभंगा हाऊस ने एनी बेसेंट का किया था स्वागत
- 1948 में वायसराय सी. राजगोपालाचारी, पंडित नेहरू का दरभंगा हाऊस में महाराज ने किया था स्वागत
- 1955 में सात लाख रुपये में पटना विवि के अधीन हुआ दरभंगा हाऊस