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Rajendra Prasad Jayanti: पांच साल में मौलवी को बनाया गुरु, मात्र 13 साल में शादी, स्वतंत्रता आंदोलन से ऐसे देश के पहले राष्ट्रपति बने डॉ राजेंद्र प्रसाद

DR Rajendra Prasad Birthday देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की आज 139वीं जयंती है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने संविधान के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई थी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र रहे। कॉलेज में अक्सर प्रथम स्थान पाया करते थे।

By Jagran NewsEdited By: Sanjeev KumarUpdated: Sun, 03 Dec 2023 07:35 AM (IST)
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देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की 139वीं जयंती (जागरण)
संजीव कुमार, डिजिटल डेस्क, पटना। देश के प्रथम राष्ट्रपति और बिहार के लाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज यानी 3 दिसंबर को 139वीं जयंती है। इस मौके पर बिहार के साथ-साथ पूरे देश में कई जगह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। कई स्कूलों में राजेंद्र प्रसाद के संघर्ष की कहानी बच्चों को बताई जा रही है।

राजधानी पटना में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाना है। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गुजरात सरकार के मंत्री मंत्री भीखू सिंह परमार भी पहुंचे हैं। वहीं बीजेपी ने 243 फीट लंबी प्रतिमा बनाने का एलान कर दिया है।

तो चलिए आज हम आपलोगों को बताएंगे कि कैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने छपरा के एक छोटे से स्कूल से राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय किया था? उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में किस तरह से अपना योगदान दिया था। साथ ही संविधान के निर्माण में उनकी क्या भूमिका रही?

3 दिसंबर 1884 को हुआ था जन्म

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार राज्य के सिवान जिले के जीरादेई में हुआ था। एक बड़े संयुक्त परिवार में सबसे छोटे होने के कारण उन्हें बहुत प्यार किया जाता था। उनका अपनी मां और बड़े भाई महेंद्र से गहरा लगाव था।

पांच साल की उम्र में मौलवी को बनाया गुरु, फिर 13 साल की उम्र में शादी

पांच वर्ष की उम्र में ही राजेंद्र प्रसाद ने एक मौलवी साहब से फारसी में शिक्षा शुरू किया। उसके बाद वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए छपरा के जिला स्कूल गए। लेकिन अभी स्कूलिंग पूरी भी नहीं हुई थी कि 13 साल की उम्र में राजेंद्र बाबू की शादी राजवंशी देवी से हो गया।

विवाह के बाद भी उन्होंने पटना की टी० के० घोष अकादमी से अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखी रहा और उससे उनके अध्ययन अथवा अन्य कार्यों में कोई बाधा नही आई।

उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया फिर डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की

18 साल की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी थी। उस प्रवेश परीक्षा में उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। वर्ष 1902 में उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। उनकी प्रतिभा ने गोपाल कृष्ण गोखले तथा बिहार-विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। 1915 में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्नातक (एलएलएम) की परीक्षा पास की और बाद में लॉ के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की।

स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के साथ संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

गांधी जी के समर्पित सिपाही

राजेंद्र प्रसाद की गांधी जी से पहली मुलाकात वर्ष 1915 में कोलकाता में हुई, जब गांधी जी के सम्मान में एक सभा आयोजित हुई थी। दिसंबर 1916 में लखनऊ में कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने फिर गांधी जी को देखा। यहीं पर चंपारण के किसान नेताओं राजकुमार शुक्ला और ब्रजकिशोर प्रसाद ने गांधी जी से चंपारण आने की अपील की थी। अधिवेशन में चंपारण के हालात पर भी एक संकल्प लिया गया था। वर्ष 1917 राजेंद्र प्रसाद के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में वह गांधी जी के करीब आए, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जांच-मिशन के लिए चंपारण जाते समय गांधी जी पहले पटना स्थित उनके घर आएंगे। वे गांधी जी के आह्वान पर स्वयंसेवकों के साथ मोतिहारी पहुंचे और जहां भी गांधी जी गए, वे उनके साथ रहे।

पूरी तरह से राष्ट्रवादी थे राजेंद्र प्रसाद

उन्होंने राष्ट्र के मुद्दे पर लिखने के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने "सर्चलाइट" और "देश" सहित क्रांतिकारी प्रकाशनों के लिए लेख लिखे। उन्होंने वास्तव में इन समाचार पत्रों के लिए धन एकत्र किया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और जेल तक का सफर

सुभाष चंद्र बोस के इस्तीफे के बाद 1937 में कांग्रेस के बॉम्बे सत्र में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था । उनकी अध्यक्षता में, कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया और बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया, जहां उन्होंने अगले तीन साल बिताए। 1945 में उन्हें रिहा कर दिया गया।

भारतीय संविधान में राजेंद्र प्रसाद की भूमिका

1946 में, उन्हें जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में चुना गया। इसके बाद, उन्हें 11 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया, जो एक अस्थायी संसद के रूप में कार्य करती थी।

26 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति बने राजेंद्र प्रसाद

26 जनवरी 1950 को उन्हें भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। 1952 और 1957 में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना गया। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह भारत के इतिहास में एकमात्र राष्ट्रपति हैं।

1962 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया

राष्ट्रवादी आंदोलन के दौरान और भारत के राष्ट्रपति रहने के दौरान देश की तरक्की में योगदान देने के लिए उन्हें 1962 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

पटना में 28 फरवरी 1963 में निधन

उनका निधन पटना में 28 फरवरी 1963 में हो गया था। इससे पहले वो बीमार थे। उन्होंने राष्ट्रपति के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अपना शेष जीवन बिहार में बिताया।

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