आंखों की रोशनी पर डायबिटिक रेटिनोपैथी का कहर, अंधेपन की ओर बढ़ने लगे हैं शुगर के मरीज
डायबिटिक रेटिनोपैथी में दरअसल मधुमेह के कारण रेटिना को पहुंचने वाली क्षति है। आंखों की रोशनी पर डायबिटिक रेटिनोपैथी का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। देश में 2021 तक करीब 7.7 करोड़ मधुमेह रोगी थे और इनमें से 25 प्रतिशत रेटिनोपैथी से पीड़ित थे। इनमें भी 10 प्रतिशत मरीज अंधेपन की ओर बढ़ रहे थे। यह समस्या धीरे-धीरे गंभीर बनती जा रही है।
जागरण संवाददाता, पटना। भारत मधुमेह की वैश्विक राजधानी घोषित हो चुका है। दुनिया के 17 प्रतिशत मधुमेह रोगी हमारे ही देश में है। इसमें प्रदेश का योगदान कम नहीं है। बिहार की 20 प्रतिशत शहरी व 12 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के साथ 13 से 19 वर्ष के 5 प्रतिशत किशोर मधुमेह ग्रस्त हैं।
मरीज शुगर कंट्रोल के प्रति नहीं गंभीर
एनएफएचएस-3 (National Family Health Survey) के अनुसार, प्रदेश में शहरी क्षेत्र का हर पांचवा वयस्क और हर 20 किशोर मधुमेह से पीड़ित है।
इससे भी चिंताजनक यह कि मधुमेह ग्रस्त मरीज शुगर स्तर को नियंत्रित रखने के प्रति गंभीर नहीं है। इस कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी यानी मधुमेह के कारण आंखों की रोशनी कम होने और 10 प्रतिशत में अंधेपन का खतरा बढ़ता जा रहा है।
अंधेपन की ओर बढ़ रहे मधुमेह के मरीज
प्रदेश में सिर्फ एम्स पटना और आइजीआइएमएस में ही लेजर, एंटी वीईजीएफ (वैस्कुलर इंडोपियर ग्रोथ फैक्टर) इंजेक्शन व सर्जरी से इलाज की सुविधा है।
आइजीआइएमएस स्थित क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के चीफ डा. विभूति प्रसन्न सिन्हा व एम्स पटना में रेटिना क्लीनिक की इंचार्ज डा. सोनी सिन्हा के अनुसार विशेष रेटिना क्लीनिक में आने वाले 40 प्रतिशत मरीज डायबिटिक रेटिनोपैथी के होते हैं।
एडवांस डायबिटिक रेटिनोपैथी के 80 प्रतिशत मरीजों की किडनी भी खराब हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्र के मरीज तो इस हाल में आते हैं कि उनकी आंख बचाने के लिए सर्जरी के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता है।
बताते चलें कि देश में 2021 तक करीब 7.7 करोड़ मधुमेह रोगी थे और इनमें से 25 प्रतिशत रेटिनोपैथी से पीड़ित थे। इनमें भी 10 प्रतिशत मरीज अंधेपन की ओर बढ़ रहे थे।
रेटिनोपैथी के साथ किडनी भी हो जाती खराब
डा. सोनी सिन्हा के अनुसार मंगलवार व शुक्रवार को चलने वाले विशेष रेटिना क्लीनिक में औसतन 50 मरीज आते हैं, इनमें 20 से अधिक रेटिनोपैथी के होते हैं। रेटिनोपैथी के अधिकतर मरीज नेफ्रोपैथी यानी उनकी किडनी भी खराब हो चुकी होती है।
कई बार तो रेटिनोपैथी के साथ रोगी की डायलिसिस भी साथ-साथ करानी पड़ती है। इसका कारण प्रदेशवासियों में खून में शुगर स्तर को नियंत्रित नहीं रखने की प्रवृत्ति है। वे दवा या इंसुलिन शुरू करने के पहले लंबा समय खुद से उपचार करने में खराब कर देते हैं। इलाज शुरू कर भी देते हैं तो दवा व परहेज के प्रति उदासीन रहते हैं।
हर रोज इलाज, चार दिन विशेष रेटिना क्लीनिक
डा. विभूति प्रसन्न सिन्हा के अनुसार प्रदेश भर से मरीज आते हैं, इसलिए हर दिन डायबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज किया जात है। हालांकि, सप्ताह के चार दिन विशेष रेटिना क्लीनिक संचालित किया जाता है। अधिक से अधिक रोगियों का इलाज हो सके इसलिए अब सिंगल की जगह मल्टी स्पाट लेजर मशीन मंगवाई है।
इससे कम समय में सभी धब्बों की सिंकाई की जा सकेगी। रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए डायबिटिक रेटिनोपैैथी रजिस्ट्री कार्यक्रम शुरू किया गया है। लेजर, इंजेक्शन या सर्जरी किसी भी विधि से उपचार किया जाए पहली शर्त शुगर को नियंत्रित रखना है। बेहतर उचार के लिए शरीर में खून की कमी नहीं होने दें और सिगरेट आदि का सेवन बंद कर दें।
क्या है डायबिटिक रेटिनोपैथी, रोकथाम के उपाय
डायबिटिक रेटिनोपैथी में आंख के पिछले हिस्से में स्थित रेटिना की रक्त कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, अथवा सूजन या धब्बे आ जाते हैं। इसके अलावा नई रक्त नलिकाएं बनने लगती हैं। बाद में इन नई नलिकाओं से रक्तस्राव होने लगता है जो पर्दे को क्षतिग्रस्त कर देता है।
इससे आंखों से धुंधला दिखने लगता है, शुगर अनियंत्रित रहने पर कुछ समय बाद व्यक्ति अंधा तक हो जाता है। अभी तक इसकी रोकथाम की कोई सटीक दवा नहीं है, इसलिए शुगर नियंत्रित करने के बाद लेजर, एंटी वीईजीएफ इंजेक्शन या सर्जरी से आंखों की रोशनी बचाने का प्रयास डाक्टर करते हैं।
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